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________________ महाबीरचरितमापा लक्ष्म---- हा बह खोहा इहाँ से दूर नहीं है। असे जर्जर होत दिला धुनि फोरदान कासली आई। डेड जयारि कीरन सो अनघोर घटा धुमरो नम काई । भू धार लगो बरसै जाल कुज अंधेरे में राह ल पाई । पेड़द के रसगुन्ध से बालित खोह में बैठि के रैन बिताई ।। मीता-मामहा पाप हाय मुभा प्रभागिनी के कारन हैन इतना दुल सहना पड़ा है। विमी-~-महाराज कावेरी के किनारे का देस देख पड़ता है। अहिवेल के रस चुवत विकसत गवस धन्द कुश में सखि परत गिरि नः विविध धाम पुरान सोखनपुद्ध में। मानिसृष्टिके लायी, तहांसि तत्वज्ञान विचारहीं। पदि वेद विधि अनुसार तप करि ब्राजाति निहारही । से थोड़ो दूर पर लोपामुद्रा समेत अगस्त्यजी विराजते हैं। राम-मा हम लोग अगस्त्यानम के आगे निकल पाये। जिल लहजहि मह सकल सिंचकर बोर सुखाया। हरि बिब्याचलग स्वरोलगि बढ़त छुड़ावा । पाया जो वातापि पेट के प्रवल कसाना ! ऐसे मुनि के चरित करै जग कोन बखाना । हो नमस्कार अवश्य करना चाहिये। ये ऐसे महात्मा हैं कि घट का हाल जानने हैं और इनका प्रभाव अपार है। सब हाथ जोड़ते हैं) काश में ) माइन सङ्ग पाली प्रजा जल निल रहै तुम्हार । तरहै नाम सुमिर तव जन भरमागरपार ॥ राम सुन कर ) का महामुनि को प्रणाम करने से आकाश . आशीर्वाद देतो है । ( सब सुनकर प्रसन्न होते हैं। विभीषण महारान यह देखिये यह सा पम्पासर के पास
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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