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नाटक मणिमाला
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पशुधाई में महाधि सट्टगोपाल थे। उनके पौत्र और
समें नीलकंड और जाकीदेवी के पुत्र भवभूति नाम हिडकी र मिली थी,
तिरस परमहंत गुनधाम
मनासपुर छागि ज्ञानतिधिमान॥ ही निधन भजन माला।
बाहना प्रताप प्रकाला यह रघुपतिवरिल सुहाबा
RIEन अति स्य बनाया शुभ र अन्धका श्रीअवधयालीभूएशनाल लाला सीताराम में शक्ति सरल भाषा में अनुवाद किया है. उसे अप लोन * इन कक्षार्थ ; नरभूतिजी ने कहा भी था,
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ইঃ দি জলিং এলিলা । जानु मत मारिह तह बानी । सुने मुक्तिमान पंडित ज्ञानी
(नट पाता है। न-समके लोग नो प्रसन्न है, पर प्रवन्ध कभी देखा तो है • इल ने यह जानना चाहते हैं कि कथा का प्रारंभ कहाँले है। सन- महात्मा कौशिक जो यज्ञकरना चाहते हैं सा वसिष्ट जी जमान महाराज दशरथ जो के घर से अभी लोटे पाते हैं और दिन र कहि नान वासुदीरता जगावन । ना मंगल के काजमीय सँग व्याह करायन !! ढलमुल विसि करें जब पूरनकामा। अनुज सहित ले रामचन्द्र लाये निज प्रामा !! ,
नेत्यो मिथिलापति मुनिराई! करत यह पठयो तिन भाई।