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________________ प्राचीन नाक रिमाला दिव्य र इह जन सुनाए। रश्चन मेघनाद दिलि मा हि मानत लखि अन्ति बहराये ! को दोउ तेहि पर आये हुए हाय हाय रघुवंशी इस से बड़ा संसदमा जान पड़ता है। नशन अति विषम मनन नागफोन चला गति होकि शारड़वाद हनि ज्यों कान ताहि गिरथ ऊ सो केपि शक्ति शतानि सिलबलाय उर मह सारे। महि पिरत वेध तखन पोनकुमार कपाट संसार चित्र- देवराज जी बड़ी अद्भुत माद हो रही है, एक ओर तो विनोपन से छोटे भाई की मूळ का हाल सुनकर श्रीरामचन्द्र जी रचित महणाले कैसा हो गया है और तेज दब सा गया है और एक ओर से ऐसे दुभ में पड़े हुये के भी कुम्भकर्ण सेना समेत चारों ओर से घेरे है। लेा रामचन्द्रजी ने लक्ष्मण को देखने के लिये कैला उपाय किया है देखो, निपुर विजय के काल धरी जो शम्भु सरीरा। স্বস্থি অদ্বি জ স্থায় স্ত্রী দুবাল হলী राजन अनुजहि खंड लंड कीन्हे निज बानन । जारि तातु इज अनुज पास आये आतुर मन ।। ( देख के ) अहा! हा ! रघुनाथ जी का भाई पर स्नेह कैसा है भाई की सी दशा अपनी ही रही है (चारों ओर देख करहर्ष से बाह : कैसी अच्छी बात हुई है जब यह दोनों दुखसागर में पड़े हैं तभी रासन परिधार समेत कुम्भकर्ण के मारे जाने से व्याकुल होरहा है (फिर देख के } अरे क्या अभी तक मूर्ख नहीं गई. इनका बेसुध होना तो बड़े ही कुअवसर का हुआ। क्योंकि মাথা খাজুল ই মিন ও মী! बानर रहे सहाय सोठ न्याकुल धरै न घोर । Im
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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