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________________ प्राचीन नाटक मणिमाला एक तक बहु दोष से युक्त इस इनको जिन एकहि बारा । म के काज से की प्रोति स तान हो महरोग हमारा ! राम- क्यों नहीं अपराध किया कि हथियार उठाके लड़ाई तक कर डाली । PE परशु०यही तो तुमको करना उचित था, अब पानि को दोप केउ मिटैन और उपाय ! राजा चैत्र समान तत्र साधत शस्त्र लगाय || राम- मैं आप की बातों का उत्तर नहीं दे सकता । चलिये इवर चलिये । परशुः --- कहाँ चलें भैया | राम- जहाँ पिता और जनक जो है । (दांत तले जोम दबाके) जहाँ महात्मा वसिष्ठ जो और विश्वामित्र जो हैं । परशु० -वह तो बड़ा कठिन काम है । पर राजा की ब्राझा तो नहीं सकी। ( दोनों बाहर जाते हैं } [ दूसरा स्थान -- जनकपुर में एक डेरा ] ( वसिष्ठ, विश्वामित्र और शतानन्द के साथ जनक और दश 1 आते हैं। दोनों राजा एक दूसरे को मिलते हैं ) जनक - राजा, बधाई है धन्य है जो आप के मैा रामचन्द्र ऐसे हैं । afta water मंगलकारन | नित गून लसत न कछु साधारन ॥ नहिं केवल सुख हैत हमारे ! हैं जग दुःखनिचारनहारे ॥ वसिष्ठ - (विश्वामित्र से मिल कर ) भाई कौशिक । यदि हमरि प्रासीत सों चरिन कीन्ह जो राम । हम सब त्रिभुवन हूँ भये तेहि सन पूरनकाम ॥ विश्वा०-- ऐसो महिमा तो बड़े पुण्यों के प्रभाव से होती है। हम इस के लिये कहाँ तक हर्ष कर सके हैं
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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