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महावीरचरितमाया बिमो-अजी विमानराज महाराज भाइयों से मिलना चाहते हैं हर जाओ।
विमान उतरता है)
चौथा स्थान --- अयोध्या के बाहर सडक एक ओर से राम लक्ष्मण सीता सुग्रीव आदि और दूसरी और से भरन शत्रन आदि आते हैं।
शाम--- जल्दी ले पांव पड़ते हुए भरत के उठा कर , आओ 'या, लागत ब्रह्मानन्द सम प्रमट रूप यहिकाल । देरे तन को परल यह सीनल मनमृनाल
गले लगाते हैं। (लक्ष्मण पैरों पड़कर भरत से मिलते हैं।
(शत्रुघ्न राम लक्ष्मण को प्रणाम करते हैं । ___ राम, लक्ष्मण-(भरत और शत्रा से अपने कुल में जैसे ग हो गये हैं वैसेही तुम भी हो।
भरत और शत्रुन तोता को दंडवत करते हैं। सीता-मैया जेठे भाई के प्यारे हो ! ___ गम--भैया भरत शत्रुन,
इमर दुखके सिंधु में आये पोत समान ! यह कपोम लंकेल यह धर्मिक मित्र सुजान { सुमीत्र और बिनोश्रा को दिखाते हैं )
। भरत और शान दोनों से मिलते हैं। भरत-माई हम लोगों के कुल गुरू महात्मा बनिनो अभि काप्रबंध करके आपकी राह देख रहे हैं आपकी आज्ञा है
राम---(भापही आप ) महात्मा कौशिक का सी आलर खना चाहिये और वसिष्य जी यह कहते हैं । अच्छा समय प गत बना लेंगे। प्रकाश ) जो कुलगुरु की आज्ञा ।।
सष षाहर जाते है