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________________ २० प्राचीन कविला विक्रम के बड़े नत्र फान अ नाही तो यह तो कल है मुति दिन तुम्हारइति" केला की हुई है। मात्यदेवी h बाइस से कहने की और बात है परशुराम जी है न जब जोग विद्या बीर्थ जति विज नहं भाषिकै । हो सो पैक मिल्ट र शान्ति विचारिकै ॥ विशतिलक मित्र से इमलन है। करु कष्टुं कान शिवारि है निठुर के हम लन क है । ( सेवा है) सधै न शंकरशिष्य है से तिगुरु । प्रिय हमार है सुबह से जूही दो संग 1} है। तो कोई जो हमारा भला हो हैं । जो कमियों का नाशकरनेवाला जो तो बिना उसे नारे उसका कोध क्यों शान्त होना । यस रान मारा गया और हमारा काम सिद्ध हो गया। जी राजकुमार जीते तो वह महर्षि को कैसे मारेगा ! परशुराम की मुक्ति हुई तो चला भी जैन से हर लेगा। यह और भी बुरा है। शूर्य:- कैले, माल्य० - जामदग्न्य तो जङ्गल का रहने वाला है, वह जो रामचन्द्र को मारे तो फिर वह वैसाही रहा। और जो राजपुत्र उसे बहुत प्रसन्न करके उत्साहयक्ति से उसे जीने तो सब उसे विजयी कहेंगे। उसी लमय देवता लोग उसकी अधिकार दे देंगे। क्योंकि असुरजीतनेवालों का अपमान के साथ सदा कोच लगा दी रहता है t मधि दसकंधर बात नही कोरति जग जाई । क्षत्रियत्रास मरम कोन्ह इनि व्यञ्जन सोई
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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