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पहिला अङ्ग
: पहिला स्थान-सिद्धाश्रम के पास एक कू
गदर बढ़े हुये दो कल्या समेत राजा - देवी सीता अलि बा विश्वामित्रो को बड़ी वहा ले प्रणाम करो | दोनों का बहुत अच्छा बाबा मी राजा - यह ऐसे वैसे ऋषि नहीं है । वह तो यशशि बोथी मनहुँ पञ्चव
राजा और है : तुमको चाहिये कि महात
तीरथ जग विचरत फिरत धर्म घरे जद रूप
सूत --- महाराज सांकास्यनाथजी, आपने वहुन ठीक कहा . विश्वामित्र से कर तेजधारी कौन होगा : त्रिशंकु को आकाश में रोकना, शुनःशेक के प्राण बचा लेना, रम्मा को निश्चत करना बड़े 2 अखरज के कार इन्हीं इतिहासों में लिखे हैं । प्रदेश जिन वेद तेज के परमनिधाना। दोन्ही जाहि विरंचि व परमारथज्ञाना सो विद्यानिधिसंग करत तुम कुलाचारा । रहि गृहस्थ को धन्य आप सम याहे संसारा :
राजा ---वाह सूत, चाह, बहुत ठीक कहते हो। यही महर्षि लोग हैं जिनके द्वारा वेद प्रगट हुए हैं। इनके दर्शन ही से कल्याण होता है |
एक वार भेंट ते छुटै सफल महान । fer शिराय दो लोक में रहे तासु कल्यान
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