SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन लिन स्थान-अध्याः राज सिव असम्वती कौशल्या अनुमिका यी बैठी हैं : वस्लिापही त्रास भाजन के तुम कर उदय रे भूमिधाम इन खिन लोई इंडियन कपाश्रीरा" मये लो परम न हम लव पूरनामा " तो भी लोकरीति करजी ही वाहिए। प्रकाश बहु कौशल्या कोरल्या और सुमिना....हिये गुरुजी बलिष्टम लोन की माले लड़के लौटाये। कौशल्या और सुमित्रराय की मौत है। मान्यती कमी को देखकर बहू तुम यो उदाल बैंठो हो। कैकयी-माता मेरे भाग से लब लोग यह कह रहे है कि बालो माने सन्धरलेलनेला कला का लड़कों को बनवास दिया तो अब मैं बड़ों के का मुंह दिखा। ___ अरुन्धती-ब तुम सब करी । इसका भेद तुम्हारे गुरु । जो ने समाधि से जान लिया है। सब-यया: क्या असन्थनी-माल्यवान के कहने से अपगला ने मन्थरा का रूप घर के यह सब किया। __ सब निया-राक्षस भी बड़े ही पापी होते हैं तो यहां तक की स्त्रियों को भी दुख देते हैं। असिह-अजी मंगल के समय अभ' का दुख की बात करतो हो। राक्षसों की चढ़ाई की बात का यह कौन अवसर है। (राम लक्ष्मण भरत शत्रुध सरता विभीषण मादि पाते हैं)
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy