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________________ मह व वरना ལུགཙ《 ཤུ སྨaཔ ཨོཾཡེ, དུ་ { नये रहे हैं, का दुस्सारी जोज का दिन कारखी। बहुना हिये न रही। विश्वास हाय दूर कर दिये । धर्म शास्त्र में माइंड भी पान का प्रारचित्त है : महामा बलिष्ट या कहने । यापही लोगों ने धर्म रचा है, तो मार के वक्त गंभीर और वावन मोन हों। दश महामा परशुराम जो! सहज पवित्र शरीर, महि पावन कर काज है ।। पावक तीरथ नीर, शुद्ध और से हो नाहि परशुरु --- धरती माता तू हमें अपनी माद में जाह दे। जनक-महात्मा जो जो आप प्रसन्न हैं तो इस पवित्र प्रासन पर वैठि कर हमारा घर पवित्र कीजिये। परशु:-आप राजऋषि और सूर्य के शिष्य याज्ञवालमजी के शिष्य है, श्रार की जो इच्छा है वही किया जायगा। (लक बैठते है ) दश:-तुम रहन सुनि तप करत तिन निदर पुर नाम हमलब वृहस्थो में लइत अवकाश नहिं निज काम ते ।। तवचरनपकजइरस कर निज हिय मनोरथ जो रह्यो। निज धन्य पुण्य प्रभाव हम सोइ आनुवहु दित पर जह्यो ।। पत्र परे बचतगति जानु गुन तिन कर कौन बखान । का कोऊ लेहि दै लजम दीन्हो जिन दाम दपलिन को यद्यपि नहीं कटुलेषक कर काज । त किंकर सम सुतनमा शानिय माहि मुनिराज परशुल-भाए लोग ऐसे ही योग्य है इसमें का अचरज है।
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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