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शावान नाटक माणसाला
नाव-मले मिले यह अन्य दिन जयहि बचन तुम्हार | शखन तुम कहें निरख कैसे गहीं हथ्यार || कालो -- हँस के } भरे महादत्री क्या तुम हम पर दया करते इसे नहीं है ।
हमरे बारेत सकल जग जाना । निज मुख सम का करें बखाना | तुम नर सदा लय प्रिय जानहु । यहि कर भेद न मन मानहु || जी हठ, देखिय परे पहारा ।
यही वानरत के हथियारा ||
तो खेत मे चलें।
हम-दादा लब तो कह रहे हैं लड़ाई अपनी जाति के धर्म से होती है।
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बाली और राम--( एक दूसरे से )
रहो यदपि मनचाहते लोग बीरसंबाद |
किन तुम बिन रोड है महि, चित यहै बिपाद ||
( बाहर जाते हैं ) लक्ष्मण - अरे धनुष उठाते हो बाली बिगड़ गया । देखो तो, गर्जत मेव समान भयंकर कोपकिये सोइ घावत है । लीलनको ब्रह्मण्ड सबै घुघुतीरङ्ग को मुहँ बात है ।
क में देह की बिजुरीसम पूछ उठाय लफावत है । गर्वसे पूँछ पसारि अकाल में इन्द्रको पुत्र हिलावत है । (परदे के पीछे । विभीषण ! बिभोषण !
नवघन गरज सरिस अति प्रेोरा ।
यह जरूर आई कर सारा ॥ मा यह कह टंकार भयंकर । साध्यो के पिनाक फिरि शङ्कर ॥