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प्राचीन 24 अणिमाला के देश है जहा हम लोग बहुत दिन तक रह चुके है ना मो इसे देहरे को जी नई चाहता।
छेदः एकाह हलदेशिद यह आप वनों खिलोन कालियां तक शर के लगे। ॐके दुन्दुभि हाई करि बरनवहार
इहाँ गति को सोर हनुमतपाल निहार लीता--(भापही मार या मेरा दुपट्टा हनुमान जी के हाथ में मार्गपुत्र ने नही देखा था।
म सुध करके रानी यहीं जम हम लोग तुम्हारे हरे जाने पर व्याकुल फिर रहे थे तो अनसूया का दिया दुपट्टा पहिला चिन्ह मिला था,
दन मह मानहुँ कपूरपागा : এল সৰ্ছ জঙ্গি লা ? हगन हेतु अनुसार बन्दा । तेहि देखत में लहाँ अनन्दा
(लीताल जाती है। लक्ष्मणजी. सुधराज पितु के अड़ मोता।
इह लरि मये पंख भुतता ।
छाँड़ि वृद्धपन जर्जर गाता। ___ लयो बिमल जस तनयवदानास सीता--( श्रापही आप } हाय मेरे कारन ऐसे पसे लोगो की ऐसी दशा हो गई।
सुग्रीव महाराज हम लोग दंडक वन के आगे बढ़े पा रहे
पाये हदन काज नाक कान निज बहिन के }
बिनले सहित समाज वरदूशन निसिराहा , सीता- कौपती हुई ) अरे फिर भी राक्षस सुन्न पड़ते है। राम-रानी डरो मत भव वमका नाम ही रह गया है।