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महावीरचरित मा तोह मखन पख फैलाय । बहु गिद्ध पाबत काय :
सन्मान क्षेत्रमा : शिन, एक निनकी चोइ ! " सम्म अंश रकन नहार हिन्ध अन्तला खटाय: किये सिथिल सकाम शरीर । जिलेत मांस मुनी नो. उद बढ़ास धनि धीर बीरबनिरहे।
अत्र शारू की चोर रह जोहन रन पडे , नलमिलो जादु नादि बटन नन बाल विवाह
इटन र के हाई पर ललि प्रति माह बिदेवर. पदका लत्रा में उतरना कैलाश
सेवक रू नकर सामोरल बैंका। मेघनाद निकाल अनुजसा तग लाये। रन के काज जगाय नींद लोक्त प्रति बोरः ।
कुम्भकर्ण कीरवीच देखिय इकारा कैकसी बन्धु को वर्ष यह विकटम पीछे हो, इन सदन बीच जनु विन्धपिरि निशिचरपति रथ पर के इन्द्रधराज इस भौति बैरी को बढ़ने दुवे देश पर रामचन्द्र जी निडर खड़े हैं। क्यों न हो. होना ही माहिये चत यदाद बहु और जारभार नभासमा डिरें नहीं कुलशैल डाव अपने सन धोरा तनही मर्याद यदि बहुलोर उछारा
খাজ কা কত্ত্ব অভিনিমি ৪ ? चित्र:-देवराज देखो।
धनु डोरि लाये तीर अनुजहि बिनय करत निहारिकै । तजि मेघनादविनाल हित कर विशिन फेरि सुधारक रन चतुर अनुज समेत राक्षलपतिहि बेध वनायक संघुवंशभूपन बार फिरि करि कोप चाप बढ़ायम तो बा कठिन जान पता है कि
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