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शूर-जाना की जय हो। बाल्य-माओ बेटी है। कहा जा के यहाँ से का
अर्प सोचा है पाया और महर्षि प्रास्त्य ने चन्द्र के पास नंगहा की नमान्नु अनुहा है।
पाल्य:--जे बड़े राय के हथियार बार में है महर्षि लेाग रमही को दे रहे है ( लेबके :
विग्रह जन हित सदले प्रमाण दृश्यार :
ब्रह्मतेज रूह बनवल हो। अमेय अपार शूर्प:--मानुग्द ही तो है तो कौन चिन्ता है। माल्या-वेटो ऐसी बात न कही।
लेा ऊपो नरोह यद्यपि तास अद्धत रूप है। सो मनुज किमि सुरवृन्दावत जासुसुजस अनूप सुर मुनिन समलहि शक्ति अद्धत वस्तु साधारन ले वरदानसमय विरचि र हम मन पयो॥