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महाबीरचरितमा वाइल भी बह की . छत्रिय नाम है हिय हेरी करीमा त्रिकुनम:
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– ཡ ? – ; ཨ་་་ – g''' – སྔགས་ भवरकर हल न हि सहरको कोटी :
मड़कर अपना पाय यो प्राइन बाला । प्ररूप कान बहरत बलत जाकर बलिर..तसेशो की बन है।
यह है बाशु यह र? . चाहत करन काज प्रति बार। बई मदन पुनि गाई : केहि कारन बना होई . जौ में यहि कार ऋो निहार
है मासुतसंतति द्वारा विश्यावर परशुराम नु समाना कि इन * पानी ब्रह्मबल नही है वैसे ही इनके शस्त्र की शक्ति भी नहीं है । जिन्दत त्रि मो जिम समा हरिके के अनिष्ट हि मह कामरे । देने हैं दुःख हमैं अबतौलहि बोले है नाता नहीच के! जानी। केप की सागि यो दाहिने पर शासन के उजाबः पन्दी हाथ सौ बायें दुहावत है धनु बेनि चेताय कै बाल पुरानी । परा:-सुनो जो विश्वामित्र,
तुम्हरे ब्रह्मतेज जो भारी। होहु जाति बल कै धनुधारी निज तर प्रबल दह। तप तया: अंजे धनुहि पशु यह मेर
(परदे के पछि