SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीरचरितमा कम हुन्छ हुआ है। A नह जाति जिय के गुरु वलय वान क्यों हो । हम यह कबीर कोड पर सन परिभव हो । जो जन अल हुइल फिरत कामत है सब रेल ! छोर मिले जो तेहि चंजोग कहत फिरत एक एक न कह निन्दा के स मोग कम सं हि कलाकार जनमसर इस आपका प्रकाशमान L लिये पिराम जी तुम कोषिय हो, तुम को पवित्र लय पर चलना चाहिये। तुम दासी तपस्वी हो तुम को चाहिये कि मैत्री करण और ऐसी ही जो माना है उनकी बात डाली जिम से दिए शुद्ध है जय और मायमान हो, शोक ले रहित हो सुख पावे और परशु को एक हो जय वित्त शुद्ध हो जाता है तो शुभ नाम ज्योति का ज्ञान हो जाता है जिल में फिर किलो प्रकार का विषय बिस में नहीं आता और जिल से प्रकरण में पूरी की है। ब्राह्मण को यहो करना चाहिये। इसी से पप और मृत्यु के परे हो जाता है। तुम तो भी कर रहे हो। देखो तो, समाजाती को कत. युधाजित बुढा राजा । लोप राह सहित निज मंकि समाजा जनक करत मित्र यह पड़े अमिष तारे याचक है यहि समय राम में बाऊ तुम्हारे ॥ परशु - ठीक है । परन्तु i कैसे देखी जायके दिन खारि गुरुदेव त्रैलोकपति गुलिया ॥ विश्वार - जो तुम की शुरु का इतना विवाद है नो जो दम क्योंकि कहते है नृत्य प्रसिद्ध औ मंदिर में विधि सन ऋषि तीन । तुम मृगुवंशि वसिष्ट यह यह गिरस प्रवीन 7
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy