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प्राचीन नाटक मणिलाला
fe शिवरवर अगनित युद्ध श्रातुर धावही । एक बार प्रवल हथ्यार रविकुलचन्द्र पर बरसावहीं ॥ अजी कुछ भी कठिन नहीं है ।
रथ लागे सुग्रीव, पीछे है अंगद बड़ो | दोऊ और बलसीव. जास्वषात रावणमनुज ॥
ए दो अभिभाव महिमामगम रघुकुलवीर हैं । रिपु अन डारत काटि एकहि बार मारत तोर है । ( चारों ओर देख कर ) क्या यह बन्दर भी बड़ी भरी लड़ाई अपने नाम के अनुसार काम दिखाकर रामबन्द्र हो के पास खड़े है। देखिये तो.
( सोच के ) हनुमान जी छोटे कुमार के साथ हैं ( सोच के ) अत्री वा इsi रहें चाहें उहाँ दोनों ओर से राम हो के पास हैं देखो इन लोगों का
स्वामिभक्ति औ धीरता दिखरावत निज गात । औरत की और दसा रन मैं जानी जात ॥
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इन्द्र-गंधर्वराज संसार में स्नेह भी सारी इन्द्रियों को बस करने का मन्त्र है क्योंकि
गुलबान तेज निधान लक्ष्मिन चतुर रनव्यवहार में । है मेघनाद सूरवीर प्रसिद्ध जस संसार में ॥
इन दुहुन को वुधि राम रावन यदपि तुल्य विचारही । रिपु और सर की वृष्टि, दृष्टि दुहून पर दोउ डारहों || चित्र०—ठोक है बड़े लोग स्नेह नहीं छोड़ते ( अचरज और
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चाव से ) देखिये सुरराज,
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लगें यज से खंड सौमित्र तोरा । करें बेगही घाव भारी गंभीरा ॥ पलक की सेन के वीर कैसे गिरै भूमि पै धावते सैल जैसे | परे खेत में पुत्र थोरै निहारी । तजी राम सों युद्ध. धावा सुरारी ॥ खरै पुत्र जेठो जहां बोर बँका । गयो बेगि भारी घरे विससका