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प्राचीन नाटक मणिमाला
ब्रस्तान ग्रह उदयगिरि यह दोऊ साह नखायें । रबि खसि जाकी याद में निति दिन कूद जायें ॥ महाराज इधर भी देखिये,
इंजन और कैलास गिरि सहित हुन परिमान । नाम से लसे वरती उन समान ॥
सुमेद पवत है जो सेाने का है । दूसरी ओर गन्धमादन है जो माकाल से बातें कर रहा है। इस के उस पार हम लोगों की पति नहीं है ।
६ब्य
राम - ( बारों ओर देखके अबरज से ) यह क्यों सारी पृथ्वी अकस्मात् देख पड़ने लगी है। और संसार को सब वस्तु स्पष्ट दिखाई देती हैं।
सोता अरे यह क्या है। इसे तो मैं ने कभी देखा ही नहीं यह तो न मनुष है न पशु ।
राम-रानो यह घोडमुहें किन्नरों का जोड़ा है इस देश में ऐसे ही जीव चलते हैं ।
विमषण - यह तो सामने हो या रहे हैं हो न हो कुबेर ने मेजा है।
[ किन्नरों का एक जोड़ा आता है )
किन्नर - महाराज दिनकरकुलचन्द्र रामचन्द्र, हम लोग धनेश जी की आज्ञा से आप की स्तुति करने अयोध्या को जा रहे हैं सो हमारे भाग्यों से आपका दर्शन बीच दो में हो गया । हमें लोगों की पराधीनता भी धन्य है ।
( दोनों प्रदक्षिणा करके प्रणाम करते हैं )
किन्नर - ज्ञानिहंग के हित कमलाकर । दीनवन्धु कुलकुदसुधाकर । जन्म प्रन्न सन जो घबराने । गुनें से मुजस तुम्हार सयाने
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