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________________ महाबीरचरितभाषा लछिमनधनुटंकार प्रलय सरिस निशिचरन कर । हन्या सबन एक बार सिंहगरज गजयूथ ज्यौं ॥ ( देख के ) अरे विमानराज कैसे चल रहा है। विभीषण- महाराज सह्य नाम पहाड़ बहुत ऊँचा बीच में गया है । इसके आगे आर्यावर्त है इस के पार चलने के लिये बिमान भी मध्यम लोक से कुछ दूर जा रहा है। लक्ष्मण—वह जगह देखने की है जहां विष्णु के पैर पड़े थे | ( विमान ऊपर जाता है ) [ तीसरा स्थान -- आकाश ] राम १०३ ( देख के ) जिन के भानुवंश लन्ताना | प्रगट देव सों तेजनिधाना || वेदतत्व सोइ मूरतिधारे । चढ़त यान से निकट हमारे || ( सब खिड़की से प्रणाम करते हैं ) सीता - ( ऊपर देख के ) अरे क्या दिन को भी तारे देख पड़ते हैं । राम-रानी तारे ही हैं। दिन का सूरज की चमक से नहीं देख सक्ते इतने ऊँचे चढ़ि आने से अब वह वात नहीं रही। सीता - ( कौतुक से ) अरे आकास तो बाग सा जान पड़ता है इस में मानों फूल खिले हैं । राम - (चारों ओर देख के ) जगत का तो कुछ बार पार समझ में नहीं पाता । दूरी बस निगरे नहीं महि सरि खोहि पहार | देखि परत आकास की वस्तुन प्रगट प्रकार || सुग्रीव - महाराज भाई के स्नेह से मैं लिड़ी ला हो गया था तब इधर उधर भटकता यहां पहुँचा था ।
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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