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माहान नारक सगिमाला
इक एक सबदि बलत झपटत धूरि खोदि उड़ावहीं।
दोनहान सरीरलगत अधीर सरिल देखावही , कर दान से देख के इन दोनों सेनाओं की दसा सबेरे के बेरे उजाले की सी हो रही है। __ ज्यों ज्यों राक्षसलेन यह कोन परत नित जात
त्यो त्यो बानरमालुबल सहस गुनो अधिकात ॥ इन्द्र- धर्वराज इधर तो फिर बड़ी मार होने लगी। राम से प्राय भिमो दलकाधार लक्ष्मण से पुन्नि तातु कुमारा धर्म के युद्ध में ही जनाय दिखावत शस्त्र को झान अपारी। कारत एक चलावत दूसर दिव्य हथ्यार अनेक प्रकारा। बीतत कन्यकी मागि समान किये तिन सेन दुह दिशि छारा । चित्र:- देवराज ये दोनों बड़े कार है, इन को लड़ाई लड़ी मंटन है। सिंह की नाद से गर्जत सों दिसि अन लोगूज उठावत हैं। बैरिसरोरन सो रन, नभ बानन वीर छिपावत हैं। देखनहारन के तन राम बरे करि बेग कपावत है। नूमि परे जो इसा तिनकी लखि आँसू भरे दुग प्रावत हैं।
(चारों ओर देव के कौतुक और हर्ष से) लिये केतु से हाथ में अस्त्र नाना। अलैं गर्व ला फूलि जे यातुधाना। करें दुन्द ज्यों राम के सौह प्रा।
घुमा सुजा अस्त्र भारो चला। सोच के ) देखिये संसार मे पंचसूत की दृष्टि पेसी है,
नहि समात त्रयलोक में रहे जु राक्षस सुर।
होय जीवबिन देव बस मिले आज लोघर ।। इन्द्र-गन्धर्वराज देखा इन दोनों राम और लक्ष्मण का धोखा खाना भी दिखाता है