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স্থাষাৰছিল
सातवां अ
स्थान--सुवा, सुचेन पर्य {श्रीरामचन्द्र लक्ष्मण सीता सुनाव श्रादि खड़े हैं :
पुष्पक को आगे किये विभीपण आता है। विभीषण-मैंने श्रीरामबन्दजी को प्रामा दूरी की मार का सत्कार किया अटी.
मुख गिरत गजलधार बारहिवार पी लकीर है। नहिं कत कंकन हाथ में बदलांति कृशिलशन है। सुरलारिटी बन्दि सन मुसुकानि नभ दिसि जात है। इक बेनि बाँधे केस, विचरत महि, भलिन समान है। आगे बढ़बार महाराज रामचन्द्रजो की जय हो, आपने जो शादी थी उनमें से इतनी पूरी की गई।
छोड़े बन्दीलो सब, दीन्ही या सजाय ।
सोने को जजोर घर बहुदिलिद जमाया। यही पुष्पक नाम विमानयाज है,
मन जाने, बस में रहै, रुन गति सब काल :
रहै मनोरथ के सरिस यहि विमान की बात राम-वाह, लंकेश्वर वाह, बहुत अच्छा किया। सुत्रोत्र मित्र सुग्रीव अब क्या करना है। सुग्रीव-फूला गर्न, गत्तम काहु, बन घरे अपारा
कालम जगहृदय पड़त, प्रभु, ताहि उखा मिटो शनिअपमान, बदन आगे जो दोहा।
देड विभोपन राज ताहि घूरन प्रभु कीन्हा । अब तो यही काम है कि हनुमानजी का भरतजी के पास दीजिये : जब हनुमान जी द्रोणपर्वत लेने गये तो उन्होने हाल सुना होगा। सावह बहुत घबड़ा रहे होंगे और आप कर विमानराज की शोभा बढाइये।
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