Book Title: Kaise Jiye Madhur Jivan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैसे जिएँ मधुर जीवन श्री चन्द्रप्रभ or Personal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैसे जिएँ मधुर जीवन जीवन स्वयं एक तीर्थयात्रा है। इसके प्रति सकारात्मक नजरिया अपनाइये। श्री चन्द्रप्रभ For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौजन्य -संविभाग श्रीमती मन्नीदेवी अग्रवाल की स्मृति में श्री गणपतलाल, बाबुलाल-अनिता, सिल्की, ललित अग्रवाल, . अग्रवाल टेक्सटाईल इंडस्ट्रीज, पाली प्रकाशन वर्ष : अप्रेल 2009 प्रकाशक : श्री जितयशा फाउंडेशन, बी-7, अनुकम्पा द्वितीय, एम.आई.रोड, जयपुर (राज.) आशीष : गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी म. मुद्रक : बबलू ऑफसेट, जोधपुर मूल्य : 20/ For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका हम सभी भाग्यशाली हैं जो हमें मनुष्य के रूप में जीवन जीने का मौका मिला है। जन्म के साथ ही प्रकृति ने हम सभी को अपार क्षमताओं, संभावनाओं और गुणों का भण्डार प्रदान किया है। यह हमारे हाथ में है कि हम इनका उपयोग करके इन्सान के रूप में अपने जीवन को सफल बना सकते हैं अथवा इनकी उपेक्षा करके घोर निराशा तथा असफलता की गर्त में गिर सकते हैं। महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि व्यक्ति ने कितना लम्बा जीवन जिया, महत्त्वपूर्ण यह है कि उसने कैसा जीवन जिया । अपनी सकारात्मक सोच, व्यवहार कुशलता, सौम्य स्वभाव और कार्य करने के तौर-तरीकों में सुधार लाकर व्यक्ति न केवल अपना जीवन सफल और मधुर बना सकता है वरन् अपने सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति को प्रफुल्लित कर सकता है । परम श्रद्धेय पूज्य गुरुवर श्री चन्द्रप्रभ की यह नई मूल्यवान कृति 'कैसे जिएँ मधुर जीवन' जीने की कला सिखाने का अनुपम मार्गदर्शन है। इसका हर पृष्ठ आनन्दमयी जीवन जीने के साथ नये उत्साह और For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊर्जा का संचार करता है। यह पुस्तक एक ही बैठक में सरसरी तौर पर पढ़ी जाने वाली नहीं है, बल्कि धीरे-धीरे पढ़ने, मनन करने और जीवन में उतारने लायक है। जीवन में प्रकाश की किरण पाने के लिए यह पुस्तक प्राची में सूर्योदय की तरह है । यह पुस्तक पढ़ने के साथ लगता है कि सुमधुर और सुव्यवस्थित जीवन जीना कितना सहज है और कितना व्यावहारिक भी । सकारात्मक सोच से ओत-प्रोत इस पुस्तक के गुण-सूत्रों को यदि हम अपने जीवन में उतार लें तो इससे अच्छा धर्म और कर्म नहीं हो सकता । - डॉ. अनिल मेहता राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसे जिएँ मधुर जीवन मेरे प्रिय आत्मनू, प्रकृति के घर से हम सभी लोगों को एक अनमोल संपदा मिली है जिसे हम स्वयं अपना ही जीवन कहेंगे । हर किसी व्यक्ति के लिए स्वयं उसका जीवन बेशकीमती हुआ करता है । प्रकृति के घर से ही हममें से हर कोई एक व्यक्ति अधिसम्पन्न जीवन का स्वामी हुआ करता है 1 शरीर का कोई भी अंग ऐसा नहीं है जिसे हम निर्मूल्य साबित कर सकें। भले ही कहने को हम जीवन को नश्वर कह दें, माटी का खिलौना कह दें, लेकिन यदि जीवन है तो जीवन से जुड़े हुए सारे पहलुओं का मूल्य है । हाथ की हथेली में अगर जीवन ही नहीं है तो अन्य सारी सम्पदाओं के रहने और नहीं रहने का कोई अर्थ ही नहीं है। आदमी की एक हथेली में अगर जीवन है तो दूसरी हथेली में रखा हुआ कंकर भी शंकर की तरह मूल्यवान हो जाता है । अगर हथेली से जीवन चला जाए, तो दूसरी हथेली में चाहे हीरे ही क्यों न रह जाएँ, वे उस व्यक्ति के लिए अपना कोई मूल्य नहीं रख पाएँगे । ऐसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only १ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन के समक्ष तो अगर संसार भर की सम्पदा भी क्यों न हो, पर वह तभी तक मूल्य रख पाएगी जब तक आदमी के पास उसका अपना जीवन सुरक्षित रहेगा। भला जो जीवन इंसान के लिए इतना बेशकीमती हो, क्या इंसान अपने भीतर इस बात का बोध जगा पाता है कि उसका जीवन हर कारवाँ से ज्यादा मूल्यवान है? अब तक यह बात बहुत दफा सुनी है कि जीवन नश्वर है, अर्थहीन है, क्षणभंगुर है, पर मैं जीवन की यह दृष्टि दूंगा कि अगर जीवन है तो जीवन से जुड़े हुए जगत का भी मूल्य है और अगर जीवन ही न रहे तो जगत स्वयं अर्थहीन हो जाता है। वस्तुतः मूल्य है तो एकमात्र जीवन का ही है। जो लोग मृत्यु को सार्थक साबित करने के लिए मूल्य देते हैं, उनके लिए मैं कहूँगा कि मृत्यु मूल्यवान है, तब भी वह निर्मूल्य है। जीवन को पूरे सौ साल तक जीना होता है और मृत्यु पलक झपकते ही आ जाती है, वह हमारा काम तमाम करती है और चली जाती है। जीवन क्षणभंगुर नहीं हुआ करता है। इंसान की मृत्यु ही क्षणभंगुर हुआ करती है। एक वह इंसान है जो मृत्यु को याद कर-कर के मृत्यु की तरफ बढ़ता चला जाता है और दूसरा वह इंसान है जो जीवन का स्मरण करते हुए जीवन के हर दिन को सार्थक करता चला जाता है। उसी का जीवन धन्य हुआ करता है जिसकी आँखों में जीवन की खुमारी रहती है। उसका जीवन अर्थहीन हो जाया करता है जो अपने हर अगले दिन में मौत की घंटी सुना करता है। जिसकी दृष्टि में जीवन है, वह हर आने वाले कल का उपयोग करेगा और आज का भी। जिसकी नजरों में मृत्यु का साया आ चुका है, वह कल का भी उपयोग न कर पाएगा और आज को भी निराशा और घुटन में बिता देगा। एक दिन भी जी, मगर तू ताज बन कर जी। अटल विश्वास बनकर जी, अमर युगगान बनकर जी।। हम अपने हर दिन को सार्थक करें। जीना वही जीना है जो जीने कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का परिणाम दे। जीवन के प्रति रहने वाला विश्वास, जीवन के प्रति रहने वाला सकारात्मक नजरिया ही जीवन में जीवन का अमरत्व ढूँढ़ता है । आपकी उम्र अगर अस्सी वर्ष की हो चुकी है तब भी आप यह न सोचें कि आने वाला कल आपकी मृत्यु का दिन होगा। हम आने वाले कल में भी जीवन को देखें । फिर चाहे शरीर गिर भी क्यों न जाए, लेकिन मृत्यु के बाद भी हम फिर से जीवन के फूल खिला लेंगे । मैंने अपने ही एक बुजुर्ग प्रोफेसर से पूछा था कि 'क्या आप अपनी अस्सी वर्ष की आयु में भी किताबें पढ़ते हैं?' वे कहने लगे, ‘ढलती उम्र में इसलिए किताब पढ़ रहा हूँ कि पता नहीं कब किस क्षण मृत्यु हो जाए? लेकिन मैं चाहता हूँ कि जब भी मृत्यु हो तो मृत्यु के समय भी मेरे साथ ज्ञान का संस्कार जीवित रहे, ताकि जब भी नई काया का निर्माण हो, वापस यह बीज फिर से पुष्पित और पल्लवित हो उठे'। मैंने उन्हें साधुवाद दिया कि आप भविष्य में भी ज्ञान का संस्कार चाहते हैं, आपकी यह सद्भावना आपको फिर-फिर ज्ञान के पुष्कर सरोवर में उतार लाएगी। आज अगर इंसान की आँखों में झाँककर देखें तो पता लगेगा कि उसके लिए जीवन का मूल्य कम हुआ है और मृत्यु का मूल्य ज्यादा हुआ है। किसी की भी आँखों में झाँककर देखें तो सुख का सुकून कम और दुःख की त्रासदियाँ ज्यादा दिखाई देती हैं। बाहर से हँसता-खेलता दिखाई देने वाला हर चेहरा न जाने भीतर से कितना अधिक दुःख और पीड़ा का लावा लिए चल रहा है, यह तो उसकी अपनी ही आत्मा जाने। पर जितना मैं किसी की आँखों को पढ़ सकता हूँ, जितना किसी की आँखों में उतरकर उसके मन के रूपों को देख सकता हूँ, तब तक की ही बात कहूँगा कि आज इंसान के पास सुख कम हैं, दुःख ज्यादा हैं। अगर हजार आँखों को देखता हूँ तो बड़ी मुश्किल से सौ-पचास आँखें ही ऐसी मिलती हैं जिन में सुख का साया हो । जिन आँखों में सुख का स्वर्ग लहराता हो, ऐसी आँखें कम हैं । हर किसी की आँखों ऐसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only ३ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में तनाव, घुटन, संत्रास, चिंता, गलाघोंट संघर्ष और न जाने ऐसे कितने प्रेत दिखाई देते हैं जो आदमी की आँखों में बसे हुए हैं। क्या धरती का इंसान आने वाले कल के लिए जीवन की व्यवस्था कर रहा है? क्या कोई समाज आने वाले कल के लिए समाज का कोई सही उदाहरण प्रस्तुत कर पा रहा है? क्या कोई बुजुर्ग अपने घर में रहने वाले वृक्ष के केवल पत्ते और फल ही तोड़ रहा है या उन्हें सींचने का भी प्रयास कर रहा है ताकि आने वाली पीढ़ी को भी कोई नए-मधुर फल मिल सकें? आदमी ने अपने द्वारा जीवन के इंतजाम कम किए हैं। जबकि उसने विनाशक इंतजाम ज्यादा किए हैं। इस धरती के लोगों के द्वारा अगर किसी में बाँटा जा रहा है तो जीवन कम और मृत्यु ज्यादा बाँटी जा रही है। अगर व्यक्ति अनाज भी खा रहा है, जमीन पर भी रह रहा है तो भी अनाज से लेकर जमीन तक मौत का ही आतंक फैला हुआ है। अगर आदमी अफ़ीम खा रहा है तो ऐसा करके आदमी अपनी छाती को गला रहा है। अगर आदमी तम्बाकू का उपयोग करता है तो वह ऐसा करके अपने लिए कैंसर के नये जंतुओं को पैदा कर रहा है। अगर कोई शराब पीता है तो ऐसा करके वह आँतों को ही गलाने का प्रबन्ध कर रहा है। जीवन के प्रबन्ध कहाँ दिखाई देते हैं? लोग मस्ती के नाम पर मृत्यु के ही तो प्रबन्ध कर रहे हैं। ___ आज कहीं शराब की फैक्ट्रियाँ खुल रही हैं, कहीं शस्त्र बन रहे हैं, कहीं ऐसी दवाइयाँ बन रही हैं जिन्हें खाकर आदमी अपनी आत्महत्या कर सके। आप दिन में कितनी दफा नया जीवन पाने के बारे में सोचते होंगे, कितनी दफा अपनी आत्महत्या करने के विचार कर लेते होंगे, कितनी बार आपको ऐसा लगता होगा कि इससे तो अच्छा था कि मैं मर जाता, पर क्या कभी ऐसा लगता है कि कितना अच्छा होता कि मैं अपने जीवन का निर्माण कर लेता। दुनिया में आज इतनी ‘ओवर किलिंग कैपेसिटी' बढ़ चुकी है कि धरती को एक बार नहीं अगर सात-सात बार - कैसे जिएँ भधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी खत्म करना पड़े तो यह धरती खत्म की जा सकती है। धर्म की पुरानी किताबें कहा करती हैं कि भगवान शिव जब कभी अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं तो धरती पर प्रलय मच जाया करता. है। पर मुझे लगता है कि अब भगवान को यह कष्ट उठाने की जरूरत न पड़ेगी। स्वयं आदमी ने ही प्रलय की आँख को उपलब्ध कर लिया है। हर देश ने, धरती के हर हिस्से ने मृत्यु के इतने इंतजाम कर लिए हैं कि अगर कोई भी देश अपने देश को खत्म करना चाहे तो एक बार नहीं अपितु दस बार खत्म कर सकता है। और अगर किसी और देश को खत्म करना चाहे तो एक बार नहीं अपितु सत्ताईस बार खत्म करने की क्षमता हर किसी देश को उपलब्ध हो चुकी है। हम जरा कल्पना करें, यदि पानी गर्म होता है तो सौ डिग्री सेल्सियस तापमान पर खौलने लगता है, भाप बनना शुरू हो जाता है। पानी भी हवा में उड़ने लगता है। वहीं पानी जो मात्र सौ डिग्री सेल्सियस तापमान पर ही भाप बनना शुरू हो जाता है और पच्चीस सौ डिग्री सेल्सियस तापमान पर लोहा भी भाप बन कर हवा में उड़ने लगता है। दुनिया में मात्र पच्चीस सौ डिग्री सेल्सियस का तापमान हो जाए तो लोहा भाप बन जाएगा। मैं सारी दुनिया से यह सवाल करना चाहूँगा कि अगर एक हाइड्रोजन बम विस्फोट किया जाए तो उस से दस करोड़ डिग्री सेल्सियस तापमान पैदा होता है। तब धरती पर आदमी तो क्या, मिट्टी भी नहीं बच पाएगी। अगर कहीं पर एक हाइड्रोजन बम का विस्फोट होता है तो दस करोड़ डिग्री सेल्सियस तापमान पैदा होता है यानि मात्र पच्चीस सौ डिग्री सेल्सियस पर लोहा भाप बन जाता है तो दस करोड़ डिग्री सेल्सियस तापमान पर तो हमारी राख भी कहीं दिखाई न देगी। सम्भव है, वह भी किसी विस्फोटक ज्वालामुखी का रूप धारण कर बैठे। आज दुनिया में जितने आँकड़े देखने को मिलते हैं उनमें मात्र पचास हजार से ज्यादा हाइड्रोजन बम तो केवल अमरीका और रूस के पास हैं। औरों की बात छोड़ दीजिए। जब केवल एक अणुबम गिराया ऐसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गया था नागासाकी पर और एक गिराया गया था हिरोशिमा पर। मात्र दो बमों का परिणाम यह हुआ कि हिरोशिमा और नागासाकी में मात्र एक ही रात में डेढ़ लाख से अधिक लोग नष्ट हो गए। वहाँ की मिट्टी भी जल गई और भवन ऐसे बिखर गए जैसे किसी रेगिस्तान की धूल हवा के झोंके से उड़कर नीचे बिखरा करती है। हाँ! यह इंसान है जिसने दुनिया में औरों की मृत्यु और आतंक पर ही अपने जीवन के ख्वाब देखे हैं। आज यदि किसी को इस बात का अहसास भी करा दें कि तुम जो खा रहे हो, पी रहे हो, कर रहे हो, उसमें मृत्यु के रसायन छिपे हैं तो इसके बावजूद भी वह बेखबर ही रहेगा। नतीजा यह निकल रहा है कि आदमी अपने द्वारा जीवन को मूल्य देने के काम कम कर रहा है जबकि मृत्यु की तरफ बढ़ने का काम ज्यादा हो रहा है। ___मैं यह कहना चाहता हूँ कि जीवन का अशेष मूल्य है। यह मूल्य तभी आँका जा सकेगा जब हम स्वयं अपने जीवन को मूल्य देंगे। कल एक सज्जन मेरे पास बैठे हुए थे। उनके दाँत ऐसे दिख रहे थे जैसे कोई गंदी डब्ल्यू.सी. हो। ऐसा लगता था मानो उन्हें तीन साल से साफ ही न किया गया है। उन्होंने तो केवल उपयोग ही उपयोग किया है। कई वर्षों से वह इन दाँतों से गुटखा-जर्दा चबाता रहा होगा। ताज्जुब की बात यह है कि आदमी अभी तक यह अहसास ही नहीं कर पा रहा है कि उसके पास छाती है या छाती पर जमा हुआ तम्बाकू का लेप आ चुका है। अब उसके पास छाती न रही, हड्डियाँ न रहीं, कोई ढाँचा भर खड़ा रह गया है। क्या इंतजाम किए हैं हमने? ___अगर कोई पूछ ले कि तुम अपने बेटे को क्या जर्दा खिलाना चाहते हो? हम कहेंगे 'नहीं'। बेटे के लिए तो हम यह नहीं चाहते कि वह जर्दा खाए, पर अपने लिए आप जरूर खाना चाहते हैं। ऐसा करके हमने अपने लिए मृत्यु के ही प्रबन्ध किए हैं। हम इसलिए खाते हैं कि जीवन के प्रबन्ध हो सकें। हम इसलिए नहीं खाते हैं कि ऐसा करके हम मृत्यु के प्रबन्ध करें। ___कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या आप चाहते हैं कि आपका आने वाला कल आपको एक नशेड़ी कहे, एक शराबी कहे? अगर आप चाहते हैं कि आपका बेटा गौरव के साथ आपका नाम ले सके तो गौरव को आपको आत्मसात् करना होगा तथा घर-परिवार में अपनी संतान को वैसा वातावरण देना होगा। दुनिया के एक बहुत मशहूर आदमी हुए हैं जिनका नाम था अल्फ्रेड नोबल। अल्फ्रेड नोबल के नाम से ही नोबल पुरस्कार सारे विश्व में प्रतिष्ठित है। पता है यह नोबल पुरस्कार पैदा कैसे हुआ? नोबल उस आदमी का नाम है जिसने डायनामाइट का आविष्कार किया था। किसी भी चीज का विस्फोट कैसे हो सकता है, इसका आविष्कार किया था। अगर दो अणु हैं या दो मिट्टी के कण हैं तो इन दो कणों में से विद्युत् को कैसे विस्फोटित किया जा सकता है? इसका जिसने आविष्कार किया था, उसी का नाम था अल्फ्रेड नोबल। उसके जीवन में एक अद्भुत घटना घटी। जिस आदमी ने दुनिया में शस्त्रों के आविष्कार के लिए अपनी जिंदगी लगा दी थी उस के नाम पर नोबल पुरस्कार और वह भी शांति के प्रयासों के लिए! घटना अद्भुत घटी। घटना यह घटी कि एक बार जब अल्फ्रेड नोबल बैठे हुए थे तो सुबह का अखबार पढ़कर वे दंग रह गए क्योंकि उसमें उनकी मौत का समाचार छपा हुआ था। अल्फ्रेड नोबल इस बात को देखकर चकित रह गए कि उनके जीते-जी उन की मृत्यु! आखिर ऐसा कैसे हुआ जबकि मैं तो जीवित बैठा हूँ और लोगों ने मुझे शोक-श्रद्धांजलि भी समर्पित कर दी है। उनकी आत्मा की शांति के लिए लोगों प्रार्थना भी कर दी। सरकार ने भी एक दिन के अवकाश की घोषणा कर दी। नोबल को लगा कि जरा मैं देखू तो सही कि लोगों ने मेरे प्रति क्या-क्या बातें कही हैं? मेरे प्रति लोगों के कैसे नजरिये हैं? उसने पूरा कॉलम पढ़ना शुरू किया तो कॉलम पढ़ते-पढ़ते जैसे ही वह अंतिम पंक्ति पर पहुँचा कि चौंक पड़ा। ओह! तो क्या आने वाला कल मुझे इस रूप में याद करेगा? उस कॉलम में यह टिप्पणी की गई थी कि अल्फ्रेड नोबल ऐसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चल बसा जो कि मौत का सौदागर था। तो क्या आने वाला कल अल्फ्रेड नोबल को मौत के सौदागर के रूप में ही याद करेगा, उसकी आत्मा काँप उठी। जिस दिन इंसान को इस बात का अहसास होगा, उस दिन उसकी भी आत्मा बदल जाएगी। तब अल्फ्रेड नोबल ने अखबार वालों को सूचना दी कि 'वह मृत नहीं, जीवित है। लेकिन हकीकत में लोगों ने ऐसे शब्द लिखकर मेरी आत्मा को जगा दिया है। हकीकत में अल्फ्रेड नोबल मर गया और केवल नोबल पैदा हो गया। तब उसने विस्फोटों के विरोध में लिखना शुरू किया। बाद में उसे जो कमाई हुई, उससे उसने नोबल पुरस्कार की स्थापना की। उसके पास जितनी भी संपत्ति थी उसने वह सारी संपत्ति फिक्स्ड डिपॉजिट कर दी और अमरीका सरकार के नाम संपत्ति को सुपुर्द करके यह निर्देश दे दिया कि मेरे मरने के बाद जितनी भी मेरी संपत्ति रहे, उसे बेचकर नोबल पुरस्कार के रूप में जोड़ दी जाए और उस व्यक्ति को नोबल पुरस्कार दिया जाए जो धरती पर शांति और विश्व-विकास में अपनी अहम भूमिका निभा चुका हो। तब से लेकर अब तक इस 'शांति-पुरस्कार' को लेने के लिए न जाने कितने देश और कितने लोग मचला करते हैं, पर शांति तो उसी के जीवन में आती है जिसकी नज़रों में जीवन का मूल्य होता है। ___ इस धरती का भी मूल्य है। मैं नहीं जानता कि मरने के बाद आपको कौन-सा स्वर्ग मिलेगा? अगर खोटे कर्म किए हैं तो आप नरक में ही जाएँगे। क्यों न हम जीते-जी इस पृथ्वी ग्रह को ही सँवारे? हम ऐसे कुछ फूल खिलाएँ जिनसे हमें खुद को भी सुवास मिले और औरों को भी सौरभ और सौंदर्य मिल सके। अगर किसी को इस बात का अहसास होता है कि उसके पास एक अद्भुत बेशकीमती जीवन है तो मैं कहूँगा वह अपने जीवन के प्रति सजग रहे। बार-बार नहीं खिलेगा यह फूल! कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम्हीं तो कहते हो कि अनगिनत पुण्यों के कारण ही तुम्हें यह मनुष्य जीवन मिला है, तो तुम पुण्यमय पुष्प का सार्थक उपयोग क्यों नहीं करते? अपने इस बेशकीमती जीवन को और मधुर बनाकर और अधिक सुंदर और स्वस्थ बनाकर इसका उपयोग किया जा सकता है। मेरे लिए केवल मेरे जीवन का ही नहीं बल्कि आपके जीवन का भी मूल्य है। मैं आपसे इसी कारण कहता हूँ कि हर इंसान का जीवन मूल्यवान है। अस्सी वर्ष की महिला का जीवन भी मूल्यवान है और बीस वर्ष के युवक का जीवन भी मूल्यवान है। मैं मूल्यवान समझू, ऐसा करके मेरा आपके प्रति रवैया और भी अधिक अच्छा बन जाएगा, पर आप अपने जीवन को मूल्यवान समझें तो आपके जीवन जीने के तौर-तरीके ही अलग हो जाएंगे। हम जीवन में जीने की कला हासिल करें। जीवन में मिलने वाली किसी भी कामयाबी के पीछे आखिर आदमी की सोच, आदमी के जीवन जीने की शैली, आदमी के तौर-तरीके ही आधार बना करते हैं। अगर कोई आदमी आपसे आगे बढ़ा हुआ है तो उससे ईर्ष्या न करें। यह सोचें कि जरूर उसके काम करने के तरीके ऐसे होंगे कि जिनके चलते लोग भी उसे चाहते होंगे। तुम अगर अपने तौर-तरीकों को और अच्छा बना सको तो आने वाला कल वह होगा कि सारी दुनिया तुम्हारी तरफ होगी। दोष किसी और को ही नहीं अपितु किस्मत को भी नहीं देना चाहिए। किस्मत उसी का साथ दिया करती है जो अपने तौर-तरीकों को बेहतर बनाने के प्रति सचेष्ट रहा करते हैं। अगर हम अपनी कार्यशैली को ही अपनी किस्मत बना लें तो आने वाला कल हमारा होगा। हम अपने कल के भाग्य-विधाता स्वयं बनेंगे। हम अपने जीवन को देखें। अपने जीवन को जीवन के मूल्य और मूल्यों का प्रबन्धन दें। बेहतर तो यह होगा हर आदमी अपने हर नये दिन की शुरूआत बहुत स्वस्थ मन के साथ करे। हर आज का दिन परमात्मा और प्रकृति की अनुपम सौगात के रूप में हमें मिलता कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। वह दिन, दिन नहीं अपितु ईश्वर के घर से मिला हुआ स्वर्ण-मुकुट है। मेरी समझ से तो हमें मिलने वाले हर क्षण का उतना ही मूल्य है जितना कि सोने के कणों का हुआ करता है। हो सकता है कि जो दिन हमें आज मिला है, वह मृत्यु का दिन भी हो सकता था, लेकिन आज का दिन हमें जीवन का दिन मिला है। शुक्रिया अदा करें जीवन के हर दिन के लिए। अपने हर दिन की शुरूआत इतने स्वस्थ और प्रसन्न मन के साथ की जाए कि दिन, दिन नहीं अपितु ईश्वर की ओर से मिला हुआ वरदान बन जाए। जब भी सुबह आँखें खुलें तो आँखें खुलते ही इतने प्रसन्न हो जाएँ, इतने स्वस्थ मन से अपने दिन की शुरूआत करें कि ऐसा लगे जैसे आँख नहीं खुली है वरन् जीवन की दहलीज पर पुनः जीवन ही मिला है। रात को सोए थे, सुबह उठ गए, यह क्या कम मामूली बात है? बहुत लोग सोते हैं तो सोये के सोये ही रह जाते हैं। हमें जीवन मिल गया, यह क्या कम उपहार है? अच्छा होगा कि आज जो दिन मिला है, उसकी खुशी मनाई जाए। . तुम खुशी मनाते हो साल में दो-चार दिन जब बर्थ-डे आती है या होली-दीवाली आती है। आज का दिन बर्थ-डे का दिन है जो हमें फिर मिला है। तुम जितने खुश हो सकते हो उतने खुश हो जाओ। अच्छा होगा, तुम एक प्रयोग कर ही डालो। आँख खुलते ही अपनी हर सुबह को ईद की तरह प्रेमपूर्वक बनाओ। हर दोपहर को होली की तरह खुशनुमा बनाओ। हर साँझ को दीवाली का सुकून प्राप्त करो। जीवन को ऐसी शांति, मिठास और हर हाल में खुश रहने की कला दो। शुरूआत करें हर दिन की स्वस्थ शुरूआत से। मुस्कुराओ, हर हाल में मुस्कुराओ क्योंकि सौ रोगों की एक दवा मुस्कान ही तो होती है। ___कुछ पल तबियत से मुस्कुराओ। हँसी-ठट्ठा नहीं, केवल मुस्कान। तन-मन में प्रसन्नता का संचार। मानो गुलाब का फूल खिल रहा हो। ऐसी खिलावट हो। पूरे तन-मन में प्रफुल्लता आ जाए। आपके शरीर के हर रेशे में, रक्त के हर कतरे में सुख व सुकून फैल जाए। यह अद्भुत कैसे जिएँ मधुर जीवन १० For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रयोग करके देखो। आपका अभी तक क्रोध नहीं छूटा। चिड़चिड़ापन नहीं छूटा। मैं दावे के साथ कहूँगा कि अगर आप यह प्रयोग कर लें तो आपका गुस्सा काफूर हो जाएगा। सुबह आँख खुलते ही हम दो मिनट तक जी-भर कर अंतर्मन में प्रसन्नता को फैल जाने दें। तुम इतने प्रसन्न रहो कि यदि तुम पूरब दिशा की तरफ झाँक लो तो तुम्हारी मुस्कान को देखकर सूरज भी उग आये। तुम अगर साँझ के समय सोने जाओ तो तुम्हारी मुस्कान को देखकर बादलों से घिरी हुई रात में भी चाँद निकल आए और अगर किसी बगीचे में चले जाओ तो मुरझाए हुए फूल भी खिल जाएँ। तुम अपने हर दिन की शुरूआत इतनी प्रसन्नता के साथ करो, इतने स्वस्थ मन के साथ करो कि जीना, जीना हो जाए। जीना भी आनन्द बन जाए और मरना भी आनन्द ही बना रहे। तब प्रार्थना अपने आप हो जाएगी, क्रोध अपने आप छूट जाएगा, निराशा और घुटन अपने आप चले जाएँगे। तनाव और चिन्ताएँ स्वतः विलीन हो जाएँगे। केवल एक ही काम कीजिए। सुबह उठते ही चित्त में प्रसन्नता का संचार। पहले प्रसन्नता का संचार हो, फिर भगवान को याद करें। मरियल मन से अगर भगवान को याद करोगे तो कुछ भी मिलने वाला नहीं है। यदि हृदय से प्रसन्न होकर भगवान को याद करोगे तो ऐसा लगेगा कि आपके साथी ही भगवान हैं। आपके भीतर, आपके साथ, उसी की छाया, उसी की रोशनी है। दो मिनट का प्रयोग है यह। सुबह-सुबह आँख खुलते ही मस्ती। दो मिनट बैठकर पूरे शरीर में ऐसी मस्ती विस्तृत हो, ऐसी मस्ती फैलाने की कोशिश हो, इस शरीर में कहीं अगर वेदना है तो उस वेदना तक भी मुस्कान पहुँच जाए। आप ताज्जुब करेंगे कि सुबह की मुस्कान का असर आपके पूरे दिन तक जादू जैसा रहता है। जो लोग रोते-झींकते, गर्दन लटकाए हुए अपने दिन की शुरूआत करते हैं, उनका पूरा दिन व्यर्थ ही रोते-झींकते ही बीतता है। व्यक्ति ब्रेड लेने जाता है तो सोचता है कि यदि वह न मिली तो? आप ना-ना करते ऐसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ही जाते हो तो वहाँ से लेकर क्या आओगे? आप अपने कार्य की शुरूआत ही नकारात्मक तरीके से कर रहे हैं। जीवन, जीवन लगता ही नहीं है, बस जी रहे हैं क्योंकि मरे नहीं हैं। लोग उठते हैं सुबह आठ-नौ बजे। वे कहते हैं कि भूत-प्रेत रात में जगा करते हैं, पर अब तो आदमी भी रात में देर से सोने का आदी हो गया है। आदमी दुकान अथवा फैक्ट्री से रात को दस बजे घर आता है, ग्यारह-बारह बजे खाना खाता है, गपशप करता है, रात को एक-दो बजे सोता है और सुबह नौ-दस बजे जगता है। यह तो गनीमत है कि स्कूल वालों की जो स्कूल सुबह लगती है, सो सुबह सात बजे उठना ही पड़ता है। अगर इस देश की सारी स्कूलें दोपहर की हो जाएँ तो यह सारा देश कुंभकर्ण की तरह चैन से सोया रहे। मैं तो शिकायत करूँगा उन स्कूलों से भी जो दस या बारह बजे शुरू होती है। तुम सुबह की स्कूल शुरू करो। इससे देश का भला ही होगा। ___ याद रखो, देर से सोना, देर तक सोये रहना दरिद्रता का कारण है। मैं तो अनुरोध करूँगा कि सूरज उगे उससे पहले तुम भी उठ जाओ। धरती पर फूल खिलें, उससे पहले तुम खिल जाओ। चिड़ियाँए चहचहाहट करें, उससे पहले तुम्हारी चहचहाहट शुरू हो जाए। जो लोग उगते हुए सूरज को देखते हैं, उनका पूरा दिन उगा हुआ रहता है। जो उगते हुए सूर्य को नहीं देख पाते वे हमेशा अस्त होते हुए सूरज को ही देखा करते हैं। जो लोग अस्त होते हुए सूरज को देखते हैं उनका जीवन हमेशा अस्ताचल की ओर जाता है। जो उदित होते हुए सूर्य को देखते हैं, उनका जीवन सदा सूर्योदय की तरह ही बना हुआ रहता है। आप सूर्योदय से पहले उठे, जल्दी उठे तो आगे कुछ काम कर सकेंगे। नौ-दस बजे उठोगे तो तुम्हारे लिए न परिवार का मतलब होगा और न बच्चों का। तुम अपने माँ-बाप की सेवा भी नहीं सँभाल पाओगे। तुम आठ-नौ बजे उठोगे और साढ़े नौ बजे दुकान चले जाओगे। रात को १२ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्यारह बजे लौट कर घर आओगे। तुम्हारा जीवन भी क्या कोई जीवन हुआ? वह तो 'गधाखाटणी' हो गई। गधा आखिर घर से घाट और घाट से घर के बीच ही तो जीता है। हमारी जिंदगी बहुत अधिक गिरवी रखी जा चुकी है। हम बहुत उधार कर चुके हैं। हमारे पास जीवन के नाम पर अब नगद नहीं बच पाई है। बेहतर होगा कि स्वस्थ मन से अपने हर दिन की शुरूआत की जाए और जैसे ही लगे कि अब आँख खुल गई, प्रसन्नता आ गई तो अपने बिस्तर से ठीक वैसे ही खड़े हो जाओ जैसे जूते पुराने हो जाने पर आप उन्हें निकाल कर फेंक दिया करते हैं। आप अपने बिस्तर को समेट कर किनारे रख दें। फिर बैठे न रहें बिस्तर पर। फिर अगर बिस्तर पर बैठे तो आलस्य आएगा, प्रमाद आएगा। जिस बिस्तर पर रात में सोते हो उस पर दिन में भूलकर भी न बैठे। वह आपकी वास्तु और ग्रह-गोचरों को उल्टा करेगा। उठे और उठते ही बिस्तर से किनारे हो जाएँ। उठकर कमरे से बाहर निकल आयें और अपने माँ-बाप को प्रणाम करें, अग्रज भाई-बंधु, दादा-दादी जो भी हैं सबको प्रणाम करें, सबके प्रति आदर-भाव समर्पित करें। आप पाएँगे कि मात्र दो-चार मिनट में ही आपके पूरे घर का वातावरण प्रफुल्लित हो गया है। आप उदास मुँह लेकर कमरे से बाहर आते हैं तो सास भी उदास हो जाती है। आप हँसमुख होकर आएँ ताकि दूसरे भी आपको देखकर हँसमुख हो जाएँ। मात्र दो मिनट में घर का वातावरण स्वर्ग बन जाता है। जैसे ही आप जगें, अपने माता-पिता के पास जाएँ और उनके चरण-स्पर्श करें। इस तरह सुबह की शुरूआत विनम्रतापूर्वक हुई। अल-सुबह का वातावरण आशीर्वादमूलक हुआ। आपने पहला शब्द कहा, 'प्रणाम माँ' और माँ ने कहा, 'जीते रहो बेटे, खुश रहो, फलो-फूलो' । शुरूआत कहाँ से हुई? एक शुभकामना के साथ, एक मंगलकामना के साथ आज के वातावरण की, आपके जीवन में शुरुआत हो रही है। अगर तुम उठे और उठते ही रसोईघर में चले गए, चाय बनाने या जूठे बरतन ऐसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलने के लिए तो तुम्हारे दिन की शुरूआत बेढंग से ही हो रही है। अपने घर के वातावरण को स्वर्गमय बनाने की कोशिश कीजिए। पत्नी है तो आँख खुलते ही पत्नी का भी अभिवादन कर लीजिए। झिझक मत रखिए कि मैं अपनी पत्नी का अभिवादन क्यों करूँ? नहीं, ऐसा कतई न सोचें। पत्नी है तो पति के प्रति, जिसकी भी आँख पहले खुल गई, आँख खुलते ही सुबह का पहला शब्द कौन-सा हो, हर नए दिन में पहला शब्द उच्चारित कौन-सा हो तो मैं कहूँगा, 'नमस्कार'। अगर ऐसा बोलेंगे, ‘कब तक सोए रहोगे, उठ जाओ ना' तो तुम्हारे दिन की शुरूआत ही कटु और उपेक्षित भाषा के साथ हुई। जबकि पहला शब्द ही इतना महत्वपूर्ण हो, इतना भावपूर्ण हो कि आपके कमरे का वातावरण उल्लासमय बन जाए। आपके मधुर शब्द आपके कमरे के वातावरण को निर्मल और मनोरम बना सकते हैं। आप जाएँ अपने माँ-बाप के पास। जाकर उन्हें बड़े सलीके से, प्रेम से धोक लगा दें। मैं पूछना चाहूँगा कि आखिर लोग संकोच क्यों करते हैं अपने माँ-बाप से आदाब अदा करने में। इसमें भला किस बात की शरम है? हमारे पूरे शरीर में ऐसा क्या है जिसे हमने पैदा किया हो। नीचे पाँव के अंगूठे से लेकर ऊपर सिर की चोटी तक क्या ऐसी कोई चीज है जिसे हमने पैदा किया हो? सब कुछ आखिर माता-पिता के द्वारा ही दिया गया है। यह हाथ किसने दिया है?, माँ-बाप ने। यह आँख किसने दी है?, माँ-बाप ने। यह पूरा शरीर किसने दिया है माँ-बाप ने। भला जिससे पूरा जीवन मिला है उसे प्रणाम करने में संकोच कैसा? हम उनकी अन्य तो कोई सेवा कर ही नहीं पाते हैं। कम-से-कम इतना तो कर लें। प्रणाम करके उनकी दुआएँ तो ले लें। आज आम आदमी की जीने की शैली ही ऐसी हो चुकी है कि जब वह अपने माँ-बाप के लिए किसी तरह की सेवाएँ दे ही नहीं पाता, तो कम-से-कम प्रणाम तो किया ही जा सकता है न्। कहते हैं, पुराने जमाने में लोग तो श्रवणकुमार की तरह होते थे और कांवड़ पर माँ-बाप को बैठाकर सारे संसार के तीर्थों की __कैसे जिएँ मधुर जीवन १४ For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यात्रा के लिए ले जाया करते थे। आप तो अपने घर में ही उन्हें सुख से रहने दें तो बहुत है। आप इतना तो कर ही सकते हैं कि सुबह उठकर, अपने माँ-बाप को प्रणाम करें, उनकी दुआएँ ले लें। मरने के बाद उनकी फोटो पर रोजाना मिठाई चढ़ाओगे, धोक लगाओगे, बरसी मनाओगे, ब्राह्मणों को जीमाओगे। इससे तो बेहतर यह होगा कि पहले तुम माँ-बाप की ही थोड़ी दुआएँ ले लो। मरने के बाद दुआएँ उन्हीं को मिला करती हैं, मरने के बाद माइतों की पुण्यवानी उन्हीं के काम आया करती है जो जीते-जी माइतों की दुआएँ ले लिया करते हैं। आप सुबह उठकर माँ-बाप को आदाब अदा किया करें, उनके पाँव की धूल को अपने माथे पर रखी जाए। आखिर माँ-बाप तो अपने घर में जीते-जागते मंदिर हुआ करते हैं। उनके चरणों में स्वर्ग रहा करता है। इसीलिए तो कहावत है कि खाना हमेशा माँ के हाथ से ही खाओ भले ही वह ज़हर ही क्यों न हो। रहना भाइयों में चाहे फिर बैर ही क्यों न हो। बैठो छाया में चाहे वह कैर ही क्यों न हो। खाना माँ के हाथ से, चाहे फिर वह ज़हर भी क्यों न हो। अगर ज़हर भी खाने को मिले तो माँ के हाथ से खाएँ। माँ कभी किसी को ज़हर नहीं दिया करती। माँ गुस्से में भी कभी अपने बेटे की मृत्यु नहीं चाहती। वह जब भी चाहती है बेटे के लिए सौ साल की, हजार साल की चिरायु ही चाहा करती है। तो क्यों न हम सुबह-सुबह उठकर अपने माता-पिता के चरण स्पर्श कर उनकी शुभाशीष ग्रहण करें? बेहतर होगा, हम उन्हें पंचांग नमन करें जिससे उनके हाथ हमारे शीश और पीठ पर आएँ, जिससे उनके हाथों की रेज़ हम पर आ सके। लोग कहते हैं कि हमारे नसीब नहीं बदलते। मैं कहूँगा कि जो व्यक्ति सुबह उठकर अपनी माँ के अंगूठे से अपने सिर का भाग/ललाट अपनी भाग्यरेखा को लगाता है तो उसकी नौ महीने में भाग्य-दशाएँ अनुकूल हो जाया करती हैं। आजमाकर देखें, अगर भाग्य ऐसे जिएँ मधुर जीवन १५ For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनूकूल हो जाएँ तो आने वाली पीढ़ी के लिए भी यह संस्कार देते हुए जाएँ कि ऐसा करने से तुम्हारी भाग्य - दशाएँ बदल गई हैं। जिन लोगों ने भी अपने बूढ़े माइतों की सेवा की है वे भले ही गरीब रहे हों, पर माइतों की सेवा की पुण्यवानी आखिर उनके काम अवश्य आई और उनका घर फिर से नौनिहाल हो गया । आप अपने घर का वातावरण अच्छा बनाएँ, माता-पिता के चरण स्पर्श करें, भाई-भाई एक दूसरे को प्रणाम करें, देवरानी-जेठानी एक दूसरे का अभिवादन करें। घर में आप जितने भी हैं, जो भी हैं, बड़े-छोटे, यह मत सोचें कि बहू ने प्रणाम किया कि नहीं। सास जैसे ही अपने कमरे से बाहर आए, वह कहे, 'बहू नमस्कार'! फिर तो बहू को भी झुकना ही पड़ेगा। अगर छोटे लोग झुक जाएँ तो अच्छा, न झुके तो तुम कुछ ऐसे प्रयोग कर लो जिससे घर के छोटे सदस्य अपने आप झुक जाएँ। तुम अगर ससुर हो, बहू आई है तो कह दो 'नमस्कार, बेटा' । हाँ, अब बहू को मजबूर होना ही पड़ेगा कि वह ससुर के पाँवों की तरफ झुके ओर कहे, 'पापाजी, प्रणाम!' आपके मुँह से उसके लिए आशीर्वाद के शब्द अनायास ही निकलेंगे। आप पाएँगे कि ये जो छोटे-छोटे नुस्खे हैं, आपके पूरे घर के वातावरण को बदल चुके हैं। मैं यह कहना चाहूँगा कि जिस घर में मैं जन्मा, उस घर का एक संस्कार था। पहला संस्कार यह कि सुबह पाँच बजे उठना । अगर छः महीने का बच्चा है, तो उसे भी पाँच बजे जगा दो। अगर वह सोना चाहता है या कोई आदमी बीमार है तो कोई बात नहीं एक बार पाँच बजे जगो, निवृत्ति करो, फिर वापस लेट जाओ । कोई दिक्कत नहीं । पर एक बार तो सुबह पाँच बजे जग ही जाओ। हिंदू धर्म में कहा जाता है कि ब्राह्म मुहूर्त में ही ब्रह्माजी सभी लोगों को अपनी-अपनी किस्मत बाँटने के लिए निकला करते हैं । जो जगे हुए रहते हैं उनकी हथेलियों में किस्मत आ जाती हैं और जो सोए रहते हैं, उनकी किस्मत वापस ब्रह्मा के साथ चली जाती है । सो यही मानकर हम सभी पाँच बजे जगा १६ For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिए जाते, और सुबह उठते ही हम पहले माता-पिता को प्रणाम करते। जैसे ही पाँचों भाई उन्हें पहले प्रणाम करते कि बड़े भाई अब माँ-बाप के पास खड़े हो जाते। हम चार भाई फिर उन बड़े भाई को प्रणाम करते। उनको प्रणाम होता तो दूसरे नम्बर वाले भाई खड़े हो जाते और बाकी के तीन भाई उनको प्रणाम करते। फर्क कितना? किसी में डेढ़ साल का, किसी में दो साल का । कोई ज्यादा फर्क वाली भी बात नहीं होती। फिर तीसरे नम्बर वाला, फिर दूसरे नम्बर वाला, फिर अन्तिम नम्बर वाला, सब खड़े होते जाते । फिर जो भतीजे होते, वे भतीजे भी एक-दूसरे को इसी तरह प्रणाम करना शुरू कर देते । बताऊँ इसका परिणाम क्या हुआ ? इसका परिणाम यह हुआ है कि हमें आज संत - जीवन लिए हुए करीब पच्चीस साल हो गए हैं, पर हमारे मुँह से निकला हुआ हर शब्द घर के लिए पत्थर की लकीर हुआ करता है । हमें उनसे किसी काम को करवाने के लिए पूछना नहीं पड़ता । हम करते हैं और उनको कहते हैं। ठीक इसी कदर, हम संत - जीवन में भी हैं, लेकिन उनके द्वारा कही गई बात हमारे लिए उतनी ही मान्य होती है जितनी पहले होती थी । किसी ने कुछ कहा तो हम उसमें मीन - मेख नहीं निकालते । घर के किसी एक सदस्य ने भी अगर निर्णय ले लिया है तो शेष सदस्य उसका अनुमोदन ही करेंगे। कोई उसमें नुक्ता - चीनी नहीं निकालेगा । घर के हर सदस्य को घर का हर कार्य करने का अधिकार है । अगर नुक्सान होगा तो स्वयं उसे अहसास हो जाएगा और वह दुबारा उस गलती को करने के लिए प्रेरित नहीं होगा । यदि बात-बात में नुक्ता-चीनी निकालते रहेंगे तो भाई-भाई में टकराहट हो जाएगी । पैसे को लेकर कभी भाई-भाई अलग नहीं होते, जमीन-जायदाद को लेकर भी अलग नहीं होते जबकि छोटी-छोटी बातों को न पचा पाने के कारण ही भाई-भाई अलग होते हैं। एक ही पिता का खून आपस में बँट जाया करता है। अच्छा है, अगर सुबह उठकर तुम अपने पूज्यजनों को धोक लगाते हो। भले ही ऐसे जिएँ मधुर जीवन १७ For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज दिन में चार बरतन खड़क चुके हों, लेकिन अगर सुबह उठते ही आपने फिर प्रणाम कर दिया तो तो पहले दिन भाइयों में जो बर्तन खड़के थे, वे सब भुला दिए जाएंगे। मन में आएगा कि अब मैं इसको क्या कहूँ, यह तो मुझे धोक लगा रहा है। अब जो हो गया, सो हो गया। घर का वातावरण वापस अच्छा और सौम्य हो जाता है और उसको बनाने वाले आप स्वयं है। जीवन के स्वर्ग का निर्माता भी व्यक्ति स्वयं है। जितना आप अपने घर के वातावरण को सौम्य और भावपूरित बनाने पर ध्यान दें, उतना ही ध्यान दीजिए अपने स्वयं के स्वास्थ्य पर, और उतना ही ध्यान दीजिए घर की साफ-सफाई पर। गंदगी रोगों को बढ़ाती है। जिस घर में आप रहते हैं वह घर आपके लिए स्वर्ग जैसा बन जाना चाहिए। वातावरण के द्वारा, विचारों के द्वारा, व्यवहार के द्वारा, साफ-सफाई के द्वारा भी। अपने कमरे को ही केवल साफ न रखें। जिस रसोईघर में आप खाना बना रहे हैं उस रसोईघर का हर कोना भी उतना ही साफ-सुथरा रहना चाहिए। और तो और, जिस बाथरूम में आप स्नान करने जा रहे हैं, जिस टॉइलेट में आप निवृत्ति के लिए जा रहे हैं, वह टॉइलेट भी इतनी चमक वाला रहना चाहिए जितना कि आपकी डाइनिंग टेबल रहती हो या ड्राइंग-रूम रहता है। उतनी साफ-सुथरी आप अपनी लेट्रिन को रखिए। ____ हर चीज की साफ-सफाई पर ध्यान दीजिए। कहीं मकड़ी के जाले न बनें। जिस घर में मकड़ी के जाले बनते है उसमें आदमी नहीं रहते। उसमें तो मकड़ियाँ ही रहा करती है। कहीं जाले न हों। बिल्कुल साफ-सफाई, कहीं कचरे का कण न गिरा हुआ रहे, इतनी साफ-सफाई। झाडू-पौंछा लगा हुआ, लैट्रिन, बाथरूम तक बिल्कुल साफ-सुथरे। इतना ही नहीं, घर की सीढ़ियाँ तक और मुहल्ले में जहाँ आप का मकान बना हुआ है, वह सड़क भी इतनी साफ-सुथरी रहे कि हवा के साथ भी सड़क या पर्यावरण के कण आपके मकान में गिरें तो वे १८ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूषित परमाणु न हों, हमारे लिए रोग के कारण न हों । स्वस्थ आरोग्य के लिए स्वच्छता अनिवार्य पहलू है । आप घर को साफ-सुथरा रखिए। महज मारबल लगाने की जरूरत नहीं है । आप यह न सोचें कि मारबल लगाने से मेरा स्टेटस बनेगा, कोई स्तर कहलाएगा, ऐसा नहीं है। झोंपड़ी भी अगर साफ-सुथरी हो तो आँखों को सुहाती है और मकराने भी अगर मिट्टी से जमे हुए या कालिख पुते हों तो बुरे लगते हैं। पाँच लाख की कार में बैठकर आओ। पर यदि कार कीचड़ में लथपथ है तो उसे देखने की इच्छा नहीं होती है। यदि पच्चीस हजार रुपयों के स्कूटर पर बैठकर आओ, पर वह साफ-सुथरा है, तो वह वाहन सुहाएगा । आप जरा नहाकर ऐसे ही बाहर आ जाएँ तो लोग कहेंगे कि क्या बात है भाई ? तू भूत की तरह क्यों दिखाई दे रहा है? बाल वगैरह संवार कर आओ । हम इसलिए बाल संवारते हैं कि लोगों को अच्छे रूप में दिखाई दें। घर में हमेशा साफ-सफाई रखो। ऐसा न हो कि केवल घर में ही साफ-सफाई रहे। अगर किसी धर्मशाला में हों तो उस कमरे में पहले साफ-सफाई करके रुको और जाते समय सफाई करके जाओ। लोग तो जवांई की तरह आते हैं, और जवांई की तरह जाते हैं । धर्मशालाओं को ऐसा समझते हैं जैसे कोई गौशाला है। अरे, तुम उसमें रहे किन्तु तुम्हारे बाद और भी लोग उसमें आकर रहेंगे। तुम अगर किसी धर्मशाला में जाओ, कहीं भी कभी भी जिंदगी में ध्यान रखना कि जाते ही उसे पहले देख लो। अगर वहाँ गंदगी है तो पहले उसमें सफाई करवाओ, फिर जाकर ठहरो और जब रवाना हों तो पंखों को बंद करके, लाइट बंद करके जाओ। उन्हें व्यर्थ में क्यों जलाया जाए? क्या आप व्यर्थ में अपना पेट्रोल जलाते हैं? क्या आप अपने घर में व्यर्थ ही पंखा चला हुआ रहने देते हैं ? नहीं। तो अगर कहीं भी जाओ तो वहाँ की मितव्ययिता, वहाँ की व्यवस्था में अपना सहयोग दो। जाने से पहले लेट्रिन में पानी गिराकर जाओ। अगर लगता है कि कहीं कोई ऐसे जिएँ मधुर जीवन १९ For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पानी बिखर चुका है तो पौंछा लगाकर फिर आप जाएँ ताकि आपके बाद आने वाला जो भी व्यक्ति है, वह आपको साधुवाद दे कि इसमें पहले कोई सही आदमी आकर ठहरा था । इतनी साफ-सफाई और अनुशासन-व्यवस्था रहनी चाहिए । मैं तो यह कहूँगा कि अगर साफ-सफाई भी करो तो ऐसी करो जैसे कोई शेक्सपीयर कविता लिखता है। शेक्सपीयर कितनी बारीकी से, मनोयोगपूर्वक कविता लिखता है । तुम झाडू भी उतने ही मनोयोगपूर्वक लगाओ। तुम इस तरीके से पौंछा लगाओ जैसे कोई बीथोवन गिटार बजा रहा हो और जिसकी एक आवाज सुनकर भी सड़क पर चलने वाले लोग रुक जाया करते हैं और अपने कान लगा लेते हैं । तुम अपनी झाडू और सफाई पर भी इतना ध्यान दो। ऐसा करने से आप अपने आप स्वस्थ और निरोगी रहेंगे। बेहतर होगा, जब आप घर से निकलें तो इस बात का ध्यान रखें कि आप सबके साथ शालीनता के साथ पेश आएँ । इतनी शालीनता के साथ कि जिससे भी आप मिलें, वह आप पर गौरव कर सके । और तो और, आप अपने बच्चे के साथ भी इतनी शालीनता से पेश आएँ कि आपका बच्चा भी आपके प्रति कभी गलत व्यवहार कर ही न पाए । कौन आदमी किस कुल का है, यह उसकी शालीनता, उसके बर्ताव और व्यवहार के द्वारा ही पहचाना जाता है । तुम अगर बात-बात में गाली-गलौच करते हो, गुस्सा, चिड़चिड़ापन करते हो, खीझते हो, हो-हल्ला करते हो तो ठीक है । आप अपने मन में भले ही खुश हो जाएं कि मैं ऊँचा, मैं बड़ा, मैं अमुक पद का हूँ पर औरों की नजरों में तो आपका मूल्य कौड़ी का है । मान लेने की चीज नहीं हुआ करती है बल्कि मान देने की चीज हुआ करती है। मान हमेशा औरों को दो । जितना तुम औरों को मान दोगे, हमारा मान उतना ही बढ़ेगा और केवल खुद ही मान लेना कैसे जिएँ मधुर जीवन २० For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाहोगे तो क्या होगा? मान लीजिए कि यदि यहाँ कोई आदमी किसी को माला पहनाने के लिए खड़ा होता है तो दूसरा आदमी सोचता है कि बार-बार यही आदमी माला पहनाने के लिए क्यों खड़ा होता है? मुझे क्यों नहीं मिलती है यह माला। ताकि मैं भी किसी को इसे पहनाऊँ। मान हमेशा औरों को दीजिए उसे खुद लेने की कोशिश मत कीजिए। मैं तो कम-से-कम यही अर्ज करूँगा कि हमेशा औरों को मान दो। अगर औरों ने तुम्हें मान दिया तो यह औरों का बड़प्पन है, पर तुम्हारा बड़प्पन तब होगा जब तुम औरों को मान दोगे। महाभारत के राजसूय यज्ञ में कृष्ण ने ब्राह्मणों और ऋषियों के चरण धोने का दायित्व अपने पर लिया था। क्या हम इससे समझ सकते हैं कि जीवन में सरलता और विनम्रता का क्या मूल्य है? शिशुपाल की निन्यानवें गलतियों को कृष्ण माफ कर सकते हैं। आप भी क्षमा को हमेशा अपने जीवन के साथ जोड़ें। आप भी किसी की नौ गलतियाँ तो माफ कर ही सकते है ना? गलतियाँ होंगी, पत्नी के द्वारा भी होंगी, पति के द्वारा भी होंगी, किसी के द्वारा कोई भी गलती हो सकती है। आप माफ कर सकें इतना सामर्थ्य तो हर संजीदा व्यक्ति के भीतर होना ही चाहिए। जो अपने गुस्से को, अपनी उत्तेजना को अपने नियंत्रण में रखा करते हैं स्वर्ग उनके लिए हुआ करता है। और यह स्वर्ग उनके लिए भी हुआ करता है जो गलती करने वालों को माफ किया करते हैं। भगवान उन्हीं से तो प्यार करते हैं जो दयालु और क्षमाशील हुआ करते हैं। भगवान से कुछ माँगो तो यह कि भगवान अगर तू कुछ देता है तो हमेशा हमें वह सद्बुद्धि देना जिससे कि हम जीवन का मूल्य समझते रहें और जीवन को इस तरीके से जीएँ कि वह प्रभु का प्रसाद और वरदान बन सके। सफल और सौम्य जीवन के लिए मूल्यवान बात यह है कि हम ऐसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छोटों को देखकर जीएँ, बड़ों को देखकर बढ़े और अच्छे के लिए प्रयास करें। तुम्हारे पास कार है तो स्कूटर पर अपनी नजर रखें, ताकि जो तुम्हें मिला है, उससे तुम असंतुष्ट न रह सको। तुम्हें लगे कि ईश्वर ने तुम्हें औरों से ज्यादा दिया है। अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारे पहनने को जूते नहीं हैं, तो खेद न करें, क्योंकि दुनिया में हजारों लोग ऐसे हैं, जिनके पाँव तक नहीं हैं। ___ बड़ों को देखकर उनसे आगे बढ़ने की प्रेरणा लें। आखिर बड़े लोग किसी कहानी-किस्से के ही हिस्से तो नहीं हैं। वे पूजा के नहीं, प्रेरणा के पात्र हैं। इसी तरह हम अच्छा होने के लिए प्रयत्न करते रहें। बुराई सबमें है, मुझमें भी, आपमें भी, पर हमें अपना प्रयास अच्छा होने के लिए करते रहना चाहिए। ___ जीवन कोई ऐसा नहीं है कि सोमवार को जन्मे, मंगल को बड़े हुए, बुध को विवाह हुआ और गुरु को बच्चे हुए। शुक्रवार को बीमार पड़ गए, और शनिवार को अस्पताल गए और रविवार को चल बसे। जीवन तो स्वयं एक तीर्थयात्रा है। इसे रचनात्मक बनाइये, जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया अपनाइये। जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं? जीवन को जीने के लिए जीवन का ही नजरिया चाहिये, लक्ष्य, विश्वास और जीने का सफल तरीका बस, यही पर्याप्त है। जीवन पोजेटिव हो, परफेक्ट हो। इसी में हमारा कल्याण निहित है। कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवस्थित करें स्वयं को मेरे प्रिय आत्मन्, ___ जीवन एक व्यवस्था है, प्रकृति की एक व्यवस्था। जन्म भी व्यवस्था का एक चरण है और मृत्यु भी। हर संयोग के पीछे भी एक व्यवस्था काम कर रही है और हर वियोग के पीछे भी। हर खिलावट के पीछे भी एक व्यवस्था है और हर मुरझाने के पीछे भी। जीवन और जगत की सारी गतिविधियों के पीछे एक व्यवस्था काम कर रही है। यदि हममें से कोई भी व्यक्ति प्रकृति और उसकी व्यवस्था को समझने की कोशिश करे, तो वह अपने जीवन को भी एक व्यवस्था देने के लिए स्वतः प्रेरित और जागरूक हो जाएगा। संसार में रोशनी बिखेरने के दो ही तरीके हुआ करते हैं, या तो व्यक्ति स्वयं किसी चिराग की तरह बन जाए और अपने आप को ज्योतिर्मय कर ले या फिर अपने आप को उस आईने की तरह बना ले जो दीपक की आभा को अपने में लेकर संसार को प्रतिबिम्बित व्यवस्थित करें स्वयं को For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किया करता है। महत्त्व इस बात का नहीं है कि हम मात्र अपने पूर्वजों पर गौरव करते रहें। मूल्य और महत्त्व इस बात का है कि हमारे पूर्वज भी हम पर गौरव कर सकें । जब तक व्यक्ति अपनी जीवन-शैली को, अपने जीवन की व्यवस्थाओं को बेहतर स्वरूप प्रदान नहीं करेगा, तब तक वह उन ऊँचाइयों का स्पर्श नहीं कर सकेगा, जिन्हें पाने की हर व्यक्ति की ख्वाहिश रहा करती है। अपने आप को व्यवस्थित करना स्वयं व्यक्ति के हाथ में है । जन्म देना प्रकृति के हाथ में होगा, और मृत्यु भी प्रकृति के हाथ में होगी, पर जीवन को जीने की व्यवस्था देना स्वयं मनुष्य के हाथ में है। खुद को व्यवस्थित करना अपने आप में एक बहुत बड़ी साधना है जबकि स्वयं को व्यवस्थाविहीन रखना एक बहुत बड़ी विराधना है । जीवन-व्यवस्था अपने आपमें अनुशासन का पालन है, वहीं व्यवस्थारहित ज़िंदगी महज भटकाव है। हर सफलता के पीछे खुद का व्यवस्थित रहना बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। विफलता का कारण स्वयं की दुर्व्यवस्था ही है । जागरूकता का नाम व्यवस्था है, वहीं लापरवाही का नाम दुर्व्यवस्था है । यह दुर्व्यवस्था ही विफलता का कारण है। व्यवस्थापूर्ण जिंदगी अपने आप में एक बहुत बड़ी क्रान्ति है; एक ऐसी क्रान्ति जो जीवन को एक बेशकीमती हीरा बनाती है और जिसकी चमक सारी दुनिया को प्रेरित, प्रभावित और आंदोलित करती है। जो व्यक्ति अपने जीवन को व्यवस्थित न कर पाया तो यह मानकर चलें कि वह अपने जीवन में अनुशासन न ला पाया है और न ही समाज व परिवार के बीच | किसी भी विद्यालय को बनाना, किसी भी चिकित्सालय या धर्मशाला को बनाना कठिन होते हुए भी आसान है, 1 जिएँ मधुर जीवन २४ For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर उसकी सफाई आदि की व्यवस्था रखना आदमी की बेहतर जीवन-शैली का परिणाम हुआ करती है। 1 मिट्टी और गोबर का आंगन भी आँखों को सुहा सकता है, बशर्ते वह साफ-स्वच्छ हो । ग्रेनाइट और मकराना का आंगन भी आँखों में गड़ सकता है यदि वह साफ - सुथरा न हो । हर इन्सान को चाहिए कि वह अपने आप को व्यवस्था देने के लिए इतना जागरूक रहे जितना कि कोई शेक्सपीयर अपनी कविता के लिए जागरूक रहा करते थे, जितना कि कोई रवीन्द्रनाथ टैगोर अपने गीत के लिए जागरूक रहा करते थे या कोई बीथोवन अपने संगीत एल्बम की रचना के लिए प्रयत्नशील रहा करते थे । व्यवस्थित जीवन को स्वीकारना मैं समझता हूँ कि सैद्धान्तिक जीवन जीने के लिए पहला सार्थक कदम है। आप व्यवस्थित जीएंगे, तो आपसे जुड़े हुए लोग भी व्यवस्थित होना सीखेंगे । हम ही अव्यवस्थित और लापरवाह होंगे, तो यह मानकर चलें कि आपके पास आलसियों की ही जमात इकट्ठी होगी । व्यवस्थित जीवन जीना सफल जीवन जीने के लिए पहला सार्थक कदम है। देखता हूँ कि हर व्यक्ति व्यवस्था तो चाहता है, पर वह व्यवस्था औरों में देखना चाहता है । हर पति अपनी पत्नी को व्यवस्थित देखना चाहता है। हर पिता अपने पुत्र को व्यवस्थित देखना चाहता है व्यक्ति यदि सावधानी नहीं बरतता तो अपने खुद को व्यवस्थित करने में सावधानी नहीं बरतता । I जरा कल्पना करें कि व्यक्ति स्वयं के हाथ से रखी हुई वस्तु को यदि व्यवस्थित रखे तो वह अंधेरे में भी उसे खोज सकता है और यदि वही वस्तु बेतरतीब से रखी जाए तो उसे सूरज की रोशनी में भी नहीं खोजा जा सकता। व्यवस्थित रखी सुई अंधेरे में भी मिल जाती है पर यदि व्यवस्था न हो तो कई दफा ऊँट भी सूरज की रोशनी में नहीं दीख पाता। व्यवस्थित करें स्वयं को For Personal & Private Use Only २५ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने जीवन को, जीवन-शैली को व्यवस्था दे। यदि वह अपने जीवन में कामयाबी और सफलता चाहता है, तो हर व्यक्ति स्वयं को अपनी व्यवस्थाओं के प्रति प्रतिबद्ध बनाए। ___एक कम्पनी का बॉस अपनी चेयर पर बैठा इन्टरव्यू ले रहा था। प्रार्थी क्रमशः नम्बर से आकर इन्टरव्यू देकर चले जा रहे थे। अन्त में एक प्रार्थी बचा था। वह बॉस के कमरे में प्रविष्ट होता, उसके पहले ही उसकी नज़र कमरे के रास्ते में पड़े पेपर-वेट पर पड़ी। उसने सबसे पहले वह पेपर-वेट उठाया और टेबिल पर रखा। फिर वह कमरे में प्रविष्ट हुआ। सामने बैठा बॉस यह सब देख रहा था। बॉस ने उस व्यक्ति का इन्टरव्यू लेना प्रारम्भ किया। उससे उसका परिचय पूछा, उससे उसकी शिक्षा के बारे में जानकारी चाही। उस व्यक्ति ने कहा, 'सर, मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूँ, मात्र मैंने इन्टरमीडियेट कर रखी है। पर मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यदि मुझे सेवा का अवसर दिया गया तो मैं आपकी कम्पनी के लिए उपयोगी साबित होऊँगा।' बॉस ने उस व्यक्ति को अच्छी तरह से देखा और उसे नियुक्ति-पत्र थमा दिया। पचास लोग इन्टरव्यू देने के लिए आए थे, पर उनमें से उस एक का ही चयन हुआ। जब बाकी प्रार्थियों को इस बात का पता लगा तो उन्होंने इस बात का विरोध किया कि एम.ए., एम.कॉम., एम.बी.ए. और ऐसे ही उच्च शिक्षाधारी व्यक्तियों के होते हुए भी कम्पनी मालिक ने एक इन्टरमीडियेट व्यक्ति को नौकरी देकर पक्षपात किया है। बॉस ने जब यह बात सुनी तो उसने कहा, 'मेरे लिए पढ़ाई का ही मात्र मूल्य नहीं है। मेरे लिए महत्त्व इस बात का है कि व्यक्ति जीवन में व्यस्थित कितना है? तुम लोग भी इन्टरव्यू देने कमरे के भीतर आए, पर रास्ते में पड़े पेपर-वेट पर किसी का ध्यान नहीं गया। उसे उठाना किसी ने मुनासिब नहीं समझा। तुम एम.ए. अवश्य हो गए, पर एम, ए, एन (मैन) नहीं बन पाए। २६ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जरूरी है कि तुम बिखरे हुए साजो-सामान को व्यवस्थित करने की अपने में आदत डालो। तुम सुबह उठकर यदि अपने घर में बिखरे हुए साजो-सामान को व्यवस्थित करते हो, तो यह अपने आप में एक छिपा हुआ योगासन है, व्यायाम है। यदि आपका घर, आपका कमरा बिखरा पड़ा है तो वह कमरा या घर चाहे कितना भी सुन्दर क्यों न हो, किसी गरीबखाने या झुग्गी झोपडी से भी बदतर लगता है। वहीं यदि तुम अपने घर या कमरे को व्यवस्थित रखते हो, तो वह किसी जन्नत का उदाहरण बन जाता है। हम जीने को एक व्यवस्था दें, जीने के तरीके और जीवन-शैली को व्यवस्थित रखें। कब उठें, कब सोएँ, कब खाएँ, कब घूमें, कब क्या करें? जो अपने जीवन को इस तरह का एक सिस्टम दे देता है, वह एक दिन में भी अनेक काम निपटा लेता है। कहते हैं, एक व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से एक सद्गुरु के द्वार पर पहुँचा। उसने अन्दर प्रवेश करने के लिए तेजी से दरवाजा खोला, बेतरतीबी से जूते खोले और अन्दर प्रवेश कर गुरु को प्रणाम समर्पित करने के लिए उद्यत हुआ। गुरु ने कहा, 'ठहरो! मुझे प्रणाम समर्पित करने से पहले जाओ उस दरवाजे से माफी मांगो जिसे तुमने बड़ी बेतरतीबी से खोला, उन जूतों से माफी मांगो जिन्हें तुमने बड़ी लापरवाही से खोलकर इधर-उधर फेंक दिया।' व्यक्ति चौंका और बोला, 'जूतों से माफी, दरवाजे से क्षमा, आप कैसी बातें करते हैं?' गुरु बोले, 'वह व्यक्ति कभी आत्मज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होता, जिसे अपने जीवन में जूते खोलने या दरवाजा खोलने तक की शालीनता और सलीका नहीं आता। वह व्यक्ति अध्यात्मज्ञान प्राप्त करने का पात्र कभी नहीं होता, जो स्वयं व्यवस्थित न हो। क्या आपने अभी तक यह सोचा है कि अध्यात्मज्ञान प्राप्त करने का पहला चरण क्या है? मैं कहना व्यवस्थित करें स्वयं को For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाहूँगा-'व्यवस्थित जीवन'। यदि आप अपने जीवन में व्यवस्था चाहते हैं तो मैं कहूँगा कि हम सबसे पहले अपने समय को व्यवस्थित करें। 'प्लीज एडजेस्ट योर टाइम।' समय सबका सूत्रधार है। अब तक तो आपने सुना होगा कि कोई ब्रह्मा है जो सृष्टि का निर्माण करता है, कोई विष्णु है जो जगत का पालन करता है और कोई महादेव है जो सृष्टि का संहार करता है। पर मैं कहना चाहूँगा कि समय ही ब्रह्मा है, समय ही विष्णु और महादेव है। समय ही व्यक्ति को जन्म देता है और समय ही व्यक्ति का पालन और संहार करता है। ___ जो समय की पाबंदी का ध्यान नहीं रखता, उसके द्वारा बाँधी गई हाथ घड़ी, मात्र भार है या फिर हाथ की शोभा भर। हाथ में घड़ी, समय देखने के लिए नहीं वरन् समय पर चलने के लिए बाँधी जाती है। जो व्यक्ति समय पर नहीं चलते, अच्छा होगा वे महानुभाव अपने हाथ से घड़ी उतार कर रख दें। जैसे उदाहरण के लिए अगर आप मुझे सुनने के लिए आते हैं और समय है पौने नौ बजे। यदि आप पाँच मिनट भी लेट हो जाते हैं, तो मैं कहूँगा कि मुझे सुनने से ज्यादा जरूरी है आप अपने आपको समय के प्रति पाबंद करें। मैं समयबद्ध जीवन-शैली की ही प्रेरणा देता हूँ। यदि हम समयबद्ध न हुए तो मुझे सुनना औचित्यपूर्ण नहीं है। ___ बीता हुआ समय लौट कर नहीं आता। जो लहर निकल चुकी, वह निकल चुकी। जो दिया जल चुका, वह जल चुका। जो बात मैं कह चुका, वह कह चुका। उसकी पुनरावृत्ति नहीं होती। समय निकल जाने के बाद व्यक्ति के हाथ लगेगा आधा-अधूरा ज्ञान, आधी-अधूरी समझ, आधी-अधूरी रोशनी और आधा-अधूरा सिद्धांत। हमारे देश में यह बहुत बड़ी दुविधा है कि यहाँ लोग अपने जीवन का मूल्य नहीं समझते, अपने समय का महत्त्व नहीं जानते। समय को कैसे जिएँ मधुर जीवन २८ For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यर्थ गँवा देना, जीवन को व्यर्थ गँवाने जैसा है और समय के एक-एक क्षण का उपयोग जीवन के प्रत्येक क्षण का उपयोग है। अगर आप दुआ चाहते हैं, कि आपको सौ वर्ष की उम्र नसीब हो, तो मैं आपसे पूलूंगा, 'आप सौ वर्ष की उम्र क्यों चाहते हैं?' सौ साल की उम्र लेकर भी क्या करोगे यदि तुम्हें अपने जीवन और समय का सही उपयोग करना नहीं आया। साठ साल की जिंदगी भी बहुत हुआ करती है। एक साल में तीन सौ पैंसठ दिन हुआ करते हैं। एक दिन में चौबीस घंटे, एक घंटे में साठ मिनट और एक मिनट में साठ सैकण्ड। जिंदगी बहुत बड़ी हुआ करती है। जो अपने जीवन के एक-एक पल का पूरा-पूरा उपयोग करना जानता है, उसे पता है कि यदि जिंदगी का एक दिन भी मिले तो भी वह बहुत विराट् हुआ करता है। __गधे की तरह का आलसी जीवन सौ साल का भी व्यर्थ हुआ करता है और कछुए का दस दिन का जीवन भी सार्थक हुआ करता है। तत्पर बनिये। यहाँ तो बस स्टैण्ड पर जाओ तो बस लेट, रेल्वे स्टेशन पर जाओ तो ट्रेन लेट, हवाई अड्डे पर जाओ तो हवाई जहाज लेट, शादी में जाओ तो शादी लेट, प्रवचन, सत्संग या किसी धार्मिक महा-पूजन में जाओ तो वह भी लेट। लोग मानकर चलते हैं कि जो समय दिया है, उससे एक-आधा घण्टा तो लेट होगा ही। दो बजे का समय दिया है तो लोग तीन बजे का मानकर ही चलते हैं। जरा स्मरण करो उन लोगों का जो समय के पाबंद होने के नाते दो बजे समय दिए जाने पर दो बजे ही पहुंचते हैं। वे लोग बद्दुआ देते हैं उन आयोजकों को, उन लेटलतीफ़ों को जिनके कारण उनका समय बर्बाद होता है। कार्ड में समय छापते हैं, दो बजे का और चार बजे तक कार्यक्रम का पता ही नहीं रहता।। एक बार पति-पत्नी में झगड़ा हो गया। पति गुस्से में आकर बोला, व्यवस्थित करें स्वयं को For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मुझे गुस्सा मत दिलाओ, वरना मैं कुछ कर लूँगा।' पत्नी भी गुस्से में थी, बोली, 'मुझे परवाह नहीं, जाओ जो करना है वह करो।' पति ने कहा, 'मैं सचमुच जा रहा हूँ और ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर लूँगा।' पत्नी ने तैश में जवाब दिया, 'मैं कब रोकती हूँ?' __ पति ने कहा, 'मैं जाने के लिए कपड़े बदलता हूँ, तब तक तू चार पराठे बना दे।' पत्नी बोली, 'मरने जा रहे हो, फिर भी पराठे बनाने की कह रहे हो।' पति बोला, 'वह तो ठीक है, पर यदि ट्रेन लेट हो गई तो? मैं मरने जा रहा हूँ, भूखों मरने के लिए नहीं।' ___ जीवन के साथ-साथ समय की पाबंदी, जीवन को व्यवस्थित करने के लिए सबसे पहला मापदण्ड है। समय पर उठो, समय पर सोओ, समय पर खाओ, समय पर पढ़ाई करो, समय पर हर कार्य करो। जो लोग परीक्षा के दिन रात-रात काली करके पढ़ते हैं और सुबह परीक्षा देने जाते हैं, मैं उनसे पूछना चाहूँगा कि तुमने साल भर क्या किया? साल भर क्या तुमने गड्डे खोदे? पढ़ाई तो हमने भी की है, परीक्षा के दिनों, रात को आराम से सोते और सुबह बड़े प्यार से परीक्षा देने जाते। पढ़ाई तो साल भर की जाती है, परीक्षा के दिन तो उस पढ़ाई की कसौटी होती है जो आपने साल भर पढ़ा है। ___ मैं मानता हूँ कि समय अनमोल है। समय यानी जीवन और जीवन यानी समय। समय का उपयोग जीवन का उपयोग है; जीवन का उपयोग समय का उपयोग है। जीवन समय की निर्मिति है। समय जीवन का विस्तार है। समय को व्यस्थित करना, अपने टाइमिंग को व्यवस्थित-सुनियोजित करना जीवन-शैली को ही व्यवस्थित करना होता है। इसे आप यों समझिए। जीवन में एक वर्ष का क्या मूल्य होता है, यह उस विद्यार्थी से पूछिए जो इसी साल फेल हुआ है। एक माह का मूल्य क्या है, यह उस महिला से पूछिए जिसके नौवें माह की बजाय ३० कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आठवें माह में ही बच्चे का जन्म हो गया। एक दिन की कीमत जानने के लिए उस मजदूर से सम्पर्क कीजिए जिसे एक दिन की दैनगी नहीं मिल पाई। एक घंटे की कीमत जानने के लिए सिकंदर को पढ़िए, जिसे सम्पूर्ण साम्राज्य की कुर्बानी देने पर भी घंटे भर की जिंदगी और न मिल पाई। एक मिनट की कीमत क्या है, यह तो वह बता सकता है, जो वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर की इमारत गिरने से ठीक एक मिनट पहले बाहर निकला था। एक सैकेण्ड की कीमत वह तैराक बता सकता है, जो मात्र एक सैकेण्ड के कारण स्वर्णपदक से वंचित रह गया। ___ आप स्वयं को व्यवस्थित करने के लिए समय की पाबंदी को जीवन से जोड़िए। संबोधि-धाम के सचिव हैं श्री महेन्द्र लोढ़ा। उनकी समय की पाबंदी का आलम देखिए कि वे बारह बजकर पैंतीस मिनट पर ही भोजन करते हैं। केवल वे ही नहीं, उनके घर का हर सदस्य भी बारह बज कर पैंतीस मिनट पर ही भोजन करता है। वे बारह बज कर पन्द्रह मिनट पर कहीं भी हों, कुछ भी कर रहे हों, बिना किसी संकोच के, तत्काल खड़े हो जाएँगे और घर के लिए रवाना। कोई टोके या पूछे तो सहज मुस्कुराते हुए कह देंगे कि 'मेरे एक के लेट होने से घर वाले सभी लेट हो जाएंगे। मेरे लेट होने का फल उन्हें भुगतना पड़ेगा।' अब आप समझ सकते हैं कि जो लोग भोजन के इतने पाबंद हैं, वे जीवन के अन्य पहलुओं के प्रति कितने अधिक पाबंद और जागरूक रहते होंगे। __ वे अपने हर दिन की शुरूआत ही सत्संग से, अमृत वाणी से करते हैं। हर सुबह पौने चार से पौने पाँच बजे तक हमें सुनते हैं। एक घंटा कैसेट से सत्संग। ज्ञान की दृष्टि से हमने उन्हें पक्का कर दिया, संकल्प और समय-प्रबन्धन की दृष्टि से उन्होंने अपने आप को पक्का कर लिया। आप आज शाम को धैर्यपूर्वक बैठें। अपने कार्य-कलाप, अपनी आवश्यकता, अपने लक्ष्य और विश्वासों पर मनन करें, फिर देखें कि व्यवस्थित करें स्वयं को ३१ For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप क्या-क्या करना चाहते हैं, उसे एक कागज पर उतार लें और फिर अपने दिनभर के कार्यों का एक सेड्यूल, एक टाइम-टेबल तैयार कर लें। उसके मुताबिक चलने की मानसिकता तथा आप संकल्प-शक्ति मजबूत करें। आप पाएँगे कि आप पहले से अधिक सचेतन/एक्टिव हुए हैं। पहले से अधिक सफल होने लगे हैं। समय-प्रबन्धन के साथ भाषा-प्रबन्धन भी स्वयं को व्यवस्थित करने का दूसरा पहलू है। जो आप बोल रहे हैं, जो आपकी भाषा है, उसे भी व्यवस्थित करने की कोशिश करें। आप देखें कि दिनभर में क्या-क्या बोलते हैं? आपके द्वारा बोले गए हर शब्द का अर्थ हो, आपके द्वारा बोले गए हर शब्द का कोई औचित्य हो। यह जबान कोई दर्जी की कैंची नहीं है, जो बस चलती ही रहे। जबान तो वह है, जिसमें अमृत भी रहता है और जहर भी। कृपा करके ऐसी मज़ाक, ऐसी टिप्पणी, ऐसी निंदा या ऐसा उपहास मत कीजिए, जिससे आपके प्रति लोगों का नजरिया खराब हो। मज़ाक में भी किसी का दिल दुखाना अहिंसा का अतिक्रमण है। अगर ईश्वर ने आपको वाणी दी है तो उसका उपयोग ऐसे कीजिए जैसे कि आप किसी के जन्मदिन पर फूलों का गुलदस्ता उपहार में दिया करते हैं। वाणी तो ऐसी बोलिए कि आपसे बिछड़ जाने के बावजूद, व्यक्ति आपको याद रखे कि 'वाह! क्या मधुर वाणी थी उस व्यक्ति की। कितनी मिठास थी उसकी जुबान पर! ऐसा लगता है कि सुनते ही रहें उस व्यक्ति को।' आप वाणी ऐसी बोलिए जो औरों को शीतलता का अहसास दे। आपको शीतलता अपने आप मिल जाएगी। लोग चापलूसी की चासनी लगाते हैं। मैं कहूँगा कि चापलूसी से बचें, सहज मिठास और माधुर्य को अपनाएँ। मिठास होनी चाहिए जबान पर। कटु वाणी परिवारों को तोड़ती है। परिवार जब भी टूटता है तो वह वाणी के ___कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंयम और गलत प्रयोग के कारण ही टूटता है। लोग समाज की मीटिंग भी करते हैं तो वहाँ ऐसा लगता है जैसे किसी कच्ची बस्ती के लोग आपस में लड़ रहे हों। सुनने वाला कोई होता नहीं है, पर हर आदमी इसलिए तेज आवाज में बोलता है ताकि उस पर ध्यान दिया जाए। पर हक़ीक़त में तेज आवाज में बोलने वाला भी बुद्धू और उस पर ध्यान देने वाला भी बुद्ध। अपनी वाणी का अपनी सीमा और मर्यादा में ही उपयोग कीजिए। ___ आप धैर्य से बोलें, प्रेम से बोलें, संयम से बोलें। कोई सलाह माँगे, तो प्रेम से दीजिए। चलते के बीच लंगड़ी मत मारिए। आप क्यों न वकील ही बन जाएँ। राम जेठमलानी की तरह। वकील छोटी-सी सलाह का भी पाँच हजार का भुगतान लेता होगा। एक आप हैं जो बिन माँगे सलाह बाँटते रहते हैं। आपकी समझ और आपके ज्ञान का मूल्य है। जरूरत हो, तो ही बोलें, अन्यथा शान्त-मौन-सौम्य! ___ कटु वाणी से बचिए। शान्त, विनम्र और मधुर वाणी का उपयोग कीजिए। आप पाएँगे कि आपकी एक मधुर वाणी ही आपकी सफलता और लोकप्रियता में कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। 'ग' से 'गधा' भी होता है और 'ग' से 'गणेश' भी होता है। 'स' से 'सत्य' भी होता है और 'स' से 'सत्यानाश' भी। अक्षर तो एक ही है, पर यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसका उपयोग कैसे करते हैं? आपको याद होगा, महाभारत का वह प्रसंग जब इन्द्रप्रस्थ निर्मित हुआ था। दुर्योधन को भी अन्य लोगों की तरह आमंत्रित किया गया। दुर्योधन ने इन्द्रप्रस्थ में बने राजमहल के अन्दर प्रवेश किया। उसे लगा आगे पानी है अतः उसने अपनी धोती ऊपर कर ली। पर वहाँ पानी तो था नहीं। द्रौपदी यह देखकर हँसी। दुर्योधन ने देखा और उसने अपनी धोती छोड़ दी और वह पुनः आगे बढ़ा जहाँ जमीन नजर आ रही थी। लेकिन असल में वहाँ पानी था। दुर्योधन पानी में गिर पड़ा। यह देखकर व्यवस्थित करें स्वयं को For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रौपदी पुनः हँसने लगी, और एक कटुवचन कह बैठी, 'अंधे का बेटा आखिर अंधा ही होगा' । द्रौपदी का यह एक कटुवचन द्रौपदी के चीरहरण से लेकर महाभारत के युद्ध तक का कारण बन जाता है। मेरा अनुरोध यह है व्यक्ति को अगर बोलना आता है तो वह बोले, अन्यथा मौन रखे। हमें केवल यही नहीं आना चाहिए कि हम कब और क्या बोलें? हमें इस बात की भी समझ होनी चाहिए कि हमें कब और क्या नहीं बोलना चाहिए। दोनों ही की कला हमें आनी चाहिए, तब जाकर हम अपनी भाषा और शैली को व्यवस्थित कर पाएंगे। मछली इसलिए मुसीबत में फँसती है, क्योंकि वह अपना मुँह खोलती है। तुम अगर अपना मुँह बंद रखोगे, तो मुसीबत में नहीं फँसोगे। अगर आपको बोलने की कला आती है, तो बोलिए अन्यथा मौन रहिए। आप जब भी बोलें बड़ी मधुरता से, बड़ी शालीनता से, औरों को मान देकर बोलें। सम्मान को औरों को देकर ही सम्मान को सम्मानित रखा जा सकता है। ___ मान और सम्मान पाकर कोई भले ही अपना ईगो बढ़ाता चला जाए, पर मुझ सरीखा व्यक्ति तो यही कहेगा कि आप मान पाकर नहीं अपितु मान देकर खुश हों। जीमकर नहीं, जिमाकर खुश हों। खुद खाना तन का सुख है और दूसरों को खिलाना मन का सुख है। यह तो स्वयं व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपनी वाणी का उपयोग कैसे करता है? जैसे कि मान लीजिए कि पतिदेव नाश्ता करने के लिए बैठे हैं, वह दो पराठे खा चुके हैं। एक पराठे के लिए वह पुनः आवाज देते हैं। पत्नी कहती हैं, 'अरे! आज आपको क्या हो गया है? दो पराठे खा लिए फिर भी अब और माँग रहे हैं। दो से ज्यादा खाना था तो पहले बताना था।' आप क्या बोले, यह आप जानें, पर आपने अपने पति का खाना हराम कर दिया। आखिर वह सारी मेहनत आपके लिए ही तो कर ३४ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहा है। वह अपने माँ-बाप से, अपने परिवार से आप ही के लिए तो अलग हुआ है। उसने अपने सारे सेक्रिफाइस आप ही के लिए तो किए हैं। अगर आप उसके साथ मधुरता से पेश नहीं आतीं तो वह सारी जिंदगी तनावग्रस्त रहेगा और शायद यह सोचता रहेगा कि ऐसी बीवी से, बीवी न होती तो ज्यादा अच्छा था । और वहीं पति के एक पराठा और माँगने पर पत्नी ऐसा कहे तो कैसा लगेगा, ‘बस एक मिनट में तैयार होता है । आप हाथ मत धोना । यह तवा चढ़ा और यह पराठा बना ।' पति सुनकर यह कहेगा, 'जल्दी नहीं है, धीरज से बना लो ।' खाने वाले को तो जितनी रोटी खानी है, वह तो खाएगा ही। महत्त्व तो इस बात का है कि आप किस भावना, किस प्रेम के साथ उसे खिला रहे हैं। खाने और खिलाने के बीच में रहने वाला वाणी का संतुलन ही व्यक्ति को दुःख या सुख देता है । भोजन न तो सुख देता है, न दुख । बीच में जो हम अपनी भाषा का उपयोग कर रहे हैं, वही सुख और दुःख का कारण बनती है। कहते हैं : बादशाह अकबर ने एक सपना देखा । सपना थोड़ा विचित्र किस्म का था। अतः उनकी जिज्ञासा हुई कि इस सपने का फल क्या होगा? उन्होंने स्वप्नवेत्ता को बुलवाया और अपना स्वप्न सुनाकर उसकास फल जानना चाहा। स्वप्नवेत्ता ने कुछ देर सोचा। फिर बोला, 'हुजूर, इस स्वप्न का तो यही अर्थ है कि आपके परिवार के सभी लोग एक-एक करके आपकी नज़रों के सामने मारे जाएँगे ।' यह सुनते ही बादशाह क्रोधित हो गए और उन्होंने स्वप्नवेत्ता को मौत की सज़ा सुना दी। बीरबल भी वहाँ उपस्थित था । उसे लगा कि ज्यातिषी बेकसूर फँस गया है। उन्होंने बीच-बचाव करते हुए कहा, 'जहाँपनाह, मैं कुछ कहना चाहता हूँ ।' 'बोलो बीरबल ! क्या बात है ?” बादशाह ने कहा । व्यवस्थित करें स्वयं को For Personal & Private Use Only ३५ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'हुजूर, इस स्वप्न का अर्थ तो यह है कि आप अपने परिवार में सबसे अधिक जीएँगे । आपकी उम्र बहुत लम्बी है । ' यह सुनकर बादशाह खुश हो गए और बोले, 'बीरबल, तुमने ऐसा स्वप्न-फल बताकर मुझे खुश कर दिया । बोलो, क्या इनाम माँगते हो ?' बीरबल ने कहा, ' हुजूर इस स्वप्नपाठक को माफ कर दें । वास्तव में यह कहने की कला नहीं जानता। जो कुछ उसने कहा और जो मैंने कहा, उन दोनों का गूढ़ अर्थ तो एक ही है, किंतु कहने - कहने का फर्क है। एक बात से आप नाराज हो गए और दूसरी बात से आप खुश । आप समझ गए होंगे कि सारा फर्क जबान का है । जबान मीठी, जगत मीठा । जबान खारी, जगत खारा । जगत तो आपकी वाणी की प्रतिक्रिया मात्र है । यहाँ मिठास के बदले मिठाए मिलेगी, खटास के बदले खटास । भला, जब वाणी में मिठास लाई जा सकती है, तो खटास लाकर सम्बन्ध क्यों बिगाड़े जाएँ ? जीवन के बेहतर प्रबन्धन के लिए समय- प्रबन्धन, भाषा - प्रबन्धन जरूरी है । इसी तरह जरूरी है बेहतर कार्य - शैली, बेहतर कार्य - प्रबन्धन | आप अपने आप को, अपनी कार्य शैली को व्यवस्थित करने की कोशिश कीजिए। एक नेक सलाह तो यह है कि आप हर कार्य को परमात्मा की पूजा समझ कर करें । काम भी ऐसे करें, जैसे कि कोई प्रार्थना करता है। 'वर्क इज वर्शिप' । जैसे कि कोई प्रार्थना करता है तन्मयता से, आँख बन्द, करबद्ध स्थिति और मात्र अपने प्रभु में ही लीन, ऐसे ही अपने कार्य को तत्परता से करने में तन्मय और लीन हों । एक काम, एक मन । जब खाना खाओ तो मात्र खाना ही खाओ, जब पढ़ाई करो तो पढ़ाई में ही मन हो, जब पूजा करो तो मात्र पूजा में ही दत्तचित्त हों। जब झाडू लगाओ तो तबियत से झाडू लगाओ। मन के भटकते रहने पर ही चूक हुआ करती है । आपको तो फुल्के पर ३६ - For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाथ लगाना है और हाथ गर्म तवे पर जा लगेगा। फुल्का किनारे रह जाएगा। महिलाओं का हाथ जब भी जलता है, उन्हें इस बात का ज्यादा पता है कि हाथ क्यों जलता है? सोचते हैं कुछ, और करते हैं कुछ। भटका मन ही चूक का कारण बनता है। सच है, एक काम, एक मन। अगर आप पढ़ाई करने बैठें तो पढ़ने से पहले पाँच मिनट तक आँखें बंद कर प्रभु को याद कर लें। आप देखेंगे कि प्रार्थना के नाम पर आपने जो एकाग्रता और तन्मयता साधी है, वही आपकी पढ़ाई कि लिए रामबाण औषधि हो गई। हर सुबह घर के सभी सदस्य एकत्रित हो पूजा घर में बैठ जाएँ और पन्द्रह मिनट तक कोई प्रार्थना या गीत समूह में गुनगुना लें। 'अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे चरणों में' या फिर अन्य कोई गीत गुनगुना लें। उसके बाद काम में लगे। ___ मैं तो यह भी कहूँगा कि यदि आप कोई फैक्ट्री चलाते हैं तो फैक्ट्री में कार्य शुरू होने से पहले प्रतिदिन कर्मचारियों को पन्द्रह मिनट प्रार्थना का अवसर अवश्य प्रदान कीजिए। आप यह मत सोचिए कि आपका समय बर्बाद हो रहा है और आपको इस समय का भी भुगतान करना पड़ेगा। आप यह देखकर आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि पन्द्रह मिनट की प्रार्थना के बाद कार्य शुरू करने पर, आपके कर्मचारियों की कार्यक्षमता और फैक्ट्री की उत्पादन-क्षमता दोनों ही बढ़ जाएगी। प्रार्थना ने उन्हें तन्मयता दी, प्रार्थना ने उन्हें एकाग्रता दी और प्रार्थना ने उन्हें समझ दी ‘वर्क इज वर्शिप।' जैसे तुमने प्रार्थना की है वैसे ही अपना कार्य भी सम्पादित करो। _दूसरा अनुरोध यह भी करूँगा कि किसी भी कार्य को छोटा मत समझिए। छोटे से छोटा कार्य भी इस तरह सम्पादित कीजिए कि वह महान् कार्य बन जाए। हर महान कार्य शुरू में छोटे तल पर ही होता है। छोटे-छोटे कार्य मिलकर ही पूर्ण हुआ करते हैं। पूर्णता कभी छोटी व्यवस्थित करें स्वयं को ३७ For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं होती। छोटा होता है काम को छोटा समझना। पूर्ण होता है छोटे काम को भी पूर्णता से पूरा करना। महापुरुष तो अपना ईगो तोड़ने के लिए चलाकर छोटे-छोटे कार्य किया करते हैं। क्या आपको पता है कि महात्मा गाँधी, कभी-कभी हरिजनों की बस्ती में जाकर स्वयं सफाई का कार्य किया करते थे। रामकृष्ण परमहंस भी हरिजनों की बस्ती में जाकर झाडू लगाया करते थे और आप इस बात का इन्तजार करते हैं कि कोई हरिजन आए और आपके शौचालय की सफाई करके चला जाए। जब उस शौचालय का उपयोग आप करते हैं तो दूसरा क्यों उसकी सफाई करे? अपना खाना खाकर जूठी थाली ऐसे ही न छोड़ें। खाने के बाद थाली स्वयं धोकर रखें। ऐसा करने से दो फायदे हुए, एक तो काम का बँटवारा हो गया, दूसरा आपको जूठा बर्तन किसी और से धुलवाने का दोष नहीं लगा। . __ मेरी बात शायद किसी को अखरेगी कि थाली भी हम स्वयं धोएँ। मुझ सरीखा व्यक्ति तो यह भी कहेगा कि यदि समाज में जीमनवारी हो रही है, तो अवश्य खाएँ पर यदि आपकी जूठा छोड़ने की आदत है तो न खाकर जाएँ। खाना खाने के बाद अपनी जूठी थाली अवश्य धोएँ। यदि आप अपनी थाली नहीं धो सकते तो खाना न खाएँ। लोगों को लगेगा कि यह तो हमारे अपमान की बात है कि हम जूठी थाली धोएँ। पर मैं पूछना चाहूँगा कि सुबह-सुबह जब हम निवृत्ति के लिए जाते हैं तो हमारी बैठक कौन धोता है? जब हम हमारी बैठक स्वयं धोते हैं, तो खाने के बाद जूठी थाली क्यों नहीं धो सकते? इसमें कैसा अपमान? कैसी शर्म की बात? तबियत-बेतबियत होने पर ही हमें अपने काम दूसरों से करवाने चाहिए, बाकी तो स्वावलम्बन ही स्वस्थ सुन्दर जीवन की नींव है। जीवन में व्यक्ति स्वावलम्बी बने और अपने कार्य स्वयं सम्पादित करे। जब आप छोटे बच्चे थे तब आपकी माँ आपके कपड़े धोती थी, ३८ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह बात तो समझ में आती है, पर जब आज आप अपना कार्य स्वयं करने में समर्थ हैं तो कपड़े धोने के लिए माँ अथवा पत्नी पर क्यों निर्भर हैं? जब दिनभर के सब कार्य आप निबटा सकते हैं तो अपनी बनियान-लूंगी धोने में कैसी शर्म? अगर आप स्वावलम्बन में विश्वास रखेंगे, तो आपकी संतानें भी स्वावलम्बन का गुण अपनाकर आत्मनिर्भर होने की कला में दक्ष हो सकेंगी। छोटे-छोटे कार्यों को करने से कसरत भी हो गई और घर वालों को सहयोग भी मिल गया। यह हुआ स्वावलम्बी जीवन। हर कार्य अच्छा होता है। एक छोटे से कार्य को भी आप ऐसी तन्मयता और लगन के साथ करें कि यदि वहाँ से कोई देवता भी गुजर जाए तो वह आपके काम की तारीफ किए बिना न रह सके। उसके मुँह से निकले-'शाबास बेटा! क्या सफाई की है!' ___ हम जीने की कला सीखें, अपने जीवन को व्यवस्थित करने की कोशिश करें। प्रतिदिन अपने सभी कार्यों को योजनाबद्ध ढंग से सम्पादित करें। अपने हर दिन को एक सूटकेस बना लें। जैसे सूटकेस में अलग-अलग साइज के दस या बारह खाने होते हैं, वैसे ही अपने पूरे दिन में आपको क्या-क्या करना है, इसकी योजना बना लें। __ सूटकेस के एक खाने में पेंसिल, एक खाने में कॉपी, एक खाने में फाइल, एक खाने में पेन और डायरी रहती है। जैसे ढेर सारा सामान आप एक छोटे से सूटकेस में सजा लेते हैं, ऐसे ही आप पूरे दिन में क्या-क्या करना है, उसकी सूची बना लें और उस प्लानिंग के अनुसार अपने कार्य करें। एक काम अवश्य करें। सुबह जब आप उठते हैं तो फ्रेश होने के बाद, जब आप अखबार पढ़ने के लिए तत्पर होते हैं तो उसके पहले अपनी जेब में एक कॉपी व पेन रख लें और अखबार पढ़ने से पहले अपनी कॉपी में यह नोट कर लें कि आज मुझे क्या-क्या करना है? आज मुझे कहाँ-कहाँ जाना है? कौन से कार्य मुझे व्यवस्थित करें स्वयं को For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज के दिन सम्पादित करने हैं? मैं तो कहूँगा कि यदि आप को शेविंग भी करनी है तो वह भी नोट कर लीजिए। थोड़ी-सी देर में लिस्ट बनती चली जाएगी। आप देखेंगे कि पन्द्रह मिनट में आपने सत्ताईस काम लिख डाले हैं। क्या एक दिन में सत्ताईस काम निबटाए जा सकते हैं? मैं कहता हूँ कि यदि व्यक्ति अपने दिन की शुरूआत सुव्यवस्थित तरीके से करता है तो वह सात दिन के कार्यों को एक दिन में निपटा सकता है। वहीं यदि कोई व्यक्ति बिना जागरूकता के जीता है तो वह एक दिन के कार्यों को सात दिन में भी पूरा नहीं कर पाता । मैंने ऐसे अनेक लोग देखे हैं जो कि दिनभर में किये जानेवाले कार्यों की प्लानिंग अलसुबह कर लेते हैं । वे लिस्ट बना लेते हैं। ऐसे लोग एक दिन में साठ-सत्तर कार्यों को निबटा लेते हैं। बिल्कुल एक सिस्टम चलता है। सुबह उठते ही उनके हाथ में एक लिस्ट होती है कि आज मुझे यह-यह कार्य करने हैं और शाम को जब वह घर लौटते हैं तो उनकी लिस्ट में लिखे लगभग सभी कार्य पूरे हो चुके होते हैं। मैं कहना चाहूँगा कि वह हर व्यक्ति अपने सभी कार्यों को सफलतापूर्वक निपटा लेता है जो सिस्टेमेटिक तरीके से अपने कार्यों को सम्पादित करता है। जब भी कोई कार्य करें प्रेम से करें, उत्साह और तन्मयता से करें। आधे-अधूरे मन से, मरे और बोझिल मन से कोई भी कार्य न करें । विनोबा भावे, जब झाडू भी लगाते, तो बड़े प्रेम से लगाते थे। लोग उनसे पूछते कि आप क्या कर रहे हैं? वह जवाब देते, 'माला फेर रहा हूँ।' लोग चकित हो जाते और कहते 'आप तो बुहारी लगा रहे हैं और बोलते हैं माला फेर रहा हूँ ।' विनोबा कहते, 'जितनी बार बुहारी उठाता और चलाता हूँ, उतनी बार राम का नाम ले लेता हूँ । यही मेरी माला बन जाती है।' आप विनोबा की इस घटना से प्रेरणा ले सकते ४० For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैं । माला और बुहारी साथ-साथ । अगर हम उत्साह के साथ किसी कार्य को करते हैं तो वह कार्य पूर्णता देता है । क्या आपने कभी सोचा है कि एक क्लास में पचास छात्र पढ़ते हैं, दस तो रैन्क में आते है और चालीस ऐसे ही धक्का मार कर पास होते है ? पढ़ाने वाले क्लास टीचर ने कोई भेदभाव नहीं किया। माँ-बाप ने भी पढ़ाने में कोई कंजूसी नहीं की । मेहनत में भी कोई कमी नहीं रही। तो फिर क्या कारण हैं उनके पिछड़ने का ? अन्तर रहा तो मात्र इस बात का कि किस छात्र ने किस पाठ को किस उत्साह और लगन के साथ याद किया । | अपने भीतर उत्साह और लगन पैदा कीजिए, आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी। मैं बताऊँ आपको, आपके जैसा शरीर मेरा है, आपके जैसा ही मस्तिष्क और बुद्धि मेरी है। मैं किसी चीज को एक बार सरसरी निगाहों से देख लेता हूँ, जरूरत पड़ने पर दो बार या फिर अधिक से अधिक तीन बार देख लेता हूँ । मुझे वह चीज हमेशा के लिए याद रहती है। इसका कारण केवल लगन और तन्मयता है । उत्साह - भाव ही मुख्य है। है । जो व्यक्ति अन्तर्मन में उत्साह रखता है, उसने निश्चित रूप से अपनी कार्यशैली को व्यवस्थित कर लिया है 1 मैंने आपको व्यवस्थित जीवन जीने के लिए तीन सूत्र दिये - जीने की शैली को व्यवस्थित करें, समय को नियोजित करें, कार्यशैली को व्यवस्थित करें और चौथा एवं अन्तिम सूत्र यदि कोई दूँ तो वह है 'अपनी सोच को व्यवस्थित कीजिए।' जो सोच, जो विचार और जो चिन्तन आपके भीतर उठ रहा है, वह निश्चित रूप से आपको प्रभावित करता है। गाँधीजी ने अपने तीन बन्दरों के माध्यम से कभी कहा था, 'बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो।' आपके सामने बैठा बन्दर एक बात और जोड़ देना चाहता है 'बुरा मत सोचो।' व्यवस्थित करें स्वयं को For Personal & Private Use Only ४१ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपका हर विचार आपके भविष्य को निर्मित करता है। आपका हर विचार वह बीज है जिस पर आपका जीवन-वृक्ष निर्भर है। आपका हर विचार वह नींव है जिस पर जीवन का भवन खड़ा है। इसलिए अपने विचारों के प्रति सदा जागरूक रहें। यह देखते रहें कि कहीं आपके भीतर नकारात्मक विचार तो नहीं उठ रहे हैं क्योंकि नकारात्मक विचार का अर्थ है अवसाद, चिन्ता, तनाव और दुःखों को आमंत्रण। आदमी जैसा सोचेगा, वैसा उसका व्यक्तित्व निर्मित होगा। यदि सत्य के बारे में सोचेगा, तो सत्य उसके जीवन में आत्मसात् होने लगेगा। यदि शिवम् के बारे में सोचेगा तो, शिवम् जीवन में घटित होने लगेगा और यदि सुन्दरम् के बारे में चिन्तन करेगा तो सौन्दर्य उसके जीवन में उजागर होने लगेगा। आजकल हर व्यक्ति सौन्दर्य को ही चाहता है। सत्य और शिव को चाहने वाले लोग तो थोड़े ही होंगे। आप होठों पर लिपस्टिक क्यों लगाते हैं? सौन्दर्य के लिए। नेल पॉलिश क्यों करते हैं? सौन्दर्य के लिए। पुरुष कमर पर तरह-तरह के बेल्ट क्यों लगाते हैं? सौन्दर्य के लिए। आजकल तो दाढ़ी और मूंछों की भी तरह-तरह की स्टाइल बन गई हैं- फ्रेंच कट, चार्ली चेपलिन कट, हिटलर कट, बच्चन कट, सलमान कट। यह सब भी हम सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए ही करते हैं। ____ आप होठों पर लगी लिपस्टिक पर ध्यान देते हैं, पर होठों के भीतर के सौन्दर्य पर ध्यान नहीं देते। अगर आप सौन्दर्य से ही प्रेम करते हैं तो, अवश्य कीजिए। पर केवल बाहर के ही सौन्दर्य से नहीं बल्कि भीतर के सौन्दर्य से भी प्रेम कीजिए। प्रेम तो पूरी तरह से होना चाहिए, केवल बाहर से नहीं, भीतर से भी। अपने दिल को भी सुन्दर बनाने का प्रयास कीजिए। जो व्यक्ति हकीकत में सौन्दर्य से प्यार करता है, वह कभी भी झूठ नहीं बोलेगा क्योंकि वह जानता है झूठ बोलना अपने आप में असुन्दर कैसे जिएँ मधुर जीवन ४२ For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। जो व्यक्ति सौन्दर्य से प्यार करता है, वह किसी पर बुरी दृष्टि नहीं डालेगा क्योंकि वह जानता है कि किसी पर बुरी दृष्टि डालना कुरूप काम है। जो व्यक्ति सौन्दर्य से प्रेम करता है, वह कभी चोरी नहीं करेगा क्योंकि वह जानता है कि चोरी करना अपने आप में बदसूरत कार्य है हम सौन्दर्य से प्रेम करें। केवल बाहर के सौन्दर्य पर आकर्षित न हों बल्कि अन्तर के सौन्दर्य को भी देखें और उसे उजागर करें । I 1 कहते हैं, एक बार रवीन्द्रनाथ टैगोर अपने बाल सँवार रहे थे । महात्मा गाँधी आधे घण्टे से उनका इन्तजार कर रहे थे । आधा घण्टा बीतने पर भी जब टैगोर नहीं आए तो गाँधी बोले, 'अरे भाई ! बाल सँवारने में और कितना समय लगाओगे ? सत्तर के तो हो गए और अब भी नहाने-सँवारने में इतना समय लगाते हो ?' टैगोर बोले, 'बाल ऐसे सँवार कर देखे नहीं जमे, वैसे सँवार कर देखे नहीं जमे, अब तीसरे तरीके से सँवार कर देख रहा हूँ ।' वह आगे बोले, 'महात्मन्! मैं बाल इसलिए नहीं सँवारता कि मैं सुन्दर दीखूं, वरन् इसलिए अच्छे ढंग से सँवार रहा हूँ ताकि मुझे देखकर किसी को अपनी नाक-भौं न सिकोड़नी पड़े।' शृंगार केवल बाहर का नहीं हो, विचारों का भी शृंगार हो । क्योंकि व्यक्ति जैसा विचार करता है, वैसा उसका वक्तव्य बन जाता है। वक्तव्य व्यक्ति के व्यवहार में आता है, व्यवहार से आदतें बनती हैं और आदतें ही व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करती हैं। अगर आप सुन्दर और बेहतर विचार चाहते हैं, अगर आप सुन्दर और बेहतर व्यवहार और चरित्र चाहते हैं तो मैं कहूँगा कि आप अपने अन्तर्मन को सुन्दर बनाएँ । जब भी सोचें सकारात्मक सोचें, दूसरों की गलतियों को क्षमा करने की उदारता दिखाएँ और उनके गुणों पर ही ध्यान दें। दोषों पर ध्यान न दें। कोई व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता | दूध का धुला (नहाया ) कोई नहीं होता । आप जिसकी सदैव व्यवस्थित करें स्वयं को For Personal & Private Use Only ४३ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमियाँ निकालते हैं, उसे यदि गुणग्राही दृष्टि से देखेंगे तो उसमें भी आपको अवश्य कुछ गुण मिल जाएँगे। कमियों पर ध्यान देना अपने आप में कमीनायत है। अगर मात्र हम कमियों पर ही ध्यान देंगे, तो हम उस व्यक्ति का उपयोग नहीं कर पाएँगे। दुनिया में पता नहीं कब किस गधे की भी गरज करनी पड़े, तब क्यों नकारात्मक सोच रखकर उसे अपने से दूर रखते हैं? __ हर व्यक्ति के प्रति, हर घटना और परिस्थिति के प्रति सकारात्मक नजरिया रखें। यदि नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति को आधा गिलास दूध दिया जाए तो उसकी दृष्टि दूध से भरे आधे हिस्से में बाद में पड़ेगी, उसे खाली हिस्सा अधिक ध्यान में रहेगा। उसे लगेगा, उसे आधा हिस्सा खाली दिया गया है। वहीं एक सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति को आधा खाली गिलास दूध दिया जाए तो उसे लगेगा कि वाह! क्या आतिथ्य सत्कार है, गिलास भर कर दूध दिया जा रहा है। उसकी दृष्टि में गिलास का आधा खाली होना मूल्य नहीं रखता, बल्कि गिलास का आधा भरा होना महत्त्वपूर्ण है। अगर तुम नकारात्मक सोच रखोगे तो तुम्हें हर बगिया में काँटें ही नजर आएँगे। यदि तुम सकारात्मक सोच के मालिक हो तो तुम्हें हर काँटे और कैक्टस के बीच भी किसी गुलाब की सम्भावना नजर आएगी। आप सदैव सकारात्मक सोच रखें। बड़े डाँट भी दें तो यह सोचें कि बड़े नहीं डाटेंगे तो कौन डाँटेगा? यदि छोटों से गलती हो जाए तो यह सोच कर उन्हें माफ कर दें कि गलती छोटे नहीं करेंगे तो कौन करेगा? बड़े हैं तो बड़प्पन रखना सीखिए। तुम अपनी ओर से इतना बड़प्पन अवश्य रखो कि अपने पिता या सास की डाँट बड़ी सहजता से, बड़े सकारात्मक सोच के साथ हजम कर सको। विचार कैसे पॉजिटिव बनते हैं? देखिए, एक उदाहरण देता हूँ। एक शिष्य ने अपने सद्गुरु से कहा, 'भन्ते! मैं भगवान के प्रेम, अहिंसा कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 और करुणा के मार्ग को प्रसारित करने के लिए अंग- बंग देशों की यात्रा पर जाना चाहता हूँ । आप मुझे आज्ञा प्रदान करें ।' सद्गुरु ने कहा, 'वत्स! वहाँ के लोग बड़े क्रूर, निर्दयी और निष्ठुर हैं । वे लोग आदमी के साथ जानवर जैसा व्यवहार करते हैं । तुम किसी अन्य क्षेत्र में जाओं ।' शिष्य बोला, 'जहाँ प्रेम और शान्ति न हो, वहीं अहिंसा और करुणा की स्थापना का औचित्य है । आप मुझे आज्ञा प्रदान करें ।' गुरु ने शिष्य को ध्यान से देखा और कहा, 'वत्स ! तब जाने से पहले मुझे मेरे एक प्रश्न का जवाब देते जाओ । मेरा प्रश्न यह है कि, I यदि वहाँ के लोगों ने तुम्हें गालियाँ दीं, तो तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया होगी ?” शिष्य ने बड़े संयत स्वर में कहा, 'गुरुदेव ! मैं यह सोचूँगा कि यहाँ के लोग तो बड़े ही भले हैं। केवल गालियाँ ही देते हैं, लातें-घूसे और थप्पड़ तो नहीं मारते।' तब गुरु ने कहा, 'अगर उन्होंने लातें - घूसे और थप्पड़ ही मार दिए तब?” शिष्य ने कहा, 'गुरुदेव ! तब मैं यह सोचूँगा कि यहाँ के लोग इतने सज्जन तो हैं कि इन्होंने मुझे लाठियों से नहीं पीटा।' गुरु ने कहा, ‘तब मेरा अगला सवाल यह है कि यदि उन्होंने तुम्हें लाठियों से ही पीट दिया तब तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया होगी ?” शिष्य बोला, 'प्रभु ! तब मैं यह सोचूँगा कि इनमें कम-से-कम इतनी मानवता तो है कि इन्होंने मुझ पर तलवार या कटार नहीं चलाई।' गुरु बोले, 'जाने से पहले मेरे अन्तिम सवाल का जवाब देते जाओ । मेरा सवाल यह है कि यदि उन्होंने तुम पर तलवार या कटार चलाकर तुम्हारे प्राण ही ले लेना चाहा, तो तुम्हारे मन में क्या विचार उठेंगे?' शिष्य बोला, 'सद्गुरु! मैं इसी भावदशा के साथ जा रहा हूँ कि अहिंसा, प्रेम और शान्ति के मार्ग का प्रचार-प्रसार हो । यदि मानवता और धर्म की स्थापना के लिए मुझे अपनी कुर्बानी भी देनी पड़े तो निश्चित रूप से मैं अपने को सौभाग्यशाली समझँगा ।' गुरु ने कहा, ' वत्स! तुम निश्चित रूप से जाओ। तुम जैसे व्यवस्थित करें स्वयं को ४द For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति चाहे जैसे समाज, देश और स्थान पर चले जाएँ, ऐसे लोगों के द्वारा समाज का उत्थान और कल्याण ही होना है। ऐसे प्रबुद्ध व प्रशान्त लोगों के द्वारा ही अहिंसा व प्रेम की स्थापना सम्भव है। विचारना बहुत बड़ी कला है। आप सदैव पॉजिटिव थिंकिंग रखें। जब कभी नकारात्मक विचार आ जाए, उस पर तत्काल विजय प्राप्त करें। आप अपने पड़ौसी के प्रति, अपने माँ-पिता के प्रति, अपने मित्र और प्रत्येक व्यक्ति के प्रति सकारात्मक नजरिया रखें। ___ जो व्यक्ति सकारात्मक सोच या सकारात्मक नजरिया रखता है, वह हर परिस्थिति में खुशहाल रहेगा। उसके मन में किसी के प्रति कोई शिकायत नहीं होगी। पॉजिटिव थिंकिंग जिस व्यक्ति के पास है, वह जहाँ भी जाएगा खुशी लेकर लौटेगा। जिसके पास पॉजिटिव थिंकिंग है, उसने जीने की कला सीख ली है। उसके पास जीवन को व्यवस्थित करने का रूप है। __ अपने आपको व्यवस्थित करना जीवन की एक बहुत बड़ी चुनौती है। कब उठना, कब सोना, कब खाना, क्या पहनना, कैसे बोलना, कब-कहाँ कितने बजे पहुँचना, कब कौन-सा कार्य पूरा करना, कैसे सोचना, कैसा बर्ताव करना यही वे सब बातें हैं जिन पर आप धैर्य से सोचें और अपने आपके लिए कुछ निष्कर्ष निकालें। निष्कर्ष को लागू करें। सफल वही होता है जो खुद को व्यवस्थित रखता है। अच्छा कैरियर बनाने के लिए, प्रभावी और लोकप्रिय जीवन जीने के लिए, सुख और निश्चिंतता को आत्मसात् करने के लिए पहला और आखिरी गुरुमंत्र है, 'पहले स्वयं को व्यवस्थित कीजिए।' कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव सधार, सफलता पाए मेरे प्रिय आत्मन्! ___ सबका अपना-अपना स्वभाव है। बिच्छू का अपना स्वभाव है और संत का अपना स्वभाव। बिच्छू अपना स्वभाव नहीं छोड़ता और करुणा-मूर्ति अपना स्वभाव नहीं त्यागता। तामसी स्वभाव वाला व्यक्ति अपने स्वभाव के विपरीत कुछ भी करेगा तो वह हमारा ध्यान आकर्षित कर लेगा। झूठ बोलने का आदी व्यक्ति अगर कभी सच भी बोलेगा तो झूठ समझा जाएगा। वहीं सच बोलने वाला व्यक्ति झूठ बोलेगा तो वह उसी समय पकड़ लिया जाएगा। स्वभाव यानि अन्तर्मन का गहरा संस्कार। डूबते हुए बिच्छू को बचाने का यत्न करने पर वह बचाने वाले को ही काटता है। यदि कोई पथिक बचाने वाले संत से कहता है, 'तुम छोड़ क्यों नहीं देते इस दुष्ट को? इसका स्वभाव ही है डंक मारना'। संत ने कहा, 'बिच्छू का स्वभाव है आत्मरक्षा के लिए डंक मारना और मेरा धर्म है डूबते हुए स्वभाव सुधारें , सफलता पाएँ For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को बचाना। जब वह अपने धर्म से विचलित नहीं होता, तो मैं अपने धर्म से विचलित क्यों होऊँ?' किसी भी प्राणी के स्वभाव का परिवर्तन संसार के सबसे कठिनतम कार्यों में से एक है। अगर हम अपने स्वभाव को सौम्य और बेहतर बनाने के लिए संकल्पबद्ध और प्रयत्नशील न हों, तो मरते दम तक स्वभाव नहीं बदलता। इंसान अपनी ही आदतों का गुलाम बना रहता है। किसी का आहार-पानी बदलना, खान-पान बदलना, ओढ़ना-पहनावा बदलना, रीति-रिवाज़ बदलना व्यक्ति के लिए आसान है, किन्तु यदि कठिन है तो व्यक्ति के लिए अपना स्वभाव बदल लेना कठिन है। बुद्धि के द्वारा, तर्क के द्वारा, शास्त्र, गुरु, सत्संग के द्वारा या किसी समझदार व्यक्ति की सलाह के द्वारा, जीवन के और सौ-सौ परिवर्तन किये जा सकते हैं, लेकिन जो स्वभाव तुम जन्मजात अपने साथ लेकर आए हो, उसमें परिवर्तन करना ही असली जीत है। जब एक बालक मुझे इस बात की ओर संकेत दे रहा था कि शायद आप सारे विश्व को बदल सकने में सफल हो सकते हैं लेकिन एक आदमी की ओर संकेत करते हुए उसने कहा कि इनके स्वभाव को बदलना किसी के भी हाथ की बात नहीं है। स्वभाव चाहे मेरा हो या आपका स्वभाव तो स्वभाव ही है और स्वभाव में परिवर्तन कर लेना इसी का नाम दीक्षा है। किन्हीं पाँच हजार लोगों के बीच में खड़े होकर किसी गुरु के सान्निध्य में संन्यास ग्रहण कर लेना दीक्षा की औपचारिकता है। दीक्षा वास्तव में तब घटित होती है जब आदमी अपने स्वभाव को जीत लेता है। साधक! हम सब के लिए चुनौती है यह जानना कि हमारा स्वभाव क्या है? तुम अपने स्वभाव से कितने पराजित हो? जिसने अपने स्वभाव को जीत लिया वह जितेन्द्रिय हो गया। जो अपने स्वभाव से हार गया वह केवल पौद्गलिक रहा। मनुष्य का नीचे गिरता हुआ स्वभाव ही उसकी पशुता है जबकि ४८ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊँचा उठता हुआ स्वभाव ही उसकी प्रभुता है । पशु भी हमारा अपना प्रतिबिम्ब है और प्रभु भी हमारा अपना ही आईना है। मनुष्य तो बीच का सेतु है, बीच की कड़ी है। पशु अपने स्वभाव से मुक्त नहीं हो सकता और प्रभु अपने स्वभाव से मुक्त नहीं हों सकता । पशु, पशु से और ज़्यादा नीचे नहीं गिर सकता लेकिन इंसान पशु से भी ज़्यादा नीचे गिर सकता है। प्रभु अपने स्वभाव से और ऊँचा नहीं उठ सकता लेकिन इंसान अगर उठता हुआ स्वभाव वाला हो तो प्रभुता की डगर को भी पार कर जाता है। अगर इंसान अपने-आप पर नियंत्रण न रख पाए तो इंसान केवल भौंकने वाले श्वान की तरह होगा वह डॉग हो जाएगा । लेकिन इंसान अगर सुधर जाए, अपने स्वभाव को उलट डाले तो डॉग उलट कर गॉड हो जाएगा । शब्द बहुत ही सरल है डॉग और गॉड। गॉड गिर कर डॉग बनता है और डॉग ऊपर उठ कर गॉड बनता है । यह आदमी पर निर्भर है कि वह अपने आपको कौन - सा मापदण्ड देना चाहता है? डॉग का या गॉड का । पशुता का या प्रभुता का । मनुष्य पर निर्भर करता है कि आदमी अपने स्वभाव को जीतना चाहता है या जैसा बिगड़ा हुआ स्वभाव है, आदमी तदनुसार जीना चाहता है । कोई भी प्राणी अपने साथ अच्छे स्वभाव को लेकर नहीं आता। हर व्यक्ति अपने साथ स्वभाव में कोई-न-कोई बुराई लेकर आता है। स्वभाव को अच्छा बनाना पड़ता है। अगर आपका तीन साल का छोटा बच्चा है और जैसे ही दरवाजे पर वह किसी कुत्ते को आते हुए देखेगा तो बच्चा उसे रोटी देने के लिए नहीं मचलेगा। वह लाठी उठाएगा और मारकर उसे भगाना चाहेगा। आदमी के स्वभाव में जन्म से ही बुराई है। अच्छा तो उसे बनाना पड़ता है। यहाँ सबके पाँव कीचड़ से सने हैं। सबको ही जीवन-शुद्धि के लिए प्रयत्न करना होगा। मुंडे हुए सर वालों को मन के मुंडन का प्रयास करना होगा । शिव-मंदिर जाने वालों को मन को शिव - सुन्दर बनाना होगा । कोई अगर मुझसे पूछे कि धर्म का औचित्य क्या है ? पुरुषार्थ ४९ स्वभाव सुधारें, सफलता पाएँ For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या नीति का अर्थ क्या है ? तो मैं कहूँगा आदमी एक अच्छा आदमी बन जाए, धर्म की बस इतनी सी अपेक्षा है। धर्म केवल इतना-सा चाहता है कि इंसान पूर्ण इंसान बने । ईश्वर जितना ऊपर उठना हर किसी के लिए सम्भव नहीं है, पर हम सौम्य और निर्दोष इंसान भी बन गए तो यह ईश्वरीय चेतना की ओर बढ़ना ही कहलाएगा। अच्छा होगा, हम दोषों को ढँकने का अंधापन न ढोएँ । अंधा वह नहीं है, जिसकी आँखें नहीं है। अंधा वह है जो अपने दोषों को ढँकता है। हम दोषों को समझें और उनसे मुक्त होने की पहल करें। यह भी याद रखें कि बदलने जैसी अगर कोई चीज है तो वह स्वभाव है। संस्कारित करने की कोई चीज है तो वह स्वभाव ही है। जीतने जैसी कोई चीज है तो वह स्वभाव ही है । अच्छा हो हम दीप जलाएँ, अंधेरे पर क्यों झल्लाएँ ? बेहतर होगा हम अपने स्वभाव को समझें, उसके परिवर्तन का पथ ढूँढें । उस पर चलने का संकल्प संजोएँ । स्वभाव की जीत ही जीवन की सबसे बड़ी आत्म-विजय है कहते हैं, एक संत नौका में विहार कर रहे थे । इस पार से उस पार जा रहे थे कि नौका में सवार कुछ मनचले युवकों ने उस संत के साथ छेड़खानी शुरू कर दी और छेड़खानी इस रूप में, कि संत तो बैठा है शांति से और युवक नदिया में से पानी हाथ में लेते हैं और ऊपर आसमान की तरफ उछालते हैं । संत पर पानी आकर गिरता है । कुछ युवकों को तो इतनी खुराफात सूझी कि बाल्टी भरकर पानी निकाला, आसमान की तरफ उछाला और सारा पानी आकर संत पर गिरा । एक आदमी जो अपने कान में खुजली कर रहा था, उसे यह खुराफात सूझी कि उसने अपना कान छोड़कर संत के कान की तरफ तीली बढ़ाई और लगा खुराफात करने। संत चौंका। वह दूसरे किनारे पर जाकर बैठ गया। युवकों ने डिस्को कैसे जिएँ मधुर जीवन ५० For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डांस करना शुरू कर दिया और लगे नौका पर नृत्य करने। अब तो द हो गई। युवकों के साथ जो युवतियाँ थीं वे भी उनमें शामिल हो गईं और जा-जाकर संत को बार-बार छेड़ने लगीं। बताते हैं कि संत की सेवा में एक यक्ष रहता था। उसने प्रकट होकर नौका को डाँवाडोल करना शुरू कर दिया। सारे युवक घबरा गये । देव ने पूछा, 'कहो संत साहब, क्या आदेश है? आपके एक इशारे पर क्या इन सारे उद्दण्ड युवक और युवतियों को उठाकर नदी में फेंक दूँ?' संत ने कहा 'मेरे भक्त, इन युवकों को उठाकर नदी में फेंकने से क्या फायदा? अगर तुम कुछ कर ही सकते हो तो इनके स्वभाव को बदल डालो | जिस स्वभाव से प्रेरित हो कर ये लोग यह उच्छृंखलता कर रहे हैं । इनका स्वभाव बदलो । हे देव, अगर तुम बदल सकते हो तो उद्दंडो का स्वभाव बदलो । न वध से कुछ होने वाला है और न आत्म-हत्या से । अगर कुछ चमत्कार होगा तो वह स्वभाव के सौम्य बनने से ही होगा ।' एक अच्छा स्वभाव सौ करोड़ की सम्पदा से भी अधिक मूल्यवान होता है। अगर दुनिया में बदलने जैसी कोई चीज है ही तो आदमी स्वभाव को बदल डाले । जहाँ स्वभाव बदला, जीवन अपने आप बदल गया । चर्चित कहावत है, 'दृष्टि बदली कि सृष्टि बदली।' स्वभाव बदला तो स्वभाव बदलने के साथ ही हमारा व्यवहार और हमारा दृष्टिकोण भी बदल गया । स्वभाव बदलना यानी अपने आपको बदलना। जो अपने आपको, अपने नेचर को बेहतर नहीं बना पा रहे हैं, वे न तो अपना कैरियर बना पा रहे हैं और न ही जीवन का कोई मधुर परिणाम उपलब्ध कर पा रहे हैं । वे एक तरह से अपनी आत्म-हत्या कर रहे हैं । स्वभाव बदलने के लिए जरूरी है कि हम पहचानें अपने आप को । पहले चरण में हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे स्वभाव में अमुक-अमुक कमियाँ हैं, अमुक-अमुक खराबियाँ हैं, अमुक-अमुक अवगुण हैं। बगैर स्वीकार किए कोई व्यक्ति अपने स्वभाव-परिवर्तन के स्वभाव सुधारें, सफलता पाएँ For Personal & Private Use Only ५१ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिए संकल्पबद्ध नहीं हो सकेगा। अच्छा होगा कि आप जब ध्यान धरने बैठें तो अपने ही स्वभाव पर ध्यान धरें और पहचानने की कोशिश करें कि आपका स्वभाव कैसा है? यदि किसी की थोड़ी-सी कटु बात को सुनते ही अगर हमारा मन क्रोधित और आग-बबूला हो जाता है तो हम बाहर से इंसान भले ही हुए, पर भीतर से साँड हैं। जैसे किसी साँड को अगर लाल कपड़ा दिखा दें तो वह भड़क उठता है, वैसे ही अगर कोई आपको दो-चार शब्द कह दे और आप भड़क ही उठे तो संभलिएगा और एक बार मनन कर लीजिएगा कि मैं इंसान हूँ या कोई सांड? अगर लगे कि रास्ते में चलते हुए बात-बेबात में आप किसी को टक्कर मार देते हैं, किसी यार - दोस्त से भी अगर मिलने के लिए जा रहे हैं तो सीधा हाथ नहीं मिलाते और पीछे से जाकर पीठ पर जोर की थप्पी मारते हैं तो संभालिएगा ! ऐसा स्वभाव तो साँप का होता है जो चाहे-अनचाहे किसी-न-किसी को डसता रहता है । जरा एक बार यह मनन कर लें कि आपके भीतर कहीं कोई साँप तो नहीं बैठा है । हो सकता है कि रास्ते में गुजरते हुए कीचड़ में पड़े किसी कीड़े को देखकर आप अपनी नाक-भौं सिकोड़ भी लें, पर अगर अपने ही मन की परीक्षा करें तो पहचान लीजिएगा कि जो व्यक्ति दिन-रात लोभ में, निन्यानवें के फेर में पड़ा रहता है, वह कीचड़ का कीड़ा नहीं है तो और क्या है? जैसे कीचड़ का कीड़ा कीचड़ में रस लेता रहता है, वैसे ही हम कहीं अपने राग में, अपनी मूर्च्छा में कीड़े की तरह धँसे हुए तो नहीं हैं 1 इंसान दिखाई देनेवाला व्यक्ति इंसान नहीं होता । उसने ढेर सारे मुखौटे पहन रखे हैं । कुल, जाति, रूप, धन, मद का मुखौटा उतारकर फिर पहचानें अपने आप को कि मैं क्या हूँ, कैसा हूँ और मेरी प्रकृति कैसे जिएँ मधुर जीवन ५२ इस दौर में इंसान का, चेहरा नहीं मिलता । कब से मैं नकाबों की तहें खोल रहा हूँ । For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किस स्वभाव की है? इन्सान अपने आप में समझें कि वह आदमी है या मूर्छा से घिरा हुआ कीड़ा है। आदमी को अपने ही स्वभाव को समझना होगा कि उसके भीतर कहीं कोई चंडकौशिक तो नहीं बैठा है। साधक साध ना इसलिए कर रहा है ताकि चंडकौशिक रूपान्तरित होकर भद्रकौशिक. हो जाए और उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन हो जाए। अगर आप मेरे पास सात दिन रह कर आठवें दिन अपने घर पहुंचे और वहाँ विपरीत वातावरण पाकर भी आपके हृदय में करुणा और कोमलता रखें है तो आपका मेरे पास रहना सफल और सार्थक हुआ। अगर किसी के द्वारा की गई गलती को आप अपने हृदय से माफ कर दें तो भी यहाँ रहना सफल हुआ। अगर अपने नौकर के द्वारा की गई गलती पर आपने आक्रोश न किया, तो साधना सार्थक हुई। अपने ही पड़ौसी द्वारा आपका स्कूटर बिना पूछे लिये जाने के बावजूद अगर आपने उसके साथ गाली-गलौच न किया तो आपकी शांति की साधना सार्थक हुई। ध्यान इसलिए नहीं है कि आपको कोई देवी-देवता के दर्शन होंगे। ध्यान इसलिए है ताकि व्यक्ति अपने स्वभाव में रहने वाली पशुता को जीते ओर अपने भीतर रहने वाली दिव्यता से साक्षात्कार करे। इसलिए ध्यान की उपयोगिता है। पहले चरण में आदमी को यह स्वीकार करना होगा कि मेरे स्वभाव में अमुक कमी है और दूसरे चरण में उसे स्वभाव में रहने वाली कमी के जब निमित्त मिलते हैं तो उनके प्रति साक्षिभाव रहना जरूरी है। एक ओर से किया गया स्वीकार और दूसरी ओर से उनके प्रति आई गई तटस्थता व्यक्ति को अपने दुष्कृत, अपने विकृत, अपने आवेशित और उत्तेजित स्वभाव से मुक्त करने का राजमंत्र बन जाती है वरना कोई भी आदमी ऊपर से चाहे जितने भी त्याग और तप कर डाले उनसे उनके स्वभाव में मौलिक परिवर्तन नहीं होता। स्वभाव सुधारें , सफलता पाएँ ५३ For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैसा कि लोग कहते है कि उसने एक महीने का उपवास किया तो क्या हुआ? अभी तक उसका क्रोध तो नहीं गया। यानी ज्यों-ज्यों आदमी तप करता है त्यों-त्यों वह और ज्यादा क्रोधित होता चला जाता है। आदमी ऋषि तो हो नहीं पाता, दुर्वासा जरूर हो जाता है। इसलिए हो जाता है क्योंकि आदमी केवल तप करता है, त्याग कर लेता है, व्रत कर लेता है, नियम पाल लेता है किन्तु स्वभाव तक नहीं पहुँच पाता। तब यह परिणाम निकलता है कि बीस साल का लड़का भी गुस्सा करता है और अस्सी साल का वृद्ध भी गुस्सा करता है। परिणाम यह निकलता है कि पच्चीस साल का लड़का भी लड़की देखकर दिल काला कर बैठता है, वहीं पैंसठ साल के वृद्ध भी अपने मन को चलायमान कर बैठते हैं। दोनों की स्थिति एक-सी ही रहती है क्योंकि आदमी अपने स्वभाव तक नहीं पहुँचा। आदमी ने जीवन से कुछ सीख न ली। उसने कोल्हू के बैल जैसा जीवन जिया। वह जागरूक जीवन न जी सका। साधना की सार्थकता इस बात में है कि आदमी अपने स्वभाव को बदलने के लिए कितना प्रेरित हुआ? अपने स्वभाव को संस्कारित कर लेना ही साधक की सच्ची साधना है। अगर आपने इस एक जन्म में अपने स्वभाव को जीत लिया, स्वभाव को परिवर्तित कर लिया, तो आप साधना के प्रथम चरण में सफल हो गए, तुम सिद्ध हो गये, मुक्त हो गये। कल एक महानुभाव पूछ रहे थे कि पूजा-पाठ तो सदियों-सदियों से चले आ रहे हैं लेकिन पूजा-पाठ करने वाले लोग मुझे नहीं मालूम कि अपने स्वभाव से कितने निर्मल और पवित्र हो चुके हैं? ___ अगर कोई मुझसे पूछे कि संत हो जाना कितना कठिन है तो मैं कहूँगा कि संन्यासी हो जाना कितना सरल है, पर अपने स्वभाव को जीत लेना उसके लिए भी कितना कठिन है। आम आदमी सोचता होगा कि जीवन में संन्यास का उदय होना कितना दुष्कर है। जरूर कोई महान् पुण्य कमाया होगा जो जीवन में संन्यास का उदय हुआ ५४ __ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होगा। सचमुच जीवन में संन्यास का उदय होना, सात-सात जन्मों तक कमाये गये पुण्यों का परिणाम है, लेकिन कोई संत से जाकर पूछे, किसी ईमानदार संत से तो वह बताएगा कि संन्यास लेना बहुत कठिन है। लेकिन जब अपने आपको मैंने जीया तो पहचाना कि संन्यास ले लेना कितना चुटकी भर का खेल है। पर अपने स्वभाव को जीतना, अपने स्वभाव को बदलना, अपने स्वभाव को सदाबहार प्रेम, शांति, करुणा और आनन्द से ओत-प्रोत करना कितना कठिन है। क्या साधना हँसी का नाम है? काम छोड़ो, द्वेष छोड़ो, वैमनस्य छोड़ो, यह बात तो हर कोई कह देगा। कौन आदमी नहीं जानता कि क्रोध करना बुरा है? सलाह लेने वाला भी और सलाह देने वाला भी दोनों ही जानते हैं कि क्रोध करना कितना घातक है। वैमनस्य करना कितना जघन्य कृत्य है। चोरी करना अपने आप में कितना असुंदर कार्य है। ये सब कौन नहीं जानता? हर आदमी को भलाई की समझ है। आदमी बुराई से इसलिए उपरत नहीं हो पाता क्योंकि वह नहीं समझ पाया अपने आप को, अपने स्वभाव को। अपने भीतर जन्म-जन्म से हो रहे दमन को नहीं समझ पाया आदमी। जो स्वभाव व्यक्ति का अवचेतन मन बन चुका है जो स्वभाव व्यक्ति की आदत बन चुका है वह उस स्वभाव को नहीं जीत पाया। और बातों को छोडें भी, पर क्या आप जानते हैं तम्बाकू खाना हानिकारक हैं? बीड़ी, सिगरेट पीना कैंसर का आधार बनता है। क्या आप यह जानते हैं? क्या आप जानते है कि भाँग, जर्दा, अफीम खाने से आपके दिमाग के पुर्जे ढीले होते हैं? आदमी जानता है, आदमी को कई चीजों की जानकारी है, लेकिन जो चीज व्यक्ति का स्वभाव बन चुकी है, वह उससे उपरत कैसे हो? आदमी रोजाना पढ़ता है कि यह सब करना आत्मघातक है लेकिन फिर भी आदमी करता है। वह इसलिए कर रहा है क्योंकि आदमी अपने स्वयं के रूपांतरण के लिए सजग न हो पाया। स्वभाव सुधारें , सफलता पाएँ ५५ For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस दुनिया में कोई भी किसी को सुधार नहीं पाता है। आदमी जब भी सुधरेगा, अपने संकल्प से सुधरेगा, अपने बोध से सुधरेगा। आदमी जब भी जगेगा, जीवन में लगने वाली ठोकर के बोध से जगेगा। बाकी जीवन तो क्या, मौत भी किसी को नहीं जगा पाती है। यों तो आपने अपने जीवन में कोई पचास मुर्दे तो जला दिए होंगे। कभी कोई काका, कोई दादा, कोई पड़ौसी, कोई मौहल्ले वाला गया होगा, पर कितने आदमी जग पाए हैं? कितने आदमी सुधर पाए हैं? कितनों को जीवन का बोध हो पाया है? जो आदमी अपनी आँखों से अर्थी को गुजरते हुए देख ले, फिर भी अगर जीवन का अर्थ न समझ पाए तो उसका जीना ही निरर्थक है। ठोकर ही आदमी को सुधारती है। हम ठोकर के अहसानमंद हैं, जो निष्ठुर को भी सहृदय बना देती है, बूढ़े को भी अनुभवी बना देती है। इक बार गिरकर मैंने सँभलना सीखा, इक बार फिसलकर मैंने चलना सीखा। इक बार धोखा खाकर मैंने परखना सीखा, इस तरह ज़माने से ही मैंने, ज़माने से लड़ना सीखा।। नसीहत लो, तो जीवन का हर अनुभव आपको कुछ-न-कुछ देता ही है। न लेना चाहो, तो श्मशान की सौ यात्रा भी नश्वरता का बोध नहीं दे पाती। मनुष्य जो संसार के राग-रंग में रचा-बसा है, उसके जीवन में बोध कहाँ, जागृत दृष्टि कहाँ? आदमी मूछित है, अंधेरा बहुत सघन है। इतना सघन अंधकार है कि सौ-सौ दीये उतर कर भी उस अंधकार को काट नहीं पा रहे हैं। आवरण पर आवरण चढ़े हैं। सौ-सौ दीये निश्चित ही अंधेरे को दूर करेंगे, पर अगर दीवार के पार भी अंधेरा हो तो उस तक दीया कैसे पहुँचे? उतारने होंगे व्यक्ति को अपने ही पर्दे । जन्म-जन्मान्तर से जमाये जा रहे अपने ही पर्दो को उतारना होगा और जिन-जिन के प्रति अपने अन्तर्हृदय में द्वेष है, ५६ - कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आक्रोश है, उस हर शख्स के प्रति अपने हृदय में शांति और स्नेह की फुहार को बरसाना होगा। देखना होगा कि हमारे भीतर किन लोगों के लिए द्वेष और वैमनस्य है? कौन-सा ऐसा आदमी है जिसका नाम लेते ही दिमाग में कुछ और तरह के विचार आ जाते हैं, हृदय और तरह की धड़कन करने लगता है। मनन करना होगा उन लोगों के बारे में। जिन-जिन के प्रति द्वेष है उस हर व्यक्ति के प्रति हमारे हृदय में प्रेम और समता की धार फूट जानी चाहिए। आप पूजा करते हैं, पर ईश्वर की पूजा तब तक कैसे सार्थक होगी जब तक इंसान, इंसान के प्रति ही प्रेम को पनपा न पाया? ईश्वर की पूजा तो बाद में होगी। पहले एक इंसान इंसान के प्रति तो प्रेम और सरलता की भावना लेकर आए। ठीक है, हम जीसस की तरह सलीब पर नहीं चढ़ सकते और सलीब पर चढ़वाए जाने पर माफ नहीं कर सकते, पर अपनों के बीच कहे जाने वाले छोटे-मोटे शब्दों को तो हम माफ कर ही सकते हैं न्। इतनी करुणा तो हम अपने जीवन में जी ही सकते हैं न्। नहीं ठुकवा पाये हम महावीर की तरह अपने कानों में कीलें और नहीं कर पाये प्रेम उस व्यक्ति से जिसने महावीर के कानों मे कीलें ठोकी। पर हम कम-से-कम उसको तो क्षमा कर ही सकते हैं जिसने कभी हमें सौ-दो सौ रुपये का नुकसान पहुँचाया है। जो व्यक्ति अपने दुश्मन में भी मित्रता का सूत्र तलाश कर लेता है, वही व्यक्ति अपने जीवन में प्रेम और समता को जी सकता है। राम के भीतर तो हर व्यक्ति राम को निहार लेगा, पर जो रावण के भीतर भी राम के दर्शन कर ले, वही व्यक्ति महान् गुणवान होगा। महान् संत फ्रांसिस अपने शिष्य लियो के साथ सेंट मेरिनो की तरफ जा रहे थे। रास्ता काफी लंबा था। आँधी-तूफान आये, तेज वर्षा आई, सारा रास्ता कीचड़ से भर गया और शायद दो-चार बार उन लोगों के पाँव फिसल ही पड़े होंगे, शरीर कीचड़ से लथपथ हो ही गया होगा। संत फ्रांसिस ने देखा कि अंधेरा बढ़ रहा है। साँझ ढल चुकी स्वभाव सुधारें , सफलता पाएँ ५७ For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है और सेंट मेरिनो अभी भी काफी दूर है। मेरिनो नगर की रोशनियाँ, वहाँ जलते हुए फानूस साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं। लेकिन वहाँ तक पहुँचने में अभी भी रात तो काफी गहरी हो जाएगी। ___ तभी चलते-चलते फ्रांसिस ने अपने शिष्य से पूछा, 'लियो, क्या तुम्हें पता है कि वास्तविक संत कौन है?' शिष्य गुरु के सामने क्या कहे! गुरु ने कहा, 'लियो, वह व्यक्ति वास्तविक संत नहीं है जो अंधे को आँख दे, मुर्दे को जिंदा कर दे तथा किसी रुग्ण को स्वस्थ कर दे।' लियो चौंका, क्योंकि उसे लगा कि यह तो संत का धर्म है। लियो कुछ बोले, उससे पहले ही फ्रांसिस ने कहा, 'लियो, वह व्यक्ति भी वास्तविक संत नहीं है जो किन्हीं पेड़-पौधों की भाषा समझता हो या जो दूसरों को ज्ञान देता हो।' फ्रांसिस कुछ मौन हो गए । चलते-चलते उन्होंने कहा, 'वह व्यक्ति भी वास्तविक संत नहीं है जिसने अपना सारा घर-बार छोड़ दिया है।' इस बार लियो चौंका और कहा, 'प्रभो, जितने सारे गुण आपने बताये हैं, वे सारे गुण मेरी दृष्टि में संत के ही गुण हैं। और आप कहते हैं कि वह व्यक्ति वास्तविक संत नहीं है तो मैं पूछना चाहूँगा कि वास्तविक संत कौन है?' ___ फ्रांसिस ने कहा, 'लियो, तुम्हें पता है कि अभी हम सेण्ट मेरिनो की तरफ जा रहे हैं। तुम्हें पता है कि अभी हम कीचड़ से लथपथ हैं। जब हम सेण्ट मेरिनो पहुँचेंगे और वहाँ पहुँचकर किसी सराय का दरवाजा खटखटाएँगे तो आधी रात को चौकीदार जग कर आएगा और पूछेगा, ‘कौन'? तब हम कहेंगे, 'दो संत'। हमारी इस बात को सुनते ही पहरेदार आग-बबूला हो उठेगा कि फक्कड़ लोग आए हैं। न लेना, न देना। बस रात भर सराय में ठहर जाएँगे। वह व्यक्ति आग-बबूला होकर हमें गालियाँ परोसने लगे कि 'हरामखोरो, क्या मुफ्त की सराय समझ रखी है? जाओ, दफा हो जाओ।' यह कहकर वह फिर सो जाएगा। हम कीचड़ से भरे हुए संत फिर उसका दरवाजा खटखटाएँगे और कहेंगे कि कहीं एक कोने में ही ५८ _ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोड़ी-सी जगह दे दो और हमारी बात को सुनकर फिर उसकी नींद उचकेगी। वह आग-बबूला होकर अपनी लाठी लिए बाहर निकलेगा और हम दोनों को दो-चार लाठियाँ मार ही देगा । लियो, जब उसके द्वारा लाठी मारे जाने के बाद भी हमारे मन में उसके प्रति शांति और समता बनी हुई रहे और इस कदर हमारे साथ दुर्व्यवहार किये जाने के बावजूद हमारे हृदय में उसके प्रति प्रेम और सद्भाव बना हुआ रहे और जो प्रभु की मूरत हम आमतौर पर आम आदमी में स्वीकार करते हैं, जब वही मूरत लाठी मारने वाले चौकीदार में निहार लेंगे तो लियो, तब मानना वह व्यक्ति वास्तविक संत है । वह वास्तविक संत है जो अप्रिय के भीतर भी प्रभु की मूरत स्वीकार करता है और तब प्रेम धन्य हो उठता है और प्रेम के साथ प्रेमी भी धन्य हो जाता है ।' जब ऐसा प्रेम किसी के अन्तर्हृदय में उतरता है तो कहा जाएगा कि उस व्यक्ति ने जीत लिया अपना स्वभाव | उसने जीत ली अपने मन में उठने वाली आक्रोश की आग । उस व्यक्ति ने जीत ली अपनी कठोरता और क्रूरता। वह व्यक्ति फिर इंसान नहीं होगा। तुम जानना चाहोगे कि वह क्या होगा? मेरा जवाब होगा, 'भगवान'। अब वह डॉग नहीं रहा, वह गॉड हो गया । स्वभाव को वह व्यक्ति जीत पाएगा जो औरों के व्यवहार के प्रति करुणाशील रहेगा। एक तो व्यक्ति उस करुणा को जीता है जहाँ कोई भिखारी आ गया तो उसे दस पैसे दे दिए। ऐसी करुणा को भी आदमी जीता है कि घायल हो कोई पंछी और आपने उसके लिए दस रुपये खर्च करके उसे अस्पताल पहुँचा दिया। मैं उस करुणा की बात करता हूँ, जहाँ आदमी हमारे प्रति बुरा व्यवहार करे मगर फिर भी हम उसके लिए करुणाशील रहें। हमारी करुणा इतनी जीवंत रहनी चाहिए कि कोई भी हमारे प्रति चाहे क्षुद्र व्यवहार क्यों न कर ले, लेकिन हमारे हृदय में उसके प्रति दया रहेगी, करुणा रहेगी। याद रखें, टक्कर मारने वाला महान् नहीं होता। टक्कर मारने वाले को माफ कर देने वाला महान् होता है । करुणा कोई बाजार में स्वभाव सुधारें, सफलता पाएँ ५९ For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं बिकती। करुणा वह नहीं जो निमित्त को पाकर द्रवित हो जाए। करुणा वह है कि जहाँ भीतर में वह प्याली निरंतर छलछलाती रहे। माना कि लोग तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करेंगे। तुम कभी मत मानना कि और लोग तुम्हें गाली न देंगे। तुम्हारी सास तुम्हें कटु शब्द कहेगी। तुम्हारी जेठानी तुम पर टिप्पणी करेगी, तुम्हारे पिता और बड़ा भाई तुम पर अंकुश लगाएँगे, मगर तुम बोधपूर्ण रहो। ____बोधपूर्ण वह नहीं है इसलिए तुम्हें कटु शब्द कह रहा है। तुम तो साधना-मार्ग से जुड़े हो। अगर तुमने भी कटु शब्द कह दिया तो दोनो एक ही कड़ाही के तो हो गए। फिर दोनों में फर्क ही क्या रहा? साँपराज और नागराज में क्या कोई फर्क होता है? शब्द बदल जाते हैं। साँपराज और नागराज दोनों एक ही होते हैं। अगर वह व्यक्ति साधक रहा और उसने उधर क्रूरता कर डाली तो कहा जाएगा वह साधक, साधक न रहा। वह विराधक हो गया। अगर तुम क्रूर हो बैठे तो तुम भी साधक, साधक न रहे। __ साधना यहाँ होगी, कसौटी वहाँ होगी। जब तक साधना कसौटी पर खरी न उतरे तब तक साधना केवल आसन तक सीमित रह जाएगी। इसलिए करुणाशील रहें। जगत के प्रति करुणाशील। इस जगत के पास जीते-जी देने के लिए शायद सलीब हैं, विष के प्याले हैं। जगत के पास जीते-जी देने के लिए अमृत के प्याले नहीं हैं। दुनिया में ऐसा कोई महापुरुष नहीं हुआ जिसे दुनिया ने जीते-जी दुत्कारा न हो। दुनिया इंसान की कीमत अधिकतर मरने के बाद आँकती है। इसीलिए यह दुनिया जीते जी किसी आदमी का उपयोग कम ही कर पाती है। यह दुनिया मरने के बाद धूप-दीप चढ़ाएगी, चंदन और पुष्प चढ़ाएगी। मगर जीते-जी तो वह सलीब और काँटे के ताज ही पहनाएगी। जीते-जी तो आदमी की चार कमियाँ भी दिखाई देती हैं, पर मरने के बाद कोई आदमी किसी की कमियों की तरफ ध्यान नहीं देता। चार कमियाँ भी रहीं तो लोग कहेंगे कि जब वह कैसे जिएँ मधुर जीवन ६० For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदमी ही नहीं रहा तो उसकी कमियों पर क्यों ध्यान देते हो? जब मरने के बाद किसी की कमियों को माफ कर देते हो तो तुम जीते-जी किसी की कमियों को माफ क्यों नहीं कर सकते? वह माफी मुर्दा है जो किसी के मरने के बाद प्रकट हो। वह माफी अमृत है जो किसी के जीते-जी अपना कार्य कर दिखाए। कृपया करुणाशील रहें और माफी को मूल्य दें। . दो बूंट पीने पड़ें तो पी लें। सहना पड़े तो सह लें। आलोचनाओं को सहने की जिसमें औकात है, वही ऐसा कुछ कर सकता है कि विरोधियों के मुख से भी वह प्रशंसनीय बन सके। ___ बहुत प्रिय संत हुए हैं, हाकुइन। संत हाकुइन गाँव के किनारे रहते थे। उसके ठीक बगल में ही एक और मकान था जिसमें कि एक सुंदर युवती रहती थी। वह युवती अविवाहित थी, पर गर्भवती हो गई। घरवालों ने परेशान किया, मारा-पीटा और पूछना चाहा, ‘बता, तेरे पेट में यह किसका पाप है?' युवती इतनी प्रताड़ित की गई कि आखिर उसे सहन नहीं हो पाया। उसने अपनी ही बगल में रहने वाले संत हाकुइन का नाम बताया। परिवार के लोग बड़े विस्मित हो उठे, आग-बबूला भी! वे अपनी कन्या को संत हाकुइन के पास लेकर गए। उन्होंने जाकर कहा, 'तो आपने ऐसा सब कुछ किया है?' ___ संत हाकुइन ने सारी बात सुनी। वे करुणाशील हो उठे और जवाब में केवल इतना ही कहा, 'ओह! तो ऐसी बात है, ठीक है।' परिवार के लोग चले गए यह सोचकर कि संत हाकुइन ने यह सारी बात स्वीकार कर ली है। कन्या के संतान का जन्म हुआ तो वह संतान संत हाकुइन की गोद में सौंप दी गई। संत हाकुइन की सारे गाँव में बड़ी अप्रतिष्ठा हुई, लेकिन उसने अप्रतिष्ठा की कोई परवाह नहीं की। वह जो छोटा शिशु था, अड़ौस-पड़ौस से दूध माँग कर या एक बालक के लिए वांछित चीजों को माँग-मुँगाकर संत हाकुइन बालक का पालन-पोषण करने स्वभाव सुधारें , सफलता पाएँ ६१ For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लगा। एक दिन वह युवती बड़े जोरो से बीमार पड़ गई। प्राण निकलने वाले ही थे कि उस युवती के मन में बड़ा प्रायश्चित होने लगा। इस भाव के साथ कि मैंने क्या से क्या कर डाला? मैंने संत हाकुइन पर इतना बड़ा इल्जाम लगा दिया और उस संत की महानता देखो जिसने बगैर किसी तरह की ननु नच किये मेरे इल्जाम का वरण कर लिया। __ आखिर उससे रहा न गया। उसने अपने माता-पिता को अपने करीब बुलाया और कहा, 'सत्य तो यह है कि जो बालक पैदा हुआ है वह संत हाकुइन का नहीं, वरन् मछली बाजार में रहने वाले एक व्यापारी का है। मैं मरने जा रही हूँ पर मरने से पहले मैं इसका प्रायश्चित करना चाहती हूँ।' जब माता-पिता ने यह बात सुनी तो उनकी आँखें भीग गई कि हम क्या से क्या कर बैठे? लेकिन उस संत की महानता तो देखिए कि उसने हमारे द्वारा लगाये गये ऐसे चारित्र्यमूलक लांछन को भी झेल लिया। सारे गाँव में उसकी अप्रतिष्ठा हो गई, मगर उसकी करुणा खंडित न हुई। तब माता-पिता उस कन्या को अपने साथ लेकर संत हाकुइन के पास पहुंचे और सारी स्थिति बताई। संत मुस्कुराये और जवाब में केवल इतना ही कहा, 'ओह! तो ऐसी बात है! ठीक है।' माता-पिता ने वह बालक वापस ले लिया। बहुत ध्यान देना, साधना की इस गहराई पर बहुत ध्यान देना कि जहाँ कोई आया यह अपमान देने के लिए कि इस युवती के द्वारा पैदा हुआ बालक तुम्हारा है और अगर तुमने उसको झेल लिया, इतने भयंकर लांछन को अगर तुम बर्दाश्त कर गए तो साधक तुम्हारी साधना खरी रही। तुम असाधारण हुए। यदि किसी ने तुम पर लगाया गया लांछन उतार दिया, तब भी तुम्हारे चित्त की स्थिति अगर वैसी ही सहज और समतामूलक रहे तो तुम अपने स्वभाव के विजयी हुए। ६२ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम्हारी साधना अमृत साधना बन गई। अगर ऐसा होता रहा तो साधक तुम्हें दुनिया की कोई भी ताकत विचलित न कर पाएगी। दुनिया का कोई भी अपमान विचलित न कर पाएगा। दुनिया के द्वारा दिया हुआ कोई भी प्रतिकार तुम्हें खंडित न कर पाएगा क्योंकि जो खंडित होता है वह मर चुका होगा और जो अखंडित रहता है वह अमर हो चुका होगा। अपने भीतर, अपने संकल्प को ग्रहण करते हुए, यह जानें कि मैं आज के बाद अपने स्वभाव में रहने वाली वह विकृति, अपनी प्रकृति में रहने वाली वह विकृति, वह कमी मैं जीतूंगा, जीतूंगा, जीतूंगा। यह सम्भव नहीं होने दूंगा कि मेरी वह विकृति, मेरी वह कमी, मेरा वह अवगुण मुझे हरा जाए। मैं पशु नहीं कि कोई मेरे गले में फंदा डाले, और मुझे अपनी तरफ खींचता चला जाए। मैं मनुष्य हूँ, जो अपने पाप को, अपने बंधन को, अपनी फाँस को, निकाल कर बाहर फेंक सकता हूँ। पुरुषार्थ की जरूरत यहीं पर है। यहीं पर चाहिए आत्म-पुरुषार्थ, तुम्हारा क्षात्रत्व, तुम्हारी ओजस्विता कि तुम अपनी कमियों को जीत सको । जीतोगे तो तुम ही जीतोगे, कोई और नहीं जीतेगा। मेरी कमियों को मैं जीतूंगा और तुम्हारी कमियों को तुम जीतोगे। मेरे स्वभाव पर मैं विजय प्राप्त करूँगा। तुम्हारे स्वभाव पर तुम विजय प्राप्त करो। हारना और जीतना दोनों साधक पर निर्भर करते हैं। हारा हुआ इंसान हारे हुए जुआरी की तरह घर लौटकर नहीं जाता। जुआरी जब भी घर पहुँचता है तो जीत कर पहुँचता है। हम यहाँ से घर पहुँचे तो एक जीते हुए साधक की तरह। अपने घर पहुंचे तो घर भी हमसे प्रेरणा पाए। अपने मुँह से शेखी न बघारें। हमारा जीवन ही दूसरों के लिए प्रेरणा और उदाहरण बन जाए। हम स्वयं अपने जीवन के संत बनें। हम ध्यान को तन्मयता से जीएँ। ज्यों-ज्यों ध्यान में हम एक स्वभाव सुधारें , सफलता पाएँ ६३ For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ होते जाएँगे, हमारा स्वभाव स्वतः परिवर्तित होने लगेगा। भले ही लगे कि कल ध्यान किया, पर अभी तक स्वभाव नहीं बदला। ध्यान भी आखिर कोई जादू का डंडा नहीं है कि ध्यान लगाने बैठे और हो गया काम ‘फिनिश’। अगर संकल्प सुदृढ़ हो, प्रयास निरन्तर हो, तो सूत की रस्सी से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं। ध्यान से स्वभाव भी ऐसे ही बदल जाता है । कहते हैं, एक दफा इन्द्र ने घोषणा कर दी थी कि वह बारह वर्ष तक जल नहीं बरसायेगा। लोगों ने घोषणा सुन ली, पर इसके बावजूद इन्द्र ने देखा कि किसान हल चला रहे हैं, जमीन जोत रहे हैं। इन्द्र को आश्चर्य हुआ। उसने ब्राह्मण का रूप बनाया और किसानों के पास आकर पूछा, 'क्या तुमने इन्द्र की घोषणा नहीं सुनी?" किसानों ने कहा कि हमने घोषणा तो सुन ली, पर हम हल चलाना नहीं छोड़ेंगे। पूछा, 'क्यों?' किसानों ने कहा, 'अगर हमने हल छोड़ दिये तो हमारी आने वाली पीढ़ी बेकार हो जाएगी । वह बारह वर्षो में खेती करना ही भूल जाएगी । इन्द्र बरसे या न बरसे, पर हम अपना प्रयत्न नहीं छोडेंगे।' क्या आप समझ गए कि यह कहानी क्या प्रेरणा देती है? तुम अपना प्रयत्न जारी रखो । बारह वर्षों के बाद ही सही खेती तो होगी ही। अपने स्वभाव, अपनी आदतों को सुधारने के लिए सुदृढ़ मन से संकल्प कर लीजिए और निरन्तर प्रयत्न कीजिए। आपकी साधना फलदायिनी होगी। स्वभाव-शुद्धि के लिए हम अपने मन के विकारों और कमजोरियों को समझें । अन्त में, जो बातें निवेदन कर रहा हूँ, उन्हें दिल में गाँठ बाँध लें। इन पाँच बातों को जीवन के तीन संकल्प बना लें । पहली बात : गुस्सा नहीं करूँगा। किसी को तभी डाँहूँगा जब उससे पहले उसकी तीन गलतियाँ मैं माफ कर चुका होऊँ । ६४ For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूसरी बात : जैसे के साथ तैसा वाली नीति नहीं अपनाऊँगा। मैं बड़प्पन रखूगा। अपना प्रजेंटेशन ऐसा रतूंगा कि मेरा व्यवहार दूसरों को आघात न पहुँचाए। तीसरी बात : अपने आपको हर हाल में सकारात्मक रदूंगा। 'पोजेटिवनेस' बुनियादी मंत्र है स्वभाव को दुरुस्त करने के लिए। अच्छी सोच और अच्छा नजरिया इस बात को मैं जन्मधूंटी की तरह पीए रहूँगा। चौथी बात : अनुभव बताता है कि गलत डालिए तो गलत बाहर आएगा, सही डालिए तो सही बाहर आएगा। तो चाहे टी.वी. हो या किताब अथवा सोहबत, अच्छे स्वभाव और अच्छे चरित्र के लिए इनका अच्छा होना जरूरी है। मैं अच्छाई के लिए सदा प्रयत्नशील रहूँगा। ___ पाँचवीं बात : शराब और नशे से परहेज रखूगा। शांत रहूँगा, सौम्य रहूँगा, विपरीत परिस्थितियों में भी अपना धैर्य नहीं खोऊँगा। ___ बाकी तो आपकी समझ और संकल्प ही आपको अच्छे स्वभाव, अच्छे नेचर का बनाने में आधारभूत बनेंगे। नमस्कार! अपनी ओर से इतना ही निवेदन है। स्वभाव सुधारें , सफलता पाएँ ६५ For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोच को बनाएँ सकारात्मक मेरे प्रिय आत्मन्! मनुष्य के मनो-मस्तिष्क में जब भी हम किन्हीं विचारों को उठते हुए देखते हैं तो कई मर्तबा तो उन विचारों को देखकर जीवन में सुकून मिला करता है और कई बार भीतर ऐसे विचार तरंगित होते हुए ज्ञात होते हैं जिन्हें देखकर व्यक्ति स्वयं आत्मग्लानि से भर उठता है। आखिर यह जो भी होता है, आदमी के भीतर छुपे हुए वैभव और दारिद्र्य का ही प्रतिबिम्ब है । मन के विचार आदमी के जीवन की सबसे बड़ी पूँजी हैं, वहीं ये विचार ही उसके जीवन का सबसे बड़ा दोष भी बन जाया करते हैं । विचार व्यवहार के प्रेरक हैं। शील और दुःशील दोनों के पीछे विचारों का प्रभाव होता है । जैसे जिसके विचार, वैसा ही उसका व्यवहार । हर विचार उसके भविष्य की आधारशिला बना करते हैं । अच्छे विचार, यानी अच्छा भविष्य; बुरे विचार यानि बुरा भविष्य । ६६ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुष्य के हाथ में लिखी भाग्यरेखाएँ आदमी की उन्नत या पतित विचार-धारा के आधार पर ही उन्नत या पतित होती हैं। इसलिए विचारों से बढ़कर व्यक्ति का कोई आंतरिक मित्र नहीं होता और विचारों से बढ़कर व्यक्ति का कोई शत्रु भी नहीं होता है। विचार ही कभी वैतरणी बन जाया करते हैं, तो विचार ही कभी जीवन का नंदनवन बन जाते हैं। किसी को देखकर यह भविष्यवाणी करना बहुत कठिन होता है कि यह जैसा सुबह दिखाई दिया था, वैसा ही शाम को भी रहेगा। वैसा ही अर्द्धरात्रि में या वैसा ही कल भी होगा। घड़ी भर में जो देवरूप में दिखाई देने लगता है, वही दूसरी घड़ी में ऐसा लगता है जैसे वह किसी प्रेत-योनि से आया हो। प्रेम के क्षण देवत्व के होते हैं तो क्रोध के क्षण प्रेतात्मा के। यह आदमी का अन्तर्मन है जिसकी दहलीज पर कभी तो व्यक्ति देवलोक का पथिक हो जाता है, तो कभी नरक की खाइयों में लुढ़क जाता है। मुझे नहीं मालूम कि संसार में कहाँ स्वर्ग है और कहाँ नरक? धर्म की किताबों में तो यह बताया गया है कि पाताल के नीचे नरक है और आसमान के ऊपरी छोरों में स्वर्ग है। मनुष्य के अन्तर्मन को देखता हूँ तो लगता है कि आदमी के भीतर ही कोई धर्मराज आसीन है और आदमी के भीतर ही कोई यमराज बैठा हुआ है। किसी काले भैंसे पर चढ़कर पाताल से कोई यमराज नहीं आता होगा। आदमी का मन जब भी गिरने लगता है, तब-तब आदमी पाताल से भी नीचे, नरक की सैर कर आता है। जब भी हमारे भाव और विचार उन्नत होने लगते हैं तब-तब हम आसमान से भी ऊपर देवलोक स्पर्श कर आते हैं। मैंने मनुष्य देखे हैं और प्रेत भी देखे हैं। मैंने देवताओं के भी दर्शन किए हैं और मैं प्रेतात्माओं से भी मिला हूँ। मैंने ऐसे इंसान भी देखे हैं जिनके भीतर क्रोध, क्रूरता और कामुकता का प्रेत निवास करता सोच को बनाएँ सकारात्मक ६७ For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। मैंने ऐसे लोगों को अपने प्रणाम समर्पित किए हैं जिनके भीतर सरलता, विनम्रता और उदारता का देवत्व अधिष्ठित है। ध्यान रखें, भगवान किसी पत्थर की मूर्तिभर में नहीं होते । उनका जब भी दीदार किया है, तब-तब या तो वह अपने अन्तर्मन में दिखाई दिये हैं या उन लोगों के भीतर जिनके जीवन में शांति और सहृदयता का निवास है । मैं प्रतिमा को प्रणाम करता हूँ ठीक उसी भाव के साथ जिस भाव से आप सबको भी प्रभु की मूरत मानते हुए अभिवादन समर्पित करता हूँ । जितनी सुहावनी मूर्ति मुझे किसी मंदिर में बैठी हुई लगती है, आप लोग क्या उससे कम सुहावनी मूर्तियाँ हैं? क्या किसी पौधे पर खिला हुआ गुलाब का फूल प्रभु की ही छवि नहीं है? क्या हमारे घर में इठला रहा बालक कान्ह-कन्हैया का स्वरूप नहीं है ? देवता आसमान में नहीं, इंसान की नजरों में निवास करते हैं। वे नजरों में रहने वाली रोशनी में निवास करते हैं। उन नजरों के ठेठ भीतर जहाँ नजरों को प्रभावित करने वाले विचार होते हैं, उनमें प्रेत और देव रहते हैं, स्वर्ग और नरक रहा करते है । बहुधा मुझे किसी के जीवन से जुड़ी हुई एक कहानी का वह अंश याद आया करता है कि एक व्यक्ति ने अपने जीवन में संन्यास ले लिया, वह तपस्या में लीन हो गया, उसने जंगलवास ग्रहण कर लिया । उसने अर्द्धनग्न अवस्था में किसी पेड़ की छाया के नीचे अपने आपको तपाना शुरू कर दिया। आदमी था अपने जमाने की लंबी-चौड़ी पहुँच रखने वाली हस्ती का । ध्यान में बैठा आदमी और ऐसे क्षणों में जब उस व्यक्ति के गुरु के सामने यह प्रश्न खड़ा किया गया कि 'भंते! जिन क्षणों में मैं उस साधक के करीब से गुजरा था, उस समय उस साध् क की मृत्यु हो जाती तो साधक की कौन-सी गति होती?” गुरु ने मुस्कुराकर कहा, 'वत्स! यह आदमी का मन है । पशु के मन की तो सीमा होती है क्योंकि पशु अपनी पशुता से ज्यादा नहीं गिर सकता । देवता के मन की भी सीमा होती है क्योंकि वह अपने ६८ For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवत्व से ज्यादा नहीं बढ़ सकता, पर जब आदमी का मन गिरता है तो पशु से ज्यादा गिर भी सकता है और जब उठता है तो देवता से भी ज्यादा ऊपर उठ सकता है । देव अपनी सीमा को लाँघ नहीं सकता और पशु भी अपनी सीमा का अतिक्रमण नहीं कर सकता, लेकिन मनुष्य के लिए प्रकृति ने कोई सीमा निर्धारित नहीं की है । समन्दर की तो कोई सीमा होती होगी, पर मनुष्य के मन की कोई सीमा नहीं है । वह गिरना चाहे तो गिरने की कोई सीमा नहीं है और उठना चाहे तो उठने की भी कोई सीमा नहीं है। चूंकि मनुष्य अपने अन्तर्मन और अपने विचारों में सीमाओं से बँधा हुआ नहीं है इसलिए मनुष्य अ-सीम है। 1 पशु और प्रभु दोनों ही मनुष्य के ही दो छोर हैं। एक ओर पशु है, दूसरी ओर प्रभु । मन से गिरे तो पशु, मन से उठे तो प्रभु । यानी आप उठना चाहें तो उठ सकते हैं, गिरे हुए तो हैं ही । देव बनना चाहें तो देव बन सकते हैं। बाकी दोपाये जानवर तो हैं ही । गिरने वाला भी आदमी होता है और उठने वाला भी आदमी । महावीर और मैक्समूलर कोई आसमान से टपक कर तो नहीं आते और गौतम और गौशालक कोई जमीन को फोड़कर पैदा नहीं होते । कंस किसी जमीन या पाताल की पेटी में से पैदा होकर नहीं आते और कृष्ण कोई मटकी फोड़कर नहीं निकलते। हम तो इतिहास को केवल मान सकते हैं कि कोई कंस हुआ, कोई कृष्ण हुआ। हमने तो इतिहास को अपनी आँखों से देखा नहीं है। हम तो केवल मान सकते हैं। पर जीवन में यह तो जान ही रहे हैं कि मनुष्य के भीतर ही कोई कंस है और मनुष्य के भीतर ही कोई कृष्ण है। राम भी मनुष्य की ही परिणति है और रावण भी मनुष्य की ही । सुर-असुर का भेद स्वभाव-भेद और विचार-भेद के चलते ही निर्मित होता है। गाँधी भी हममें से ही कोई पैदा होता है और गोड्से भी हममें से ही कोई प्रकट होता है। हाँ, हम ही होते हैं वह जो सम्राट् अशोक बन जाते हैं और हम ही होते हैं वे, जो स्टैलिन और हिटलर सोच को बनाएँ सकारात्मक ६९ For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बन जाते हैं। यह इंसान पर निर्भर करता है कि वह अपने विचारों को, अपनी सोच, अपने चिंतन को ऊँचा उठा ले तो उसके लिए अपने विचारों से बढ़कर और कोई पूँजी नहीं होती। और ये ही विचार अगर तनाव, चिंता, घुटन, अवसाद, ईर्ष्या से घिर जाएँ तो इन विचारों से बढ़कर और कोई बोझ नहीं होता। भला जो विचार आदमी के लिए वरदान बन सकते हैं, आदमी उन्हें अपने लिए अभिशाप क्यों बनाए? कोई अगर पूछे कि आपके जीवन का पहला सौन्दर्य क्या है? लोग कहेंगे, आदमी का नाक सुन्दर होता है, आदमी की आँख सुन्दर होती है, आदमी का रंग सुन्दर या असुन्दर होता है। माना कि ये सब सुन्दर होते हैं, पर इससे भी सुन्दर आदमी का मन, आदमी के विचार होते हैं। कोई मुझसे पूछे कि मैंने अपने जीवन में किस चीज को सुन्दर बनाने का प्रयास और पुरुषार्थ किया है तो मेरा जवाब होगा, अपने हृदय को, अपने ज्ञान को, अपने नजरिये को, अपनी सोच, अपने चिन्तन को सुन्दर बनाने का प्रयत्न किया है। मैंने जीवन में आने वाले हर विपरीत निमित्त के बावजूद हर विपरीत साधन, हर विपरीत व्यक्ति के बावजूद हमेशा-हमेशा यह सजगता बनाए रखी है कि कहीं उस निमित्त के कारण मेरा अन्तर्मन और मेरी शांति तो प्रभावित नहीं हो रहे हैं। कहीं उसकी विपरीतता मेरी प्रसन्नता और मेरी मानसिकता को तो विपरीत नहीं कर रही है। वह हर निमित्त स्वीकार्य है जिससे गुजरने पर हमारे विचारों का सौन्दर्गीकरण होता हो। उस हर निमित्त से आदमी को निरपेक्ष रहना चाहिए जिसके कारण हमारे विचार और दृष्टिकोण प्रभावित और उद्वेलित होते हों। अगर कोई मित्र हमारे जीवन में तनाव का कारण बनता है तो वह मित्र भी त्याज्य है। अगर कोई शत्रु भी हमें सुकून दे रहा है तो वह शत्रु भी स्वीकार्य है। मूल्य दूसरे का नहीं, स्वयं का है। मूल्य दूसरों के विचारों का नहीं ७० कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है, स्वयं के विचारों का है। मूल्य दूसरे के उद्गारों का नहीं, स्वयं के उद्गारों का है। दूसरे की बोली और वाणी से कहीं ज्यादा मूल्य अपनी बोली और वाणी का है। दूसरे की वाणी कैसी है, मूल्य इसका नहीं है। तुम्हारी वाणी कैसी है, मूल्य इस बात का है। वह गलती कर रहा है, या गलत बोल रहा है, यह उसकी कमजोरी है। तुम अपने पर ध्यान दो। तुमसे चूक न हो। तुमसे छींका न टूट पड़े। किसी से गलती हुई, यह उसकी मजबूरी है, तुम फिर भी सलीके का व्यवहार कर रहे हो, यह तुम्हारी विशेषता हुई। दूसरा आदमी अगर तिर रहा है तो सौभाग्य की बात है, पर तुम अगर डूब रहे हो तो दूसरे को बचाने और न बचाने का अर्थ ही कहाँ होगा? ऐसा कौन होगा जिसे पता चल जाए कि दोनों की दाढ़ी में आग लगी है अपनी दाढ़ी में भी और दूसरे की दाढ़ी में भी। ऐसा कौन बेवकूफ होगा जो दूसरों की दाढ़ी में लगी हुई आग को पहले बुझाएगा। मैंने दुनिया पर जब नजर डाली और लोगों की दाढ़ी में आग जलती हुई देखी तो जैसे ही उनकी दाढ़ी की आग बुझाने के लिए प्रेरित हुआ कि सामने आईना आ गया और अपनी दाढ़ी में लगी आग नजर आई तो पहले हाथ अपनी दाढ़ी में चला गया। हाँ, मैं आप लोगों की दाढ़ी की आग जरूर बुझाऊँगा, पर पहले अपनी दाढ़ी में लगी आग को बुझाकर। हम अपने आपको पहचानें, अपने आपको सुन्दर बनाएँ। विचारों का सौन्दर्य जीवन की आध्यात्मिक सुषमा है। कर्म की सुन्दरता के लिए विचार और हृदय की सुन्दरता अनिवार्य पहलू है। भला जो विचार, जो चिंतन, जो सोच हमारे जीवन के लिए इतना मूल्य रखती है जबकि हम अपने विचार और चिंतन के प्रति इतने लापरवाह, इतने निरपेक्ष बने रहते हैं। गाली मन में आ गई, गाली ठोक दी, यह सोचे बगैर कि गाली से उसका भला या बुरा होगा कि नहीं किन्तु पहले अपना सोच को बनाएँ सकारात्मक ७१ For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुरा जरूर हो जाएगा। आपने किसी को कहा, 'नालायक कहीं का!' होगा जरूर वह नालायक। आपका मूल्यांकन रहा है तभी तो आपने उसे नालायक कहा है वरना आप कहते थोड़े ही। पर एक और भी नालायक है जिसके नजरिये में दूसरे की नालायकी हावी हो रही है। एक तो वह नालायक है जो कि नालायकी कर रहा है और दूसरा वह नालायक है जो अपने मुँह से नालायक कह रहा है और तीसरा वह नालायक है जो तुम्हारी नालायकी को नालायकी समझ रहा है। कोई-न-कोई नालायकी होगी हमारे मन में, तभी तो हम किसी को नालायक कहते हैं, नालायक देखते हैं, नालायक मानते हैं। यह सब जीवन की नकारात्मकता है। ____ कोई किसी को गधा कहे तो यह उसकी मजबूरी होगी। मैं तो कहा करता हूँ कि गधा ही दूसरे को गधे के रूप में देखता है। गधे को सारे गधे ही नजर आते हैं। गधे को कोई हाथी, घोड़ा, खच्चर दिखाई नहीं देता। अब नालायक को दूसरा आदमी लायक भी कैसे दिखाई देगा? नालायक को नालायक ही मिलते हैं, घोड़े वाले को घोड़ेवाले ही मिलते हैं, हाथीवाले को हाथीवाले ही मिलते हैं। गरीब को गरीब मिलते हैं, अमीर को अमीर मिलते हैं। जिसका जैसा स्टेटस, उसको वैसी ही मिलती है सोहबत। __ क्या आपको याद है कि जब आप गुस्से में अपने बेटे को बकते हो तो क्या-क्या बोल बैठते हो? मैंने एक गुस्सैल व्यक्ति को अपने बेटे से यह कहते सुना, ‘साले! सूअर की औलाद!' उसकी गाली सुनकर मैं हँसा। मेरी हँसी देखकर वह चौंका। मैंने कहा, पता है अभी आपने क्या कहा?' वह झट से चिल्ला पड़ा, ‘कहा क्या, सूअर की औलाद कहा।' मेरा जवाब सुनकर वह झेंप गया। मैंने कहा, 'प्रिय, वह अगर सूअर की औलाद है, तो तुम क्या हुए?' सावधान! अपनी भाषा, अपनी सोच, अपने बर्ताव के प्रति सावधान रहें। हम अगर अपने विचार, अपनी सोच, अपने नजरिये ७२ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को, अपनी मानसिकता को उन्नत बना लें तो भले ही कोई आदमी हमें गधा कहने वाला मिल जाए, पर हम उस गधे में भी आदमी देख लेंगे। और मैं तो यह मानकर चलता हूँ कि दूसरा व्यक्ति जो सामने आ रहा है, वह सम्भव है वह हमें गधा कहने के लिए ही आ रहा है। और गधा कहेगा, आज नहीं तो कल कहेगा। यह हमें आज ही निर्णय ले लेना है कि यह जो हमें कल गधा कहेगा हमें आज उसके साथ कैसा सुलूक और व्यवहार करना है? उसके प्रति हमें कैसा नजरिया रखना है? हमारी मुस्कान, हमारी सहजता, हमारी शांति तब भी वही रहे जब कोई हमें गधा और नालायक कहने के लिए तत्पर हो। प्रकृति ने आपको बुद्धि दी है, सोचने की क्षमता दी है। आप इसका उपयोग क्यों नहीं करते? आँख मूंदे कब तक जीते रहेंगे! शरीर से तो हम कोई बहुत सशक्त नहीं हैं। हमसे तो ज्यादा सशक्त और कई प्राणी हैं जिनको हम ताकतवर कहते हैं। हमारी ताकत को तो कोई भी प्राणी चुनौती दे सकता है, पर हमारी मानसिक क्षमताओं को अन्य कोई प्राणी चुनौती नहीं दे सकता। प्रकृति ने मनुष्य को ऐसी उच्च मस्तिष्कीय क्षमताएँ दी हैं कि शायद उसी एक तोहफे के बदले अगर वह प्रकृति को सौ-सौ फूल चढ़ाए तो भी कम है। एक मच्छर भी काफी होता है आदमी को विचलित करने के लिए। आदमी शरीर से ज्यादा सशक्त नहीं है, लेकिन प्रकृति ने आदमी को एक बहुत बड़ी क्षमता दी है। एक ऐसी सशक्तता दी है कि इस एक सशक्तता के चलते इंसान अपनी निर्बलताओं पर विजय पर लेता है और वह है सोचने की क्षमता, विचारने की क्षमता, अपने विचार को उन्नत से विकासशील बनाने की क्षमता। सोचना आदमी का धर्म है। सोचना मस्तिष्क की प्रकृति है। सोच तो चलती रहती है, जब देखो तब कुछ-न-कुछ उमड़-घुमड़ चलती ही रहती है, लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि सोचना जो मनुष्य का प्रकृतिगत लक्षण है, क्या हम अपनी सोच को वे आयाम दे सोच को बनाएँ सकारात्मक ७३ For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाए हैं? क्या हम अपने विचारों को वे दिशाएँ दे पाए हैं जो हमें प्रकाश की ओर ले चले, हमें उन्नत मस्तिष्क की ओर ले जाएँ, हमें जीवन की ऊर्ध्व क्षमताओं से साक्षात्कार करवाएँ। सोचना एक बहुत बड़ी कला है, जैसे कोई कहे कि बोलना एक बहुत बड़ी कला है। मैं कहूँगा बोलना एक कला है, पर सोच को उन्नत बनाए रखना, उससे भी बड़ी कला है। जिसने अपनी सोच को सही बनाये रखने में सफलता पा ली है, उसके जैसा धार्मिक कोई और नहीं होगा । उस आदमी में ही देवों का निवास रहता होगा, उस आदमी से हटकर कोई मंदिर हो, शायद उस पर प्रश्नचिह्न ही लगेगा | सोचना मनुष्य का काम है । सोच ही मनुष्य है । मनुष्य में से सोच को हटा दिया जाए, तो मनुष्य मनुष्य कहाँ रहेगा? सार्थक सोच में ही जीवन का शिव छुपा है, सार्थक सोच में ही सौन्दर्य की आत्मा बसी हुई है | सार्थक सोच का मायना है सत्यम् शिवम् सुन्दरम् । एक सोच को ठीक करना सम्पूर्ण जीवन को दुरुस्त कर लेना है । ध्यान रखें, सोचना बहुत बड़ी कला है । क्योंकि इसी सोच के चलते ही कभी हम उत्साह से भर जाते हैं और कभी हम निराश हो जाते हैं। इसी सोच के चलते कभी हमारे जीवन में सुबह हो जाती है तो कभी शाम हो जाया करती है। इसी सोच की वजह से हमारे जीवन में उत्साह और उत्सव भर जाता है और इसी सोच के कारण कोई कायलाना झील में आत्महत्या कर लिया करता है । लोग नियंत्रण रखना चाहते हैं, कोई अपने भतीजे पर कोई अपने बेटे पर कोई अपनी बीवी या नौकर पर जबकि इन्सान खुद का ही गुलाम बना हुआ है। आदमी की सोच तो उसके नियंत्रण में है ही नहीं और चले दुनिया को काबू करने ! क्या कहीं ऐसा नहीं है कि हम औरों को ज्ञान बखान रहे हैं जबकि यह ज्ञान हमारे अपने जीवन में नहीं है। जीवन में ऐसे किसी भी सोच और विचार को अभिव्यक्त मत ७४ For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करो जो तुम्हारे जीवन में नहीं हो। जिन क्षणों में कोई व्यक्ति तुम्हारे द्वारा कहे गये विचारों के साथ तुम्हारे जीवन का सन्तुलन बैठाना चाहेगा तो भले ही कल जो व्यक्ति तुम्हारे विचारों के प्रति श्रद्धा रखा करता था, तुम्हारे जीवन को देखकर वह व्यक्ति तुम्हारे प्रति नफरत और ग्लानि से भर उठेगा। जिस व्यक्ति के प्रति व्यक्ति की श्रद्धा रही हो, जब वही व्यक्ति नफरत के काबिल हो जाता है तो उससे ज्यादा नफरत और किसी को नहीं की जा सकती। यह जीवन का सच है। इसलिए हम थोड़ा अपने विचारों को, अपनी सोच को, मस्तिष्क के भीतर जिन बीजों का अंकुरण होता है, उन बीजों पर ध्यान दें, ताकि सोच और चिंतन को सार्थक दिशाएँ दी जा सकें। स्वाभाविक है कि व्यक्ति जिन बातों का चिंतन-मनन करेगा, आदमी के जीवन में वही सब-कुछ घटित होगा। अगर फूलों को ध्यान से देखो तो आँखों में फूल मंडराने लगेंगे और तारों को ध्यान से देखो तो तारे भी तुमसे बातें करने लगेंगे। पैसे के बारे में सोचोगे तो जीवन में पैसा लक्ष्य बनेगा, सत्य के बारे में सोचोगे तो सत्य ही जीवन का लक्ष्य बनेगा, और नामगिरी के बारे में सोचने से नाम कमाना जीवन का लक्ष्य होगा। शिव का मनन करेंगे तो अपना और औरों का कल्याण करने का मन करेगा। भोग के बारे में चिंतन करोगे तो किसी नारी या पुरुष को देखकर वासना की तरंग उठेगी। अन्तर-निर्मलता के बारे में चिंतन करोगे तो तुम नारी हो या पुरुष, दोनों के प्रति सम्मान से भर उठोगे, आत्मसम्मान से, जीवन-सम्मान से। जैसी सोच, वैसी अभिव्यक्ति। जैसी अभिव्यक्ति, वैसी प्रवृत्ति। जैसी प्रवृत्ति, वैसी ही आदत। जैसी आदत, वैसा ही चरित्र। अगर कोई व्यक्ति अपने चरित्र को, अपनी आदतों को, अपनी प्रवृत्ति और अभिव्यक्ति को, अपने चिंतन को सम्यक्, सार्थक और उन्नत बनाए रखना चाहता है तो व्यक्ति अपनी सोच और अपने विचार को, अपनी मानसिकता को सम्यक् रखे, सार्थक रखे, सुशील बनाए। सोच को बनाएँ सकारात्मक For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपनी सोच और अपने विचारों को हर हाल में सौम्य, आनन्दमयी चेतना से सराबोर रखने के लिए इस दुनिया का सबसे बेहतरीन जो सूत्र है वह है, 'सकारात्मक सोच' । मैं इसे सार्थक जीवन का पहला और आखिरी मंत्र मानता हूँ । यह सोच का वह तरीका है, कि जिसे हम हर हाल में सकारात्मक बनाए रख सकें। इससे बढ़कर हमारे जीवन का और कोई श्रेष्ठ कदम नहीं हो सकता। कोई अगर मुझसे पूछे कि जीवन में स्वस्थ और सदाबहार, मधुर और प्रसन्न रहने का कौन-सा महामंत्र है, तो मैं सहजता से कहूँगा, 'सकारात्मक सोच’। यह जीवन को बेहतर जीने का पहला महामंत्र है । आप गायत्री मंत्र जपते हैं, जप्पू जी जपते हैं । नवकार मंत्र का जाप भी जपते हैं। आप ये सब जरूर जपिए। इन जपों से मेरा कोई विरोध नहीं है। मैं मंत्र-सुमिरण का समर्थक हूँ । पर इस बात पर गौर कीजिए कि क्या कहीं हमारे चित्त में, हमारे दिमाग में, नकारात्मकताएँ तो नहीं घुस रही हैं? तुम एक जप और करो और वह यह है कि हर हाल में अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखो । मेरा मंत्र है सकारात्मक सोच । मैं इस मंत्र का सहज अनुष्ठाता हूँ । और जप के लिए बैठक लगानी पड़ती है, खुद को तपाना पड़ता है। मैं जिस मंत्र की बात कर रहा हूँ उसमें करना कुछ भी नहीं है, केवल मानसिकता बनानी होती है । मेरा मंत्र कभी निष्फल नहीं जा सकता । इस मंत्र का चमत्कार हाथोंहाथ दिखता है और वह है शांति, माधुर्य, आनन्द और क्षमा। ये तो जीवन के आध्यात्मिक मूल्य हैं। सकारात्मक सोचिए, आध्यात्मिक विजेता बनिये | हर आदमी इस मंत्र को अपना सकता है । मैं कहूँगा कि यदि आप ऐसा करते हैं तो अपने जीवन की नब्बे प्रतिशत बीमारियों, आक्रोश-क्रोध से मनो-मस्तिष्क के तनावों, चिंताओं, डिप्रेशन, अनिद्रा, जड़ता, निराशा जैसी ढेर सारी बीमारियों से निजात पा लेंगे। तुम्हें अभी न्यूरोफिजिशियन के पास जाने की जरूरत इसलिए है कि तुम अपनी चिंता, घुटन, डिप्रेशन के वैचारिक ७६ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दलदल में उलझे हुए हो। इससे पहला नुकसान तो हमें यह हो रहा है कि हमारी ऊर्जा तथा मस्तिष्क की सबसे मूल्यवान क्षमता नष्ट हो रही है। सकारात्मकता के अभाव में डॉक्टरों की मार्केटिंग जबरदस्त चल रही है। आम आदमी सोच को, नजरिये को सकारात्मक बनाए, तो अति उत्तम, पर कम-से-कम अपने लोग तो जो धर्म और साधना के मार्ग पर कदम बढ़ा चुके हैं, यह संकल्प लें कि मैं हर हाल में सकारात्मक रहूँगा। खास तौर पर विपरीत वातावरण बन जाने पर, ओछी टिप्पणी सुन लेने पर, दस लोगों के बीच हल्का बताये जाने पर, यानी विपरीतता के बावजूद हम अपने आप को सहज रखेंगे, सौम्य रखेंगे। बात समझ में न आए, तब तक इस बात को जीना कठिन है। बात समझ में आ गई, तो यह फूल की खुशबू की तरह हमारे साथ होगी। जैसे ही लगे कि विपरीत निमित्त आया और तत्काल मंत्र-सुमिरण कर लें कि सकारात्मक सोच। या आप वहाँ से हट जाएँ, इस बात को लेते हुए कि मुझे अपने आप को सकारात्मक रखना है। तब निमित्त आप पर हावी न हो पाएगा और आप अपनी शान्ति और सौम्यता को तब हर हाल में बनाए रखने में सफल हो जाएँगे। याद रखें, सकारात्मक सोच स्वयं का श्रेष्ठ धर्म है। इससे बढ़कर कोई धर्म नहीं होता। नकारात्मक सोच स्वयं ही विधर्म है। इससे बढ़कर कोई विधर्म नहीं होता। सकारात्मक सोच स्वयं ही पुण्य है। इससे बढ़कर कोई पुण्य नहीं होता। नकारात्मक सोच स्वयं ही पाप है। इससे बढ़कर कोई पाप नहीं होता। अगर किसी राजर्षि प्रसन्नचंद के लिए कहा गया कि यह अगर इस क्षण मरता तो नरक में जाता। आखिर क्यों? इस कारण कि उसकी सोच बदल गई, सोच नकारात्मक बन गई। नकारात्मक सोच ही जीवन का पाप बनी। सोच ने ही नरक के द्वार खोले और सोच ने ही स्वर्ग के । संत बनने से भी ज्यादा जरूरी है सोच अच्छी हो, सकारात्मक हो। जिन क्षणों में राजर्षि सोच को बनाएँ सकारात्मक ওও For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रसन्नचंद की विचारधारा सकारात्मक हुई, विचारधारा के विधायक बनते ही नरक की ओर होने वाली गति रुक गई। नरक का रूपान्तरण हो गया। नरक की बजाय वह स्वर्ग का साधक बन गया। मैंने जीवन में जहाँ तक मुझे याद है, कभी कोई पाप नहीं किया है। इस अर्थ में कभी पाप नहीं किया कि मैंने अपने दिल में कभी भी नकारात्मक विचारों को प्रविष्ट नहीं होने दिया। मैंने जीवन में ढेर सारे पुण्य कमाए हैं। इस अर्थ में कि मैं हमेशा सकारात्मकता को बनाए रखने में ही विश्वासी रहा। मैं जितना अधिक ईश्वर में आस्था रखता हूँ, उससे कहीं ज्यादा अपने विचार और वृत्ति को सम्यक्, निर्मल और पवित्र बनाए रखने के प्रति सजग रहता हूँ। मैं उसके प्रति ज्यादा आस्तिक रहता हूँ। मेरा विश्वास किसी धर्म में नहीं है, मेरा विश्वास अपने आपको धारण करने में है। महावीर या बुद्ध ने क्या कहा है, यह बात बहुत मूल्यवान होगी। पर मेरी जिह्वा से क्या बात निकल रही है, मेरे लिए इस बात का बहुत बड़ा मूल्य है। मैं ऐसी कोई बात नहीं कहना चाहता जिसे कहने के बाद मुझे अपनी कही हुई बात के लिए प्रायश्चित करना पड़े, या यह सोचना पड़े कि मैंने यह क्या कह डाला! कहने से पहले सोच पूरी हो, प्रखर हो, प्रज्ञा और मनीषा से समृद्ध हो। कहने के बाद अगर प्रायश्चित भी करोगे तो उस तीर का क्या मतलब जो किसी कमान से निकल चुका हो। आप सकारात्मकता को अपनी पूंजी समझें, जीवन-मूल्यों की कुंजी समझें। जैसे ही नकारात्मकता लाएँगे, हमारा उत्साह क्षीण हो जाएगा। जैसे ही हम किसी के प्रति नेगेटिव हुए, हमारे उसके साथ सम्बन्ध शिथिल और क्षीण हो गए। हाल ही कुछ दिनों से देख रहा हूँ मैं एक ऐसे शख्स को जिन दो लोगों के बीच में नकारात्मकता आरूढ हो चुकी है। मैं निरन्तर यह परिणाम देख रहा था कि व्यक्ति के हृदय में अगर नकारात्मकता घुस जाए तो उसके क्या-क्या दुष्परिणाम होते हैं। मैं कई दिनों से उस व्यक्ति के जीवन में आए उस नकारात्मक ७८ __ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहलू का साक्षी बन रहा हूँ। मैं यह देखने की कोशिश कर रहा हूँ कि नकारात्मकता के कहाँ, क्या और किस सीमा तक परिणाम पहुँचते हैं? जब भी कोई व्यक्ति किसी के प्रति एक बार नकारात्मक हो जाएगा तो उसके बाद उसके मन में उठने वाला हर विचार उस व्यक्ति के प्रति नकारात्मक होगा... नकारात्मक होगा.... नकारात्मक होगा। अगर कोई तीसरा व्यक्ति इस संदर्भ में संकेत भी देना चाहे तो वह संकेत उल्टा ही पड़ेगा। इसलिए क्योंकि उस पर नकारात्मकता हावी हो गई है। जब किसी पर नकारात्मकता हावी हो जाए तो उसे दिया गया ज्ञान, बंदर को दी जाने वाली सिखावन है। नकारात्मकता को मैं शनि की संज्ञा दूंगा। जैसे शनि किसी पर हावी हो जाए, वह अपनी दुलत्ती मारे बगैर नहीं रहता, ऐसे ही नकारात्मकता है। जैसे शनि धनी को भी कंगाल बना देता है, ऐसे ही नकारात्मकता भी प्रेम, शांति सद्भावना, सम्मान और उम्मीदों के ताला लगा देती है। वह हावी हो जाती है कंगालियत क्रोध-आक्रोश की, वैर-वैमनस्य की, निराशा और अविश्वास की। दो लोगों की नेगेटिविटी कभी भी हाथों को जोड़ेगी नहीं। वरन् परस्पर सटी हुई अंगुली को भी दुसरी अंगुली से दूर करेगी; वहीं दो लोगों की सकारात्मकता चाहे कितनी भी दूरी क्यों न हो, फिर भी सेतु का काम करेगी। वह दो रास्तों को भी जोड़ेगी, दो समाजों को भी जोड़ेगी, दो धर्मों, दो आदमियों को और दो दिलों को भी जोड़ेगी। सकारात्मकता सुई की तरह है, नकारात्मकता कैंची की तरह है। कैंची केवल काटती है, सुई कटे हुए को भी जोड़ती है। कहते हैं, राम जब सेतु का निर्माण कर रहे थे, तब लंका में इस बात को लेकर खौफ पैदा हो गया कि जिस व्यक्ति के नाम को भी पत्थर पर लिख दिया जाए, तो पत्थर पानी में तिरने लगता है, तब स्वयं उस व्यक्ति में तो न जाने कितनी ताकत होगी? स्वयं रावण भी सोच में पड़ गया। रावण को भी लगा कि राम में कुछ तो विशेष तो है ही। सोच को बनाएँ सकारात्मक ७९ For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रावण ने यह घोषणा करवा दी कि वह भी पत्थर को पानी में तैराकर दिखाएगा। समुद्र-तट पर भीड़ इकट्ठी हो गई। रावण ने पत्थर पर लिखा-'रावण'। पत्थर को हाथ में उठाया और प्रणाम करते हुए पानी में छोड़ दिया। आश्चर्य, पत्थर तिरने लगा। रावण की जय-जयकार होने लगी। रात को मंदोदरी ने रावण से पत्थर तिरने का राज़ पूछा। मंदोदरी जानती थी कि रावण कितना भी शक्तिसम्पन्न क्यों न हो, पर उसके नाम से पत्थर पानी में तिरने लगे, यह सम्भव नहीं था। आखिर रावण ने कहा, “प्रिये! तुमसे क्या छुपाना? सच तो यह है कि जब मैंने पत्थर पानी में छोड़ा तो उससे पहले मैंने मन में कहा, पत्थर! तुम्हें राम की सौगन्ध, अगर तुम पानी में डूब गये तो! और सचमुच पत्थर पानी में न डूबा। और फिर पत्थर के ऊपर भले ही रावण का नाम लिखा हो, पर पत्थर के नीचे 'राम' लिखा था। इसे मैं कहता हूँ सकारात्मकता। दुश्मन में भी रहने वाली अच्छी चीज का सम्मान करना सकारात्मकता को जीने का श्रेष्ठ तरीका है। मैंने जब से अपना होश सम्भाला, तब से मुझे अपने जीवन में सबसे ज्यादा प्यारी रही मेरी अपनी माँ। माँ से मुझे जिस कारण से प्रेम रहा उनमें पहली बात, उसने हमारे लिए महान् त्याग किए। जीवन में जब-जब भी विपरीत निमित्त आते, हमेशा माँ का स्वरूप याद आता रहा। जब हम बालक बदमाशियाँ भी कर लेते और पिता हमें डाँटने या पीटने लगते, तो माँ यही कहती, 'बच्चे हैं, अब कर भी दिया तो क्या हो गया?' बालक के द्वारा की गई गलतियों के बावजूद माँ का उसके प्रति सकारात्मक रुख बनाए रखना, यह जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैंने माँ के चेहरे पर कभी भी शिकन, शिकवा या गुस्से की लकीर नहीं देखी। मैं उस माँ को इसलिए प्रणाम नहीं करता कि उसने हमें जन्म दिया है बल्कि मैं माँ को इसलिए प्रणाम करता हूँ कि उसकी शांति, सहिष्णुता, सकारात्मकता विरासत रूप में मुझे भी मिली है। जब माँ के सामने छोटे लोग गलती करते तो वह कहा करती कैसे जिएँ मधुर जीवन ८० For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थी, 'बच्चे हैं, बच्चे तो गलतियाँ करते ही हैं'। जब कोई बड़े लोग उनसे कुछ कहा करते तो कहती, 'बड़े लोग कहने के लिए होते हैं । वे नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेगा?' तो हम जाकर कहते, उन्होंने आपको ऐसा- ऐसा कह दिया, तो कहती, ‘कोई बात नहीं, माइत है'। बड़ों द्वारा दिये गये उलाहना को इतनी सहजता से स्वीकार कर लेना और छोटों की गलती को इतनी सहजता से माफ कर देना इसी का नाम है पॉजिटिवनेस । इसी का नाम है सकारात्मकता। जीवन का संतुलन, स्वयं की सहजता और शांति का संतुलन बनाए रखने के लिए इस नसीहत से आप जो सीखना चाहें, वह सीख लें। अगर कोई व्यक्ति हर हाल में सकारात्मक बना हुआ रहता है तो आप शांत रहेंगे, क्रोध से बचे हुए रहेंगे। आखिर हम अपने माइतों को तो सुधार नहीं सकते। उनको तो हम कह नहीं सकते कि गुस्सा मत करो, पर हम अपने आपको तो अपने नियन्त्रण में रख सकते हैं। अगर लगा कि अमुक वातावरण ठीक नहीं है, तो अभी वहाँ से हट जाएँ । दूध कोई हमेशा थोड़े ही उफनता रहता है । जब अंगीठी में आग रहती है तब तक उफनने की संभावना रहती है और अंगीठी कोई हर वक्त थोड़े ही जलती रहती है! अगर चौबीस घंटे आदमी के दिमाग में क्रोध चढ़ा हुआ रह जाए तो आदमी को बुखार चढ़ जाएगा । अगर आदमी के दिमाग में चौबीस घंटे विकार का उफान भरा हुआ रह जाए तो आदमी को ब्रेन हेमरेज होना शुरू हो जाएगा । वस्तुतः निमित्त को पाकर ही उफान आया करते हैं और हम वापस शांत भी हो जाया करते हैं । तुम तब पुनः उस वातावरण में जाओ जब वहाँ का उफान शांत हो जाए। अगर तुम्हें लगे कि अभी भी उफान बरकरार है, तो तुम अभी तो आए हो दो घंटे से, पर बाद में आना चार घंटे से । चार घंटे के बाद भी तुम्हें लगे कि अभी उफान है, अभी भी वैसी ही प्रतिक्रियाएँ हैं तो तुम आठ घंटे के बाद आना। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम आठ घंटे के बजाय आठ दिन के बाद आए, आठ दिन के बजाय तुम आठ महीने सोच को बनाएँ सकारात्मक For Personal & Private Use Only ८१ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के बाद आए। मूल्य दिनों का नहीं होता, मूल्य होता है जब तुम जिस वातावरण में पहुँचो, अगर उस वातावरण में तुम्हारे लिए सम्मान बरकरार नहीं रहता तो वह वातावरण तुम्हारे रहने के काबिल नहीं है। अगर मैं आप लोगों के बीच आऊँ और मुझे लगे कि मेरे प्रति आप लोगों में प्रेम और सम्मान नहीं है तो मुझे आप लोगों के बीच नहीं आना चाहिए। ठीक इसी कदर आप मेरे पास आएँ और मैं आपके प्रति प्रेम और सम्मान से भरा हुआ नहीं होऊँ तो आपका मुझ तक आने का कोई अर्थ नहीं है। जब मैं आपके बीच पहुँचता हूँ, आप सभी मेरे सम्मान में खड़े हो जाते हैं। मैं आप लोगों का शुक्रगुजार हूँ। शुक्रिया अदा करता हूँ कि आप मेरे सम्मान में इस कदर विनम्र हैं। अगर मैं अपनी ओर से वापस आपका सम्मान न करूँ तो यह मेरी ओर से नकारात्मकता है। सम्मान किसी को तभी मिलता है जब कोई वापस उसके बदले में सम्मान देने के लिए तत्पर रहता है। अपने ही बीच बैठी प्रिय आत्मन् गीता अरोड़ा ने मुझस कहा, 'जब मैं आपके पास आती हूँ, आप कृपा करके हाथ जोड़ कर मेरा सम्मान न किया करें। सम्मान तो मैं आपका करूँगी। सम्मान तो सदा देने की चीज होती है, लेने की चीज नहीं।' इस सुन्दर बात के लिए उसका अभिनन्दन कि सम्मान सदा औरों को देने के लिए होता है, लेने के लिए नहीं। उसने मुझसे मेरे ही उसूल की बात कही। सम्मान तो औरों को दिया जाए तो सम्मान का सम्मान बढ़ता है। सम्मान अगर औरों से ले लिया जाए तो सम्मान का कद बौना हो जाता है। हाँ, यह औरों को देने की चीज है और यह तभी दी जा सकती है जब हम औरों के प्रति सकारात्मक बनेंगे। तथा औरों को भी उसी रूप में देखेंगे। माना आप मेरे लिए किसी शिष्य के बराबर होंगे, पर आप अपने आप में किसी के माता-पिता, किसी के भाई-बहिन भी तो हैं। आप का सम्मान किया जा सके, वह चैतन्य-सत्ता भी तो है। और बातों को छोड़ भी दें, तब भी आप इंसान तो हैं, आप में मनुष्यता की पर्याय तो है। आपके भीतर भी वही ८२ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मा और चेतना है जो हर शरीर के भीतर रहती है। सबका सम्मान हो, धरती के हर प्राणी का सम्मान हो, मनुष्य तो क्या प्रकृति के हर अंग का सम्मान हो। और तो और, रास्ते में पड़ा हुआ कोई काँटा है तो उस काँटे को भी अपमानित मत कीजिए। उसे भी एक किनारे उठाकर फेंके तो सम्मान के साथ फेंकिए। अगर आपने काँटे का अपमान कर दिया तो वह भी आपके अपमान का कारण बन जाएगा। सकारात्मकता! हर हाल में सकारात्मकता। व्यवसाय करते हो तो व्यवसाय में भी सकारात्मकता, किसी के साथ व्यवहार हो तो व्यवहार में भी सकारात्मकता। पति-पत्नी हो तो कहा-सुनी भी हो ही जाती है, पर अगर रूठ कर बैठ गए तो वह तुम्हारे लिए आत्मघातक होगा। यह स्थिति तलाक तक की नौबत ला सकती है। आप सकारात्मक बनिए। आज नहीं तो कल, सामने वाले की नकारात्मकताएँ अपने आप खत्म हो जाती हैं। मैंने कहा ‘सोच सकारात्मक हो'। जब भी सोचो सकारात्मक सोचो। इससे जुड़ी दूसरी बात का भी ध्यान रखें कि जब भी सोचो समग्रता से सोचो। अपनी सोच को हमेशा समग्रता दिए रखें। कभी भी व्यग्रता के क्षणों में अपनी सोच, मन और दिलो-दिमाग का उपयोग मत करो। व्यग्रता के क्षणों में किया गया चिंतन, व्यग्रता के क्षणों में किया गया विचार, व्यग्रता के क्षणों में लिया गया निर्णय उल्टे व्यग्रता को बढ़ाता है। व्यग्रता में व्यक्ति उल्टा-पुल्टा ही सोचता है। ‘अच्छा, उसने मुझे नालायक कहा! ठीक है। अबकी बार मिलने दे। उल्लू के पढे को सीधा न कर दूँ तो मेरा भी नाम नहीं।' यानी व्यग्रता, व्यग्रता को बढ़ाती है। व्यग्रता के क्षणों में व्यक्ति अपने दिमाग के प्रति सावचेती रखे। जैसे ही लगे कि ये व्यग्रता के क्षण हैं, आप तत्काल श्वास को शांत मंद करते हुए स्थितिप्रज्ञ हों। तत्काल सोचें, मैंने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया है कि मैं शांत रहूँगा। इस समय व्यग्रता का वातावरण है अतः मुझे अपनी शांति बनाए रखनी चाहिए। यह सोच को बनाएँ सकारात्मक ८३ For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तर्बोध होते ही वातावरण भले ही वही रहे, किन्तु मन शांत रहेगा। तुम या तो शांति से जवाब दोगे या फिर लाजवाब हो जाओगे। तुम जवाब नहीं दोगे और विपरीत क्षणों में, व्यग्रता के क्षणों में जवाब न देना इससे बढ़िया लाजवाब क्या होगा? शांत, हर हाल में व्यक्ति इस बात का बोध बनाए रखे कि मैं हर हाल में अपनी शांति को बरकरार रखूगा। आप दिमाग को ठंडा रखिए, जुबान को नरम रखिए और दिल में रहम रखिए। स्वर्ग का सुकून आपके हाथ होगा। कोई व्यक्ति अशांत होता है, यह उसकी कमी या मजबूरी है। मैं उसको अपनी कमी या मजबूरी नहीं होने दूंगा। फिर चाहे इसके लिए मुझे कैसा भी सेक्रीफाइस क्यों न करना पड़े। ____ व्यग्रता हो तो मत सोचो। जब भी किसी बात पर निर्णय लेना हो तो समग्रता से सोचो। इस बिन्दु पर भी ध्यान दो। उस बिन्दु पर भी ध्यान दो, निर्णय पर पहुंचने से पहले हर हानि, हर लाभ पर अपना ध्यान जरूर केन्द्रित करो। अगर बाद में सोचना शुरू किया हानि होने के बाद, तो यह तुम्हारे लिए घाटे का सौदा होगा। आपमें कई वणिक्-पुत्र भी कहलाते होंगे। अतः वणिक् बुद्धि का, व्यवसाय-बुद्धि का उपयोग कीजिए कि लाभ-हानि कहाँ है? और अगर ब्राह्मण हो तो भी वणिक् बन जाओ। तुम और कोई जात या कौम के हो तो भी मैं कहूँगा कि तुम वणिक् बनो। वणिक्-बुद्धि का उपयोग करो। देख लो इस बिन्दु को भी, उस बिन्दु को भी, हानि को भी, लाभ को भी। किस सोच और किस विचार पर चलने से आपको लाभ है और किस पर चलने से हानि है इसका भी सकारात्मक निर्णय लें। क्या अभी व्यग्रता का क्षण है? क्या आशंका, आवेश या दुराग्रहों का क्षण है? नहीं, तुम्हारी सकारात्मक और समग्रता की सोच का आभामंडल अपने आप तुम्हारे वातावरण को निर्मल करेगा, इतना धीरज अवश्य धरो। जीवन में इस तरह के विपरीत वातावरणों में जितना काम धीरज आता है, उतना काम और कोई भी गुण नहीं आता। कैसे जिएँ मधुर जीवन ८४ For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन की हर विपरीतता और हर विपरीत निमित्तों की बीच, हर आक्रोश, हर आवेश और उत्तेजना के क्षणों में धैर्य जितना उपयोगी बनता है, मैंने पाया है कि उतना और कोई तत्त्व नहीं बनता। क्षमा भी, करुणा भी उतनी काम नही आती जितना कि चित्त में धारण किया हुआ धीरज काम आता है। तुम अगर पति हो तो पत्नी को तभी निभा सकोगे जब तुम्हारे भीतर उसके गुस्से को झेलने का धैर्य रहा • होगा। अगर वह धैर्य नहीं होता तो तुम आज इस स्तर तक नहीं पहुँचते और तुम कभी भी तलाक के लिए कोर्ट में पहुँच जाते और एक दूसरे से कुट्टी कर बैठते। __शांति से सोचो, समग्रता से सोचो। हर बिन्दु पर समग्रता से विचार करो। शांति अगर तुम्हारी चाहत है, शांति अगर तुम्हारा निर्णय है तो उसे पाने का, उसे जीने का व्यावहारिक सरलतम मार्ग है सकारात्मकता, पॉजिटिवनेस । कृपया मुस्कुराइये और सौम्य मानसिकता के साथ इस बात को इस चीज को अपने जेहन में उतरने दीजिए। भूदान आयोग के चैयरमेन भाई श्रीपाल जी सिंघी को साधुवाद जरूर दूंगा जिन्होंने आयोग के तहत सकारात्मक सोच के संदेश को पूरे प्रदेश में, प्रशासन के हर दफ्तर तक पहुँचाने की पहल की है। अपने स्वार्थ के लिए सभी लोग राजनीति करते हैं किन्तु उन्होंने मानवता को स्वस्थ और सौम्य बनाने के लिए राजनीति का उपयोग किया है। और लोग भी उनसे प्रेरणा अवश्य लें। सकारात्मक सोचिए, सफलता पाइये। अपनी ओर से इतना ही ही निवेदन है। आपकी अन्तश्चेतना को प्रेम-पुलकित प्रणाम। सोच को बनाएँ सकारात्मक ८५ For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेहतर जीवन के लिए योग अपनाएँ मेरे प्रिय आत्मन्! ___ योग जीवन का ओज है, जीवन की ऊर्जा है। यह जीवन को जीने की बेहतरीन कला है। एक ऐसी कला जो हमारे जीवन को अधिक स्वस्थ, अधिक प्रसन्न और अधिक ऊर्जावान् बनाती है। हजारों-हजार वर्षों के चिन्तन और मनन के पश्चात् ऋषि-मुनियों ने मानव-जीवन के अभ्युत्थान के लिए, उसके आध्यात्मिक स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि के लिए योग का मार्ग प्रशस्त किया है। योग तो एक ऐसा मार्ग है जिस पर सारे धर्म आकर केन्द्रित होते हैं। सारे पंथ और परम्परा जिस मार्ग का सम्मान करते हैं, वह योग ही है। ___आज सारे विश्व का ध्यान जिस मार्ग पर केन्द्रित हुआ है, वह योग ही है। ज्यों-ज्यों मनुष्य योग से मिलने वाली शांति और शक्ति को ८६ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समझेगा, अपने जीवन के लिए उसकी आवश्यकता और उपयोगिता को महसूस करेगा, त्यों-त्यों यह सारा युग, सारा विश्व अन्ततः योग की ही शरण में आएगा। जहाँ दुनिया की सारी औषधियाँ निष्फल हो जाएँ, सारे मार्ग अवरुद्ध हो जाएँ, तब भी वहाँ एक मार्ग, एक औषधि बची हुई रहेगी। वह मार्ग, वह औषधि योग होगा। आज 'योगा' और ध्यान के नाम पर, भारतीय संत जिस कदर पूरे संसार में छाए हुए हैं, उतने शायद पिछले हजार सालों में भी न छा पाए होंगे। उनकी अगर कोई शक्ति है, उनके पास अगर कोई पगडण्डी है, जीवन की शुद्धि का कोई घाट है तो वह एकमात्र योग है। हमारी यह बदकिस्मती है कि जिस भारत में योग का जन्म हुआ, वहाँ के लोग संभवतः योग से जितने दूर हो गये, उतना शायद पूरा विश्व भी नहीं हुआ। ___ अगर भ्रष्टाचार है, आतंकवाद है, रोग है, अनीति या और भी किसी तरह की बुराई या बीमारी है तो मैं कहूँगा, वह इसलिए है क्योंकि भारत और भारतीय समाज अपने जीवन के साथ योग को व्यावहारिक तौर पर जोड़ नहीं पा रहा है। योग तो अपने आप में कल्पतरु वृक्ष की तरह है कि जो भी व्यक्ति उसके पास पहुंचे और उससे जो भी माँगना चाहे, वह माँग सकता है। योग तो अपने आप में चिन्तामणि रत्न की तरह है कि उसके पास जाओ और जाने मात्र से ही, उसकी एक किरण पाने मात्र से ही आदमी के मन की चिन्ताएँ दूर हो जाया करती हैं, तनाव और दिमाग के बोझ उतर जाया करते हैं। __ योग तो माँ का वह आँचल है जो हमेशा अपनी हर संतान के लिए खुला रहता है। माँ अपने पापी बेटे के लिए भी अपना आँचल खुला रखती है और अपने पुण्यशाली बेटे के लिए भी। पुण्यशाली आदमी को तो हर कोई अपने गले लगाना चाहेगा, पर क्या दुनिया में ऐसा कोई समाज, धर्म या पंथ है जो किसी पापी को, चोर को, व्यभिचारी को या गलत प्रवृत्ति में जकड़े जा चुके आदमी को भी शरण दे सके? हाँ, योग ही एक ऐसा मार्ग है जो सबके लिए शरणभूत है। यह तो शिव की तरह बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं ८७ For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है जो सुर को भी वरदान देता है और असुर को भी। योग पापी को पुण्यात्मा बनाता है और पुण्यात्मा को परमात्ममयी दशा तक पहुँचाता है । योग अशुभ को शुभ की ओर तथा शुभ को शुद्धता की ओर ले जाने वाला रास्ता है। यह तो वह घाट है जिस पर पहुँच कर आदमी अपने जन्म-जन्म के मैलों को धो डालता है । शायद किसी मंदिर से किसी अपाहिज आदमी, किसी कोढ़ी या किसी छोटी जात के आदमी को दुत्कारा जा सकता है लेकिन योग वह पवित्र मार्ग है, जिसकी शरण में जो भी आता है, योग उसे उसका स्वास्थ्य देता है, उसे उसकी मानसिक शांति देता है। योग आपके मस्तिष्क की क्षमता को दुरुस्त करता है। योग हमारे मानसिक विकारों को काटने की छैनी और हथौड़ी है । वह जीवन की नकारात्मकताओं को हटाता है और सकारात्मकता को आत्मसात् कराता 1 योग यानी अपने आपसे जुड़ना और वियोग यानी अपने आपसे टूटना। बड़े अच्छे शब्द हैं योग, संयोग और वियोग। वह अवस्था संयोग कहलाती है जहाँ हम किसी निमित्त को पाकर उससे जुड़ते हैं और जब उस निमित्त से हम बिछुड़ जाते है तो वह अवस्था वियोग कहलाती है। पर जहाँ बिना किसी निमित्त के, बिना किसी साधन के व्यक्ति अपने आप से जुड़ा हुआ रह सके, उसका नाम योग है । योग तो वह मार्ग है, वह मज़ार है, मंदिर का वह सोपान है जहाँ हर कोई शरण ले सकता है । यह माँ का आँचल है । माँ के आँचल से ज्यादा करीब की चीज इंसान के लिए और कोई नहीं हुआ करती हैं। एक लड़की गलत सोहबत के कारण पापमय रास्तों को अख्तियार कर चुकी थी । पापों को जीने की उसे ऐसी आदत पड़ गई कि उसने अपनी विधवा माँ को भी छोड़ दिया और उन-उन गलत रास्तों पर जाती, बढ़ती चली गई जो कि आदमी को हमेशा पतन के गर्त में गिराते हैं । सदाचार के रास्तों से वह फिसल गई और दुराचार के रास्तों पर वह बढ़ ८८ For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चली। आखिर जिन लोगों को उसका उपभोग करना था, कर लिया और उस लड़की को उन्होंने छोड़ दिया । लड़की अकेली पड़ चुकी थी । उसने सोचा कि अब वह करे तो क्या करे? उसे और कुछ करने का न सूझा तो उसने आत्महत्या करने का मानस बना लिया। निराश, असहाय बना हुआ व्यक्ति मरने के अलावा भला सोच भी क्या सकता है? लड़की ने सोचा कि मैं मरूँ उससे पहले कम-से-कम अपनी विधवा बूढ़ी माँ को तो देख आऊँ । यह सोचकर वह वापस अपने घर की तरफ लौटने लगी। उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी । उसने अमावस की अंधेरी रात का चयन किया। ‘उस अंधेरी ओट में मैं जाऊँगी और माँ की कुटिया के पास पहुँचकर खिड़की में से झाँककर माँ को देख लूँगी और वहाँ से वापस लौट आऊँगी ।' ऐसा उसने सोचा 1 अंधेरी गलियों में चलते-चलते वह अपने घर के पास पहुँची तो वह यह देखकर दंग रह गई कि उसके मकान का दरवाजा खुला पड़ा था। वह किसी अनहोनी घटना की आशंका से घबरा उठी । उसे लगा कि आधी रात के वक्त मेरा मकान क्यों खुला है? कहीं अनहोनी तो नहीं हो गई है। वह घबरा गई और अचानक उसके मुँह से चीख निकल पड़ी “माँ”। और तभी भीतर से आवाज आई, 'हाँ बिटिया ! तो आखिर तू लौट आई। तुम्हारा स्वागत है।' यह कहते हुए माँ भी बाहर निकल आई। लड़की अपने आपको रोक नहीं सकी और दौड़ कर माँ के पास पहुँची । वह माँ से लिपटकर रोने लगी। माँ की आँखें छलछला आई । माँ के आँचल ने उसे अपनी गोद में, अपने आगोश में ले लिया । बिटिया ने कहा, ‘माँ! मैं तुम्हारा पवित्र प्रेम पाने के योग्य नहीं हूँ।' माँ ने कहा, 'बेटी, माँ का आँचल तो सदा समान रूप से खुला होता है। यदि तुम घर से भाग भी गई थी तब भी माँ का आँचल तो अपनी संतान के लिए शरणस्थल ही हुआ करता है।' बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं For Personal & Private Use Only ८९ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिटिया ने पूछा, 'माँ, पर एक बात तुम मुझे बताओ कि आधी रात के करीब मकान का दरवाजा क्यों खुला है?' ___ माँ ने कहा, 'बेटी! जिस दिन से तुम यहाँ से गई थी उस दिन से चौबीस घंटे यह दरवाजा खुला रहा है। मुझे विश्वास था कि आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, एक-न-एक दिन तुम जरूर अपनी माँ के पास आओगी। यह दरवाजा इसलिए खुला रखा था ताकि तुम दिन में आओ या रात में, सुबह आओ या साँझ में, जब भी आओ तो तुम्हें यह अहसास रहे कि इस घर में तुम्हारा सदा स्वागत है।' ___ माँ का आँचल सदा स्वागत करने को तत्पर रहता है। योग का आँचल भी प्राणिमात्र के कल्याण के लिए सदा खुला हुआ रहता है। दुनिया में हर पुण्यात्मा के पीछे पाप की एक गठरी बँधी हुई रहती है। हर दानवीर के पीछे पाप की कहानी छुपी रहती है, हर धर्मात्मा के पीछे पाप की छाया छिपी हुई रहती है। दुनिया में कोई दूध का नहाया नहीं होता, कोई पूर्ण नहीं होता। किसी का पाप ज्यादा है तो किसी का पाप कम है। जिसको अपने पापों का अहसास हो चुका, वह हर व्यक्ति योग की शरण में आ जाएगा और अपने पापों से मुक्त होने का प्रयास शुरू कर देगा। जिस दिन भी मनुष्य को अपने पापों का अहसास होगा उस दिन हर पुण्यात्मा की आँखों से भी आँसू ढुलकेंगे। ___ हम सब लोगों में से जिन-जिन लोगों को अपने जीवन में अपने छिपे हुए पापों और विकारों का, अपने भीतर छिपे हुए कषायों का थोड़ा बहुत अहसास है, थोड़ा बहुत बोध है, उस हर व्यक्ति को आत्मबोध की ललक, आत्मबोध की किरण देने के लिए मैं योग का मार्ग अपनाने की बात कहना चाहूँगा। गीता ने कभी योग को अपनी भाषा में कहा था 'समत्वं योग उच्यते'। पूछा गया भगवान से कि योग क्या है? जवाब मिला, 'समत्व' को ही योग कहा जाता है। जीवन की विषमताओं के बीच, परिवार और समाज की विषमताओं के बीच चित्त कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में रहने वाली समता का नाम योग है। __बुद्ध से पूछा गया, ‘भंते! योग क्या है?' बुद्ध ने कहा , 'कुशल प्रवृत्तिः योगः।' मनुष्य के द्वारा संपादित की जाने वाली सम्यक् प्रवृत्ति का नाम ही योग है। पतंजलि से जब यही सवाल किया गया कि 'प्रभु, योग क्या है?' तो जवाब मिला — योगश्चित-वृत्तिः निरोधः' अर्थात् चित्त की निरंकुश वृत्तियों पर अपना अंकुश और निरोध लगाना ही योग है। आज का एक प्रचलित शब्द है 'निरोध' । निरोध का अर्थ है रोकना। हर कोई इस शब्द से परिचित है। अपने चित्त की चंचल वृत्तियों को रोकना और उन पर निरोध लगा देना ही योग है। रात-दिन जो उठा-पटक, जो यातायात हमारे अन्तर्मन में चल रही है, उससे अपने आपको निरपेक्ष कर लेना ही योग है, निरोध है। शांत साक्षी-भाव ही चित्त पर अंकुश लगाने का मूल मंत्र है। अगर कोई व्यक्ति योग को जीना चाहे तो मैं कहूँगा कि उसे बाहरी तौर पर हाथी पर अंकुश लगाना होगा। बाहरी अंकुश लगाने के लिए हिंसा से बचें, झूठ से बचें, चोरी से बचें, अनावश्यक संग्रह पर अंकुश लगाएँ। इन बातों को चाहे आप महावीर का व्रत कह दें, चाहे बुद्ध के पंचशील कह दें या पतंजलि के पाँच यम कह दें। हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार और संग्रह पर अपना अंकुश लगाना योग का प्रवेश-द्वार है। योगी योग साधता रहे, पर जीवन में अगर पाप पलता ही चला जाए तो योग करने वाला, ध्यान धरने वाला, सामायिक, व्रत तथा पूजा-पाठ करने वाला व्यक्ति किसी कोने में जाए और एकांत में बैठकर सोचे कि मैं हर साँझ को प्रतिक्रमण करता हूँ और हर सुबह पापों को दोहराता हूँ। कहीं हमारी हालत ऐसी तो नहीं हो रही है कि लोग जाते हैं पुष्कर स्नान करने के लिए। और सोचते हैं कि हमारे पाप कटे पर जैसे ही बाहर वापस आये कि पाप शुरू हो गये। हज़ करने मात्र से पापी हाज़ी नहीं हो जाता। कहावत है, 'बिल्ली सौ चूहे खाकर हज़ करने जाती है', पर इससे क्या? वापस आजमगढ़ में बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं ९१ For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आए तो वापस वही सब कुछ करने लग जाती है। हज़ पवित्र कार्य है। हज़-यात्रा के लिए कदम बढ़ाने से पूर्व पंच यम, पंचशील, पंच व्रत अपनाने पड़ते हैं। योग भीतर की हज़यात्रा ही है। हम भीतर में ध्यान धरें पर बाहर भी शांति, समता और मर्यादा का भी विवेक रखें। लोग कोल्हू के बैल की तरह जीते हैं और वही रोजाना घोटते रहते हैं। उनकी तोता-रटंत जारी रहती है। उन्हें न जीवन में मुक्ति का अहसास है, न बोध; न सुधरने की कोई तैयारी, न कोई मानस-शुद्धि संकल्प, फिर तो वही हालत होगी जो हालत हाथी की हुआ करती है। ___हाथी उतरता है सरोवर में। वह जम कर स्नान करता है, पर जैसे ही वह बाहर आता है, अपनी सूंड से मिट्टी उठा-उठाकर फिर से अपने शरीर पर डाल देता है। अपन सब लोग इतने ही धार्मिक हैं। धर्म के नाम पर धर्म भी रोज करते हैं और पाप के नाम पर पाप भी रोजाना दोहराते रहते हैं। इसीलिए प्रतिक्रमण सार्थक नहीं होता, सामायिक सार्थक नहीं होती, साधुता सार्थकता नहीं दे पाती। घाणी का बैल चलता रहता है, पर अपने आप को कहाँ पाता है? अर्थात् वहीं जहाँ से उसने शुरुआत की थी। हम लोग भी इस बात से प्रेरणा लें। आप अपनी उमर की पड़ताल करें और सोचें कि दस साल पहले आप कैसे थे? उससे दस साल पहले आप कैसे थे? अगर बीस साल पहले जैसे थे, वैसे आज भी हैं अर्थात वही गुस्सा, वही चिड़चिड़ापन, वही खीझ, वही चिंता, तो इसका मतलब हमारा शरीर जरूर बूढ़ा हो रहा है, पर हम बुजुर्ग नहीं हो पा रहे हैं। हम बीस साल पीछे हैं। हम पिछड़े हुए लोग हैं। कुछ लोग तो और भी अधिक पिछड़े हुए हैं। जो जीवन से पाठ न सीख पाए, आगे न बढ़ पाए, वे पिछड़े ही कहलाएँगे। यम-नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि द्वारा पतंजलि ने एक सुव्यवस्थित जीवन-विज्ञान दिया है। एक सिस्टेमेटिक साइंस, जीवन का एक व्यावहारिक आध्यात्मिक विज्ञान। हम हिंसा, झूठ, चोरी और व्यभिचार आदि पर अंकुश लगाएँ और प्रभु ९२ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की भक्ति करें । तप और स्वाध्याय से अपने आप को जोड़ें, यह हुआ नियम । व्यक्ति ध्यान में एक घंटे स्थिरतापूर्वक बैठ सके, इसके लिए जरूरी है कि व्यक्ति योगासन - व्यायाम अवश्य करे ताकि उसके शरीर की जड़ता टूटे और उसे स्फूर्ति की प्राप्ति हो । शरीर की जड़ता को तोड़ने के लिए हर व्यक्ति योगासन सम्पादित करे। मैं कहना चाहूँगा कि आसन और योगासन को हम उतना ही मूल्य दें जितना कि भोजन करने को मूल्य और महत्त्व देते हैं । रोग काटने की दवा आदमी के हाथ में है बशर्ते आदमी प्रतिदिन योगासन करे। लोग एक घंटा ढंग से बैठ भी नहीं पाते। मैं तो कहूँगा कि जितनी तन्मयता से बैठकर आप मुझे सुनते हैं, उतनी तन्मयता से ध्यानयोग को साधें । तन्मयता ही ध्यानयोग की सीढ़ी है। आप जरा देखिए कि लोग यहाँ कितनी शांति और तन्मयता से सुनते हैं। हजारों लोग यहाँ उपस्थित हैं फिर भी दशहरा मैदान में एक सुई भी गिर जाए, तो आवाज आ जाएगी। ऐसी ही तन्मयता ध्यानयोग के साथ होने लगे, तो योग जीवन के लिए किसी चमत्कारी परिणाम का आधार हो सकता है एक घंटे तक स्थिरता हो, जप में, ध्यान में बैठ सकें, इसके लिए योगासन जरूर कीजिए। अपने शरीर की जड़ता, प्रमाद और तंद्रा को तोड़ने के लिए योगासन प्रथम अनिवार्यता है । हम अपनी साँसों को जो प्राणवायु भीतर-बाहर आ-जा रही है उस आती-जाती प्राणवायु को, को, शुद्ध ऑक्सीजन को पूरे शरीर में संचारित करने के लिए प्राणायाम करते हैं । अर्थात् ली जा रही तथा छोड़ी जा रही साँस को एक ऐसी प्रक्रिया दी जाती है कि वह साँस, वह प्राणवायु हमारे पूरे शरीर में संचारित और प्रभावी हो, हमारे रक्त में, हमारी धमनियों में हमारी नाड़ियों में शुद्ध प्राणवायु संचारित हो और अशुद्ध प्राणवायु, कार्बन-डाई-ऑक्साइड का बाहर विरेचन हो, यही प्राणायाम है | शरीर की स्वस्थता के लिए योगासन जितना लाभप्रद है, प्राणायाम बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं For Personal & Private Use Only ९३ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी उतना ही सहयोगी है। जो काम योगासन नहीं कर पाता, वह कार्य प्राणायाम कर लेता है। आप कुछ हल्के-फुल्के सरल योगासन अपने जीवन के साथ जोड़ लें। डॉक्टर की पहली सलाह होती है कि आप टहलें, योगासन करें। हड्डियों के रोग तो एक्सरसाइज से ही दुरुस्त होते हैं। पहले किसी जानकार व्यक्ति से सीख लें, फिर खुद करें। योगासन के साथ प्राणायाम भी करना सीखें। कुछ प्राणायाम साँस लेने से जुड़े हैं और कुछ साँस छोड़ने से जुड़े हैं। शरीर के रोगों को काटने के लिए दस मिनट तक लम्बी गहरी साँस छोड़ें, जबकि भीतर के चैतन्य केन्द्रों को सक्रिय करने के लिए दस मिनट तक केवल लम्बी गहरी साँस लें। दोनों के अपने-अपने फायदे हैं। रामदेव महाराज केवल प्राणायाम के बूते पर ही सैकड़ों तरह के रोग ठीक करने की गारंटी लेते हैं। वे तो बता सकते हैं, पर करना फिर भी आपको ही है। __ प्राणायाम के बाद है प्रत्याहार। अब हमारी प्रवृत्ति अन्तर्मुखी हुई। प्रत्याहार यानी अन्तर्मुखी होने की पहल। जब हम अपने भटकते हुए चित्त को एक स्थान पर वापस लाने की जो कोशिश करते हैं, उस स्थिति का नाम है प्रत्याहार। जिसे पतंजलि ने प्रत्याहार कहा है, महावीर ने उसी को प्रतिक्रमण कहा है। प्रतिक्रमण का अर्थ केवल इतना-सा न समझें कि यह किसी किताब में लिखा हुआ पाठ है, सूत्र है, जिसे पढ़ लिया और प्रतिक्रमण हो गया। प्रतिक्रमण, प्रत्याहार, पर्दूषण ये सभी पर्यायवाची शब्द हैं और इनका अर्थ होता है हमारा मन जिन-जिन राग-द्वेष-जनित स्थितियों में उलझ चुका है, वहाँ-वहाँ से अपने चित्त को वापस अपने आप में लौटा लाना प्रतिक्रमण है, पर्दूषण है। __इसे यों समझें कि जैसे कोई चिड़िया दिनभर आसमान में उड़ती है, दाना-पानी की व्यवस्था करती है, किन्तु साँझ ढलते ही वह चिड़िया ९४ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने घौंसले में लौट आया करती है, ठीक इसी कदर अपने आपको अपने आप में लौटा लाने का नाम प्रत्याहार है, प्रतिक्रमण है। जैसे सूरज दिनभर धरती को अपनी किरणे देता है और साँझ होने पर अपनी किरणों को अपने आगोश में समेट लेता है, वैसे ही जिन-जिन से आपने दिनभर में सम्बन्ध किया, दोस्ती की, दुश्मनी की, झूठ-साँच किया, जो कुछ किया, जहाँ-जहाँ हमारा चित्त सिमटा, बँटा, बिखरा, वहाँ-वहाँ से अपने आपको लौटा लाने का नाम ही है प्रत्याहार। और जब आत्मसंकल्पपूर्वक, मनोयोगपूर्वक अपने चित्त को स्थिर करने का जो प्रयास करता है कि मैं आत्मभावे अपने आप में रमण करूँगा; यह जो धारण किया जाने वाला संकल्प है इसका नाम है धारणा। जब व्यक्ति अपने चित्त में धारण किये हुए संकल्प के साथ, उस ध्येय के साथ, उस लक्ष्य के साथ एकलय, एकतान, एकरूप होता है तो उस एकतानता का नाम है ध्यान। अपने में लौटना पहला चरण, अपने को धारण करना दूसरा चरण और धारण किये हुए में एकलय होना ध्यान का तीसरा चरण है। __ ध्यान के दौरान जिसे हमने अपना लक्ष्य बनाया है, जब व्यक्ति उसकी परम, सर्वोच्च अवस्था को उपलब्ध कर लेता है तो उस अंतिम परिणति का नाम है 'समाधि' । यम-नियम से शुरू होने वाली योग की यात्रा ध्यान और समाधि पर जाकर पूर्ण होती है। यह योग का मार्ग है। हम योग की व्यावहारिक दृष्टि लें, जिसे कि आप अपने व्यावहारिक जीवन में सहजतया जी सकते हैं। जब तक गुर हाथ न लगे तब तक माटी से दीया बनाना कठिन है। हाथ में माला लेकर जाप करना कठिन है और जाप कर भी लोगे तो मन को स्थिर करना कठिन है। ऐसा कौन व्यक्ति है जो शांति से बैठे और मन में उसके भागमभाग शुरू न हो? आप लोग तो धार्मिक हैं, छोटे-बड़े व्रत भी करने वाले हैं, पर मन में स्थिरता नहीं है। अगर गुर हाथ लग जाए तो मैं कहूँगा कि योग का मार्ग सरल है। स्वास्थ्य, शांति और समाधि के लिए इतना सरल मार्ग है कि बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुनिया में इससे ज्यादा सरल मार्ग और कोई नहीं है । प्राणायाम तक योग 'क्रिया' है। प्राणायाम से आगे योग ‘अन्तर्क्रिया' है। अन्तर्क्रिया के मार्ग में कुछ करना नहीं पड़ता क्योंकि यह तो होने का मार्ग है । अपने आपमें होने का मार्ग है। आप जहाँ बैठे हैं, जिस डगर पर हैं, जिस पहाड़ी पर हैं, हर जगह योग को अपने साथ जोड़ा जा सकता है । आप अगर मेहतनकश हैं तो मैं योग का वह दृष्टिकोण देना चाहूँगा जिसे अतीत में कभी कृष्ण ने कर्मयोग की संज्ञा दी थी। व्यक्ति का वह कार्य और कर्तव्य कर्मयोग बन जाता है जब व्यक्ति उसे कर्ताभाव से मुक्त होकर संपादित करता है । 'मैं' के इस भाव से मुक्त होकर किया जाने वाला कार्य भी योग है। कार्य तो वही होगा, पर कार्य के प्रति नजरिया बदल जाएगा । जीवन में मिलने वाली असफलताओं से निराश होकर बैठ जाने वालों के लिए कर्मयोग है। यानी कर्म करो, फल की आकांक्षा मत रखो। शायद अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोग सबसे कम खेती करते हैं। अहिंसा में विश्वास करने वाले लोग सबसे कम हरियाली उगाते हैं। मैं कहना चाहूँगा कि दुनिया में अगर सबसे ज्यादा खेती और हरियाली का विकास किसी को करना चाहिए तो अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोगों को करना चाहिए। जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास रखता है, वह अगर हल चलाएगा तो छोटी-से-छोटी चींटी और मकोड़े को भी बचाना चाहेगा। गेहूँ तो तुम्हें खाने होंगे, अनाज का तो तुम्हें उपभोग करना ही होगा, पर तुम केवल उपभोग पर ही ध्यान मत दो, उसके उत्पादन पर भी ध्यान दो । केवल उपभोग में ही यह विवेक नहीं होना चाहिए कि वह अहिंसामूलक हो वरन् उत्पादन में भी विवेक हो कि वह अहिंसामूलक हो। अगर आप उत्पादन के साथ अहिंसा को जोड़ लें तो यह सराहनीय कृत्य होगा। यदि आप उत्पादन पर ध्यान देंगे तो शायद चमड़े के जूते ९६ For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं पहनेंगे। अगर आप उत्पादन पर ध्यान नहीं देंगे तब तो आप केवल बाजार गये और जाकर सीधे जूते खरीद कर ले आए। उत्पादन पर ध्यान देने वाले लोग कपड़े के जूते और चप्पल पहनेंगे। मैं कहूँगा कि अभी अहिंसा तुम्हें फिर से समझनी होगी। केवल उपभोग के दायरे में ही अहिंसा को जीवित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि उत्पादन के दायरे में भी अहिंसा का अंकुश लग जाना चाहिए। ___ खेती कीजिए, कोई दिक्कत नहीं है। आप और श्रेष्ठ उत्पादन कर सकेंगे। अब तो अहिंसामूलक खेती होनी चाहिए जिसमें हिंसा कम-से-कम हुई हो। कभी गीता ने कहा था 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' कर्म करना तुम्हारा कर्त्तव्य, श्रम करना तुम्हारा कर्त्तव्य है। फल पाने की आकांक्षा रखना तुम्हारा कर्त्तव्य नहीं है। फल तुम्हें स्वतः मिलेगा। कार्य और कर्त्तव्य तुम्हारा काम है। फल को तुम्हारे कार्य का परिणाम होगा ही होगा। इसलिए जो कुछ करो, उसे प्रभु को समर्पित कर दो। कहो, 'हे प्रभु! यह जो मेहनत की, वह तुम्हें समर्पण।' आपने मंदिर में फूल तो चढ़ाऐ ही होंगे। मैं कहूँगा घर में जब कचरा निकालें तो वह भी उसे चढ़ा देना जिसे तुम फूल चढ़ाते हो। फूल भी तुमने भेजा और कचरा भी तुमने भेजा। तेरा तुझको अर्पण! । ___ अपने कर्म को अगर हम कर्ता-भाव से मुक्त होकर, अपने कार्य को अगर हम पूजा बनाकर सम्पादित करें तो हमारा हर कार्य प्रार्थना बनता चला जाएगा। शायद मंदिर में हम एक-दो घंटे बैठते हैं, पर आठ घंटे नहीं बैठ सकते। आठ घंटे तो आपको कर्म करना पड़ेगा। तो फिर क्यों न ऐसे मार्ग को अपनाया जाए जो आपको आठ घंटे लगातार परमात्मा से जोड़े रखे। मैं यह जो आपको बता रहा हूँ यह भी कर्मयोग है यानी प्रभु की सेवा का एक चरण है। आप झाडू लगाते हुए भी परमात्मा से जुड़े रह सकते हैं। एक बुहारी चलाई और भगवान का नाम ले लो। जितनी बार बुहारी चलाओगे उतनी बार भगवान का नाम भी ले लो। धीरे-धीरे आप पाएँगे कि बुहारी तो लग रही हैं सहज बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं ९७ For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में और सहज ही भगवान का नाम-स्मरण भी हो रहा है। आपका झाडू लगाना भी माला के जाप करने जैसा हो जाएगा। रोटी बनाओ तो उसे बनाते-बनाते भी भगवान का नाम ले लो। भोजन करने बैठो तो भगवान का नाम लो, ‘प्रभु! स्वीकार करो प्रसाद' । यह मत सोचो कि मैं खा रहा हूँ। मैं तो भीतर बैठे भगवान को समर्पित कर रहा हूँ। अगर आप अपने भीतर ही परमात्मा की किरण को स्वीकार कर लें तो हममें कोई भी ‘गधा' ऐसा नहीं होगा जो जर्दा, तम्बाकू खाए, सिगरेट पिए, शराब पिए या और कुछ इस तरह का कचरा खाए। क्या आप किसी मंदिर में जाकर सिगरेट चढ़ाते हैं? अगर वह अच्छी चीज है तो चढ़ाया करो। कोई आदमी गुटखा या पान पराग नहीं चढ़ाता। ऐसा कोई कचरा नहीं चढ़ाते हम भगवान को। हम भगवान को अच्छी-से-अच्छी चीज चढ़ाते हैं, फल चढ़ाते हैं, पुष्प चढ़ाते हैं, मिठाइयाँ चढ़ाते हैं। भई! अपने भीतर भी तो भगवान है, यह मानकर खानपान ग्रहण कीजिए कि मैं अपने प्रभु को अर्घ्य चढ़ा रहा हूँ! भोजन करने के लिए बैठें तो एक पल के लिए पलकों को झुकाइये, ईश्वर को याद कीजिए और भोजन करना शुरू कीजिए। भोजन पूरे मन से कीजिए, तबीयत से कीजिए, धैर्यपूर्वक कीजिए, मौनपूर्वक कीजिए। एक-एक कौर हम उसे चढ़ा रहे हैं। आप ताज्जुब करेंगे कि आपका भोजन करना भी आपके लिए योग का चरण बन रहा है। ___ कबीर जैसे लोग जब बाजार में जाते तो लोग उनसे पूछते, 'कहाँ जा रहे हो?' तो कबीर कहते, ‘मंदिर की परिक्रमा लगाने जा रहा हूँ।' कबीर बाजार जाते तो कहते, मंदिर की परिक्रमा लगाने जा रहा हूँ! खाते-पीते तो कहते, भगवान की सेवा कर रहा हूँ!' खाऊँ-पीऊँ सो सेवा, उठू-बैह् सो परिक्रमा। मैं जो उठता-बैठता हूँ, वह तेरे नाम का। हर कार्य को, हर कर्त्तव्य को आप भी कर्मयोग बना सकते हैं। निठल्लापन कोई काम का नहीं है, चाहे आप गरीब हों, चाहे आप अमीर हों। चाहे ___कैसे जिएँ मधुर जीवन ९८ For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप बूढ़े हों, चाहे आप बच्चे हों। निठल्लापन अभिशाप है। अकर्मण्यता पाप है। किसी भी तीर्थंकर या अवतार ने मनुष्य को फल की आकांक्षा से मुक्त होने की प्रेरणा तो दी है, लेकिन कर्म और कार्य से मुक्त होने की प्रेरणा कतई नहीं दी है। हर व्यक्ति को यह प्रेरणा दी गई है कि उसका जीवन खंडप्रस्थ है, अतः उसे इन्द्रप्रस्थ बनाओ। हर व्यक्ति कर्मयोगी बने। ____ आज आदमी से काम नहीं होता। हर आदमी औरों से काम कराना चाहता है। यानी छोटा होना जुल्म हो गया। बेटा या बहू होना जुल्म हो गया। घर में सास से काम ही नहीं होता कि बहू ले कर आ गई हूँ। अब मैं कैसे काम करूँगी? सब लोग नवाबजादे और अमीरजादे बने घूम रहे हैं। जहाँ अमीरजादे, नवाबजादे और शाहजादे कामचोर हो जाते हैं, लाटसाहब बने घूमते हैं, वहाँ फिर कोई हरामजादा बन जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं। आप कृपया मेरी बात को सकारात्मक लें और अपनी बहू के साथ हाथ बँटाएँ। वह बहू है, नौकरानी नहीं। सब मिलकर काम करें। हम सब साथ-साथ हैं तो काम भी साथ-साथ करें। काम आपस में बाँट लें, ताकि किसी एक पर ही सारा बोझ न पड़े। यदि मिलकर काम करो तो काम भारभूत नहीं बनता। काम करने में तब मजा भी आता है। स्वावलम्बन कर्मयोग की पहली प्रेरणा है। ___ एक चर्चित कहानी कहते हैं। किसी रास्ते में एक राहगीर अपने घोड़े पर गुजरा। उसे प्यास लगी तो वह पानी के कुएँ के पास पहुँचा। वहाँ बाल्टी भी पड़ी थी और उसे प्यास भी लगी थी, पर वह इधर-उधर ढूँढने लगा कि शायद कोई पानी पिलाने वाला मिल जाए ओर पानी निकाल कर उसे पिला दे। वह आदमी इस इंतजार में वहाँ बैठ गया। थोड़ी देर बाद एक दूसरा आदमी वहाँ आया। उसने भी देखा कि वहाँ पानी भी है, बाल्टी भी है। उसने बैठे हुए आदमी से कहा, 'भाई, थोड़ा पानी तो निकाल कर पिला दो।' उसने कहा, 'मैं तो तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। मैं भला तुम्हें पानी कैसे पिला बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं ९९ For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकता हूँ?' 'क्यों भाई तुममें क्या खासियत है?' उसने कहा, 'मैं तो अमीरजादा हूँ। भला मैं तुम्हें पानी कैसे पिलाऊँ?' दूसरे ने कहा, 'जब तुम नहीं निकाल सकते तो मैं कैसे निकाल कर पिलाऊँ क्योंकि मैं तुमसे भी बड़ा हूँ। मैं तो नवाबजादा हूँ।' दोनों बैठ गए किसी पानी पिलाने वाले के इंतजार में। थोड़ी देर में एक और भूला-भटका राहगीर वहाँ पानी की तलाश में पहुंचा। उसने भी आकर कहा, 'भाई, थोड़ा पानी पिला दो ना।' उन्होंने कहा, 'भई, हम तो खुद बैठे हैं। तुम पानी निकालो हमको भी पिला दो, तुम भी पी लो।' 'क्यों भई तुम्हारी क्या खासियत है?' एक ने कहा, 'मैं अमीरज़ादा हूँ' दूसरे ने कहा, 'मैं नवाबजादा हूँ।' तीसरे ने कहा, 'भई, तब तो मैं भी नहीं पिला सकता क्योंकि मैं शाहज़ादा हूँ।' तीनों ही ज़ादे बैठ गए किसी चौथे की इंतजारी में। ___ इतने में एक आदमी और आया। वह भी प्यासा था। उसने बाल्टी उठाई, कुएँ में डाली और जैसे ही पानी निकालने लगा, तीनों बोले, 'भाई, हम भी प्यासे हैं। हमें भी पानी पिला देना।' उसने कहा, 'ताज्जुब की बात है! तुम तीन लोग हो और प्यासे मर रहे हो। क्या अपने आप पानी निकाल कर नहीं पी सकते थे?।' तीनों ने कहा, 'तुम्हीं बताओ हम कैसे निकाल कर पीते? एक अमीरजादा, दूसरा नवाबजादा और तीसरा शाहजादा! फिर कैसे पानी निकाल कर पीते?' उस व्यक्ति ने कहा, 'मेरे हाथ का पानी तुम्हारे काम का नहीं है।' 'क्यों, क्या बात है?' वह बोला, 'मैं भी एक जादा हूँ। इसलिए मेरा पानी तुम्हारे काम नहीं आएगा। वे बोले, 'तुम कौन से जादे हो?' 'मैं हरामजादा हूँ'। तीनों ने कहा, “भई अमीरजादा तो सुना है, नवाबजादा भी सुना है, शाहजादा भी सुना है, पर हरामजादा पहली बार सुना है। यह कौन सी कौम पैदा हो गई?' उसने कहा, 'जहाँ तीनों जादे निठल्ले बन जाते है, वहाँ चौथा जादा पैदा होकर आता है। और वह कौम होती है हरामजादे की।' तुम कर्म करो, मेहनत करो और मेहनत को भी इस भाव से करो कैसे जिएँ मधुर जीवन १०० For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कि सिर्फ कार्य नहीं कर रहा हूँ, अपितु मेरा हर कार्य परमात्मा का पूजा है । इस भाव से आप अपने हर कार्य को सम्पादित कीजिए । अपने कार्य से प्यार करना सीखिए । कार्य ही आपके लिए स्वर्ग का सेतु बन जाएगा । कर्म ही आपका आईना है । आप जैसे हैं, कर्म आपको आपका वैसा ही रूप दिखा देगा । कर्म ऐसा हो, जो आपका आईना बने । अगर आप एक घंटे की खुशी चाहते हैं तो आप जहाँ बैठे हैं वहीं एक झपकी ले लीजिए। अगर एक दिन की खुशी चाहिए तो जहाँ आप काम करते हैं, वहाँ की छुट्टी मार लीजिए । छुट्टी मनाइए, घूमिए - फिरिए । अगर एक सप्ताह की खुशी चाहते हैं तो पिकनिक मनाने चले जाइए । एक महीने की खुशी चाहिए तो किसी से शादी कर लीजिए और अगर एक साल की खुशी चाहिए तो किसी की गोद में चले जाइए और विरासत में उसका धन अपने नाम लिखवा लीजिए । पर अगर जिंदगी भर की खुशी और राहत चाहिए तो आप जो काम करते हैं, उस काम से प्यार करना सीखिए । हर काम बहुत प्यार से करना चाहिए। इतनी तबीयत से कि कार्य स्वयं पूजा और प्रार्थना बन जाए। जीवन में दुःखों से मुक्त होने का गुरुमंत्र ले लो : 'हर समय व्यस्त रहो, हर हाल मस्त रहो' । हर व्यक्ति कर्मयोगी बने। यहाँ तक कि अगर सेवनिवृत्त भी हो जाओ, तब भी स्वयं को सक्रिय रखो । सक्रियता ही कर्मयोग है। उसे अवश्य करो. क्योंकि तुम करने में समर्थ हो । किसी भी देश की बेरोजगारी की समस्या को दूर करने का पहला और आखिरी मंत्र है- 'कर्मयोग' | कौन कहता है आकाश में, सुराख नहीं हो सकता? एक पत्थर तो, तबीयत से उछालो यारो । बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सब कुछ सम्भव है, बशर्ते तुम उसे तबीयत से, मन से करने की कोशिश करो। जो करो, उसे पूरा सौ प्रतिशत करो। आधे-अधूरे मन से मत करो। अन्यथा काम भी बिगड़ेगा और तनाव भी बढ़ेगा । काम के समय काम करो और जब काम न कर रहे हों, तो आराम करो । दुकान जाओ तो घर को साथ मत ले जाओ। घर आओ तो घर आओ । घर आओ, तो दुकान को साथ मत लाओ। कर्मयोग ऐसे करो कि शांति बाधित न हो । योग का दूसरा स्वरूप है, 'ज्ञानयोग' । अगर आपको ईश्वर और कुदरत ने बुद्धि दी है तो उस बुद्धि का विवेकपूर्वक उपयोग कीजिए । ज्ञान से बढ़कर कोई प्रकाश नहीं है, कोई आँख नहीं है। ज्ञान से बढ़कर कोई सुवास नहीं है और ज्ञान से बढ़कर कोई गुण नहीं है ज्ञान ईश्वर की ओर से मनुष्य को मिला हुआ अतिरिक्त वरदान है अगर आप अपने ज्ञान के साथ विवेक को जोड़कर रखेंगे तो आपका ज्ञान आपके लिए ज्ञानयोग बन जाएगा । अगर विवेक है तो सब कुछ है और अगर विवेक नहीं है तो आप कितने ही पढे-लिखे हैं, कितने ही पैसे वाले हैं, कुछ भी हैं पर योग-रहित हैं। जिन्हें न बोलने में विवेक, न खाने में विवेक, न चलने में विवेक तो जिनकी जिंदगी में विवेक ही नहीं है, अगर वे अपने आप को धार्मिक भी कहते हैं तो मैं कहूँगा कि यह महज़ प्रवंचना है | जिस व्यक्ति के पास विवेक है, उसी के पास धर्म की डगर है और जिसके पास विवेक नहीं है, उसका ज्ञान बात-बेबात में औरों को दिया जाने वाला उपदेश मात्र है । यदि यों ही ज्ञानी महाराज बनते रहें तो अकड़बाज तो जरूर हो जाओगे और किसी और को कुछ भी न समझोगे । दुनिया में यही होता आया है। जिसके पास पैसा बढ़ गया, वह भी अकड़बाज हो गया और जिसके पास ज्यादा ज्ञान आ गया, वह भी अकड़बाज हो गया । १०२ For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसीलिए जीसस ने कहा था कि पैसे वाले स्वर्ग में नहीं जाते। ऊँट अगर सुई में से निकल जाए तो शायद स्वर्ग मिल जाए पर अमीर अगर सुई में से निकल जाए और स्वर्ग के रास्ते तक पहुँच जाए तब भी उसे स्वर्ग नहीं मिल सकता। उसे अकड़ आ जाती है न् । पैसा हो और फिर भी आदमी विनम्र रह जाए, यह बड़ी बात है । धन आने के बावजूद व्यक्ति के मन में घमण्ड पैदा न हो, यह खास बात है । गरीब आदमी बेचारा घमण्ड करे भी तो किस पर ? धनवान यदि अपने आपको सरल व विनम्र बनाकर रखता है तो वह निश्चय ही आदरणीय है । घड़ा जब तक पानी के ऊपर रहेगा तब तक नदी का एक छटांक पानी भी उसमें नहीं जाएगा । पाने के लिए झुकना पड़ता है । जीवन के कलश को भरने के लिए ऋजु होना पड़ता है । विनम्रता, विनयशीलता जब जीवन में आएगी, जब घड़ा नदी में उतरेगा तो नदी का पानी घड़े में अनायास आएगा वरना ऊपर-ऊपर तैरता तथा छलकता रहेगा । 'अधजल गगरी- छलकत जाए' । घड़ा झुके, अमीर आदमी झुके, ज्ञानी भी झुके । पढ़-लिख गये हो तो इसका मतलब यह थोड़े ही है कि तुम किसी और को अब कुछ नहीं समझोगे । ये नेता लोग चुनाव में पता नहीं, किस-किस की गरज करते हैं, पर जब चुनाव में जीत जाते हैं तो पाँच साल तक वापस उन्हें अपना मुँह भी नहीं दिखाते हैं 1 हालत यह हो गई है कि जिस आदमी को अपने से अलग करना हो, अपने से दूर करना हो तो उसे नेता बना दो। ज्ञान आ जाए, पद आ जाए इसके बावजूद आदमी औरों को मान दे, सम्मान दे, औरों के काम आने की कोशिश करता रहे वही महान् है । दिलों में जगह पद से, पैसे से या डिग्री पाने मात्र से नहीं बनती, दिलों में जगह तुम्हारी ओर से दी जाने वाली कुर्बानी से बनती है। स्वार्थ का त्याग ही धर्म का बुनियादी मंत्र है। तुम जेठानी हो तो इस कारण तुम पूजनीय नहीं हो, बल्कि तुम देवरानी के लिए कुर्बानी देने के लिए तैयार रहती हो, इस कारण ही आदरणीय बनोगी। बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं For Personal & Private Use Only १०३ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार बात इतनी सी है कि अपने जीवन के साथ विवेक जोड़िए । यह एक ऐसी अनमोल संपदा है, जिससे आप दुनिया की हर चीज वश में कर सकते हैं। बोलो विवेकपूर्वक, खाओ विवेकपूर्वक । लोग खाते ऐसे हैं जैसे गाय अपना मुँह चलाती है। ऐसे ही लोग अपने दाँत चलाते हैं। खाना मुँह में नज़र आता रहता है । खाना मुँह में रखो, होठों को बंद करो और भीतर चबाओ । थोड़ा विवेक, थोड़ी शालीनता, थोड़ा अदब अपने में होना ही चाहिए । अगर आप भोजन भी विवेकपूर्वक करते हैं तो यह भोजन करना भी योग है। अगर आप सड़क पर चलते हैं और चलते हुए विवेकपूर्वक चलते हैं, तो यह भी योग है। मैं मानता हूँ कि पैदल चलने वाला चींटी को बचाएगा, किन्तु कार में चलने वाला चींटी को तो नहीं बचा सकता । अगर कार आप विवेकपूर्वक चलाते हैं, तो कम-से-कम किसी पशु या इंसान को तो बचा ही सकते हैं। आप कार चलाते हुए भी योग साध रहे हैं अगर आप विवेकपूर्वक कार चला रहे हैं तो । नहीं तो शेखी आएगी, शेखी बघारोगे । परिणाम यह होगा कि हर आदमी अकड़बाज बनेगा । वह दूसरों को स्वीकार ही नहीं करेगा। उसे लगेगा, 'दूसरों में अक्ल ही नही है' जबकि हर आदमी को ज्ञान होता है । कोई कहता है कि 'मैं बीस साल से काम कर रहा हूँ और आप आज आए हैं। कोई कहता है, 'आप मुझे समझा रहे हैं, मैं तो चालीस साल से यह काम कर रहा हूँ ।' ठीक है भाई, आप चालीस साल से काम कर रहे हो पर एक बार शीर्षासन करके देखो कि चालीस साल में आप कितना कर पाये और उसका परिणाम कितना उपलब्ध हो पाया? जो बहू बीस साल तक बहू रहने के बावजूद जीवन जीना नहीं सीख पाई, वह सास बनकर भी कभी अपने घर को एकेसूत्र में बाँधकर नहीं रख सकेगी। कुर्बानियों से जीवन बनता है । ज्ञान तो विकास में सहायक है किन्तु विवेक आवश्यक है । एक विद्यालय में एक टीचर ने अपने छात्रों से पूछा, 'यह बताओ कि तुम्हारे सामने अगर कोई देवता हाजिर हो १०४ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाए और तुमसे पूछे कि बोलो तुम्हें क्या चाहिए? अक्ल या भैंस' ! यही प्रश्न आपसे पूछे तो आप क्या कहेंगे? 'अक्ल' । सारी दुनिया यही कहने वाली है कि उसे बुद्धि चाहिए। आपकी तरह ही एक लड़का खड़ा हुआ और कहने लगा, 'सर, मुझे तो भैंस चाहिए'। मास्टर ने डंडा मारा और कहा, 'मुझे पहले से पता था कि तू भैंस ही माँगेगा। तेरी जगह मैं होता तो मैं तो बुद्धि ही माँगता।' ___छात्र ने कहा, 'सर, दरअसल जिसके पास जिस चीज की कमी होती है, वह वही माँगता है। मेरे पास भैंस की कमी है, इसलिए भैंस माँगता हूँ'। बहुत खूब! कार्य कीजिए कर्त्ताभाव से मुक्त होकर और ज्ञान का उपयोग कीजिए विवेकपूर्वक। कोशिश कीजिए, ईश्वर को याद करने की भी कोशिश कीजिए। उसकी भी अन्तरलीनता रखिए। वक्त-बेवक़्त जब भी लगे, प्रभु का ध्यान करते रहें। जो व्यक्ति अपने श्वासोच्छ्वास में प्रभु का स्मरण करता रहता है, वह सब कुछ करते हुए भी भक्तियोग को अपने में जीता चलता है। यह मत सोचो कि प्रभु ने आपको क्या दिया है? यह सोचो कि आपने प्रभु को क्या दिया है? आपने प्रभु को . क्या समर्पित किया है? ___आप मंदिर में जाकर शिकायत ही न करते रहें कि 'प्रभु, आपने मुझे यह नहीं दिया, वह नहीं दिया।' प्रभु ने अगर नहीं दिया तो वह उसकी व्यवस्था है। उसने तो सब कुछ दिया है पर लोग जाते हैं और दस पैसा गुल्लक में डालते हैं। ईश्वर की भी हमने क्या कीमत आँकी है! दस पैसे! अरे भई! ईश्वर को क्या चढ़ाना? ईश्वर को तो अपना जीवन चढ़ाओ। अपना अहंकार चढ़ाओ, अपने पाप चढ़ाओ। ईश्वर के सामने अपने पुण्य चढ़ाकर क्या करोगे? उसके समक्ष अपनी अज्ञान-अवस्था में किए गए अपने पाप चढ़ाओ ताकि वह अपनी करुणा और दया बरसाकर हमारे पापों को माफ़ कर सके। उनके पास बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं १०५ For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाकर आप फूल नहीं, अपने हृदय के आँसू चढ़ाओ। 'हे प्रभु! मैं हर रूप में प्रयास करके भी जिन पापों को न काट सका, उन पापों को काटने के लिए मैं तुम्हारी शरण में हूँ। मेरी औकात नहीं इनसे मुक्त होने की। ध्यान भी किया, योग भी किया, प्रतिक्रमण, पूजा-पाठ, प्रार्थना, नमाज़ वगैरह सभी कुछ कर लिए पर, मैं अपने पापों और अपने विकारों से मुक्त नहीं हो पाया। इसलिए मैं आपकी शरण में हूँ, ताकि आप मुझे मेरे पापों से मुक्त कर सकें। आप क्षमाशील हैं, आप दयालु हैं, आप पापों को दूर करने में समर्थ हैं। आप पतितों के पापों को धोने में समर्थ हैं।' इस प्रकार के भावों को लेकर प्रभु के दरबार में जाओ और उसे अपने पापो को चढ़ाओ। शेष तो क्या है हमारे पास चढ़ाने के लिए? सब कुछ उसका ही दिया हुआ है। हम क्या चढ़ाएँगे, हमारी औकात ही क्या है? ___ हम जाते है मंदिर में और जाकर दो दीप जला देते हैं। अरे भाई किसके लिए जला रहे हो? भगवान के घर में क्या अंधेरा है जो तुम दीप जला रहे हो? हम क्या उसके घर के लिए दीप रोशन करेंगे जिससे तीनों लोक प्रकाशित हैं। हम उसके सामने दो दीप जला भी दें या न भी जलाएँ तो इससे क्या फर्क पड़ेगा? हम माटी के दीप इस भाव से जलाया करते हैं कि 'हे प्रभु! जिस प्रकार यह तुच्छ माटी का दिया ज्यातिर्मय होने की सामर्थ्य अपने भीतर जुटा चुका है। हे प्रभु! इसी भाव से मैं यह दीप चढ़ा रहा हूँ ताकि मेरा अपना जीवन भी माटी के इस दीप की तरह रोशन और ज्योतिर्मय हो'। भगवान के आगे दीप जलाओ तो अहंकार न कर बैठो। उसके आगे तो कुदरती दो दीप जल रहे हैं एक सूरज और दूसरा चन्द्रमा। इन दो दीयों के सामने हमारे दीये की क्या औकात! हम तो दीप जलाकर सूरज और चाँद की ही आरती उतार रहे हैं। हमारी पूजा तो दीपक से सूरज की पूजा है, गंगाजल से सागर की पूजा है। १०६ कैसे जिएँ मधुर जीवन For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसे ही फूल भी चढ़ाओ तो केवल यही मत सोचते रहना कि गुलाब का फूल चढ़ाऊँ या चम्पा का! फूल कोई भी चढ़ाना, पर इस विचार के साथ कि हमारा जीवन भी फूल की तरह ही कोमल, सुन्दर और सुवासित बने। यह जो दस-बीस पैसा जो हम चढ़ाते हैं, जरा सोचिए कि क्या भगवान की फैक्ट्री में कोई घाटा चल रहा है? उनका बैंक बैलेंस कोई कम थोड़े ही हुआ है जो हम पैसे चढ़ाते चले जा रहे हैं। यह तो इस भाव से हम चढ़ाते हैं कि 'प्रभु! तुम्हारे दरबार में आया हूँ, मैं स्वार्थी आदमी! आप मुझे बहुत देते हैं, मेरी किस्मत से ज्यादा देते हैं। मैं तो इस भाव से आया हूँ कि मैं अपने परिग्रह का थोड़ा विसर्जन कर सकूँ। मैं ज्यादा न भी कर पाऊँ पर पाँच रुपये के मोह का तो मैं त्याग कर ही सकता हूँ। इस भाव से ये पाँच रुपये आपको चढ़ाता हूँ। परिग्रह का विसर्जन करने के भाव से मैं यह समर्पित कर रहा हूँ। बाकी तो आप मुझे देते हैं। मैं आपकी दी हुई रोटी खाता हूँ, आपका दिया हुआ पानी पीता हूँ, आपकी दी गई जीवन की व्यवस्थाओं को संजोता हूँ। आप हैं तो मेरा कल का जीवन हैं। आप नहीं तो कल का किसका काल बनेगा, किसको इसकी खबर? ___ जितना हम उसके नाम पर लुटाएँगे, हमें उतना ही उपलब्ध होता चला जाएगा। भक्तियोग तब बनता है, जब व्यक्ति अपने अहं का विसर्जन करता है और सबमें ही उसी परमपिता परमेश्वर को, उसके अंश को, उसकी छबि को देखता है। व्यक्ति का बोलना और बतियाना भी उस परमपिता परमेश्वर से बतियाना और उसको देखना हो जाता है। अगर आप मेरी नज़र लेना चाहते हैं तो मैं कहूँगा अपने बच्चे में भी भगवान को देखो। अगर आप मुझसे मेरे जीवन का संदेश सुनना चाहते हैं, तो मैं कहूँगा कि मंदिर से जब बाहर निकलो तो बाहर बैठे हुए भिखारी में भी उसी परमात्मा को देखो। एक आदमी मंदिर से बाहर निकला और मंदिर के बाहर उसे एक भिखारी दिखाई दिया। भिखारी ने कहा, “भैया, मैं ठंड से बहुत ठिठुर बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं १०७ For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहा हूँ। रात-भर मैं बरसात में भीगा हूँ । मुझे बुखार हो रहा है। तुम्हारे पास एक शॉल है। भगवान के नाम पर इसे मुझे दे दो ।' उस आदमी के दिल में न जाने क्या विचार आया कि उसने ओढ़ी हुई शॉल के दो टुकड़े किए, आधा उस गरीब आदमी को दे दिया और आधा खुद ने ओढ़ लिया । बात यहीं खत्म नहीं हो गई। रात को उसने एक सपना देखा । आज रात के सपने में पहली बार भगवान आये । वह यह देखकर दंग रह गया कि भगवान ने वही शॉल ओढ़ रखी है जो उसने सुबह गरीब को ओढ़ाई थी । उसने भगवान से पूछा 'भगवन् !, आपने यह आधी शॉल ही क्यों ओढ़ रखी है?' भगवान ने कहा, 'जितना तूने चढ़ाया, उतना मुझ तक पहुँच गया' । भक्त और भगवान के बीच भाव यही हो कि हे प्रभु! मेरा जीवन तो तुम्हारे मंदिर का एक चिराग़ है। तुम अगर इसे जलाए रखना चाहते हो तो जलाओ और बुझाना चाहते हो तो बुझाओ । कोई किसी को कुत्ता कहेगा तो उसे बुरा लगेगा, पर यह तो खाता ही ऐसा है, मजार ही ऐसी है कि जहाँ हर आदमी अपने आपको कुत्ता बनाकर पहुँच रहा है । कभी संत हसीद ने कहा था कि जब हम प्रभु का नाम भजते हैं, तब तो हम इंसान कहलाने के कुछ योग्य होते हैं, बाकी तो हमसे तो वे कुत्ते ज्यादा अच्छे हैं जो मालिक की रोटी खाकर मालिक की हाजिरी बजाते हैं I १०८ कबीरा कुत्ता राम का, मुतिया मेरा नांव । गले राम की जेवड़ी, जित खेंचे तित जांव ।। यूँ तो हर आँख यहाँ बहुत रोती है, मगर हर बूँद अश्क नहीं होती है। देखके रो दे जो जमाने का गम, उस आँख से गिरा अश्क, अश्क नहीं, मोती है ।। योग तो जीने की कला है अपने प्रति भी, औरों के प्रति भी । For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन के संघर्षों में सफल होने के लिए कर्मयोग है। शिक्षा और संस्कार को को सुदृढ़ करने के लिए ज्ञानयोग है। भावना और भक्ति के विकास के लिए भक्तियोग है। यम-नियम से लेकर समाधि तक की बात को साधने के लिए ध्यानयोग है। निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर बेहतर, स्वस्थ और मधुर जीवन का स्वामी बनाना योग का कार्य है। ___ ध्यान रखें, अहं-भाव से मुक्त होकर कर्त्तव्यशील बनें। ज्ञान को जीवन का धन मानें, पर विवेक का ज्ञान पर अंकुश रखें। औरों में भी भगवान की छवि देखते हुए उन के साथ सौम्य और साम्य व्यवहार करें। सुबह-शाम आधा घंटा ध्यान अवश्य करें। इससे चित्त की अशांति और विक्षिप्तता दूर होगी। हम शांत मन के स्वामी बनेंगे और ज्ञान तथा भक्ति को अपने कर्म के साथ जोड़कर उसे भी 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' का वैभव प्रदान करेंगे। ज्ञान, भक्ति और सक्रियता को जीवन के साथ इस तरह जोड़ें कि जीवन स्वयं योग बन जाए और जीना ही प्रभु का प्रसाद बन जाए। . बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं १०९ For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ About RAN लक्ष्य पुरुषार्थ बा तीक्त की, जी की लागत से भी कम मूल्य पर थष्ठ साहित्य ऐसे जिएँ : श्री चन्द्रप्रभ जीने की शैली और कला को उजागर करती विश्व-प्रसिद्ध पुस्तक। स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर जीवन की राह दिखाने वाली प्रकाश-किरण। पुस्तक महल से भी प्रकाशित । पृष्ठ : 122, मूल्य 20/लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ : श्री चन्द्रप्रभ जीवन में वही जीतेंगे जिनके भीतर जीतने का पूरा विश्वास है। सफलता के शिखर तक पहुँचाने वाली प्यारी पुस्तक। पुस्तक महल से भी प्रकाशित।। पृष्ठ : 104, मूल्य 20/बातें जीवन की, जीने की : श्री चन्द्रप्रभ युवा-पीढ़ी की समसामयिक समस्याओं पर अत्यंत तार्किक एवं मनोवैज्ञानिक मार्गदर्शन। एक लोकप्रिय पुस्तक। पृष्ठ : 90, मूल्य 20/बेहतर जीवन के बेहतर समाधान : श्री चन्द्रप्रभ जीवन की व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान देती एक लोकप्रिय पुस्तक। पृष्ठ : 130, मूल्य 20/वाह ज़िंदगी ! : श्री चन्द्रप्रभ सुखी और सफल जीवन जीने का रास्ता। जन-जन में लोकप्रिय एकचर्चित पुस्तक। पृष्ठ 120, मूल्य 20/क्या स्वाद है जिंदगी का : श्री ललितप्रभ जीवन के विभिन्न सार्थक और सकारात्मक पहलुओं को आत्मसात कराने वाली लोकप्रिय पुस्तक। पृष्ठ 146, मूल्य 20/जागो मेरे पार्थ : श्री चन्द्रप्रभ गीता की समय-सापेक्ष जीवन्त विवेचना। भारतीय जीवन-दृष्टि को उजागर करता प्रसिद्ध ग्रन्थ। फुल सर्कल,दिल्ली से भी प्रकाशित। पृष्ठ : 230, मूल्य 40/ MILAND वाह जिन्दगी क्या स्वादह जिंदगी का जागा पा For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Boo00-500AM फिर कोई मुबत व्यक्तित्व विक संबोधि जीवनको बुनियादी बातें फिर कोई मुक्त हो : श्री चन्द्रप्रभ अतीत के प्रेरक प्रसंगों पर दिए गए विशिष्ट प्रवचन ।छोटे-बड़े सभी के लिए उपयोगी। पृष्ठ 100, मूल्य 15/कैसे करें व्यक्तित्व-विकास :श्री चन्द्रप्रभ जीवन और व्यक्तित्व-विकास पर बेहतरीन-बाल मनोवैज्ञानिक प्रकाशन। पृष्ठ 100, मूल्य 15/संबोधि : श्री चन्द्रप्रभ साधना के महत्वपूर्ण पहलुओं पर उद्बोधन। सर्वजन हिताय ; सर्वजन सुखाय। पृष्ठ 100, मूल्य 15/जीवन की बुनियादी बातें : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर । व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन का मार्गदर्शन । जीवन की आध्यात्मिक समझ देने वाली पुस्तक। पृष्ठ 100, मूल्य 15/योगमय जीवन जीएँ : श्री चन्द्रप्रभ सफल और सार्थक जीवन की आध्यात्मिक दृष्टि ।योग पर प्यारा प्रकाशन। पृष्ठ 100, मूल्य 15/आत्मदर्शन की साधना : श्री चन्द्रप्रभ आत्म-साधना के मार्ग को प्रशस्त करते विशिष्ट उद्बोधन । अष्टपाहुड़ के सूत्रों पर विश्लेषण। पृष्ठ 112, मूल्य 12/महाजीवन की खोज : श्री चन्द्रप्रभ अध्यात्म की बारीकियों का मार्गदर्शन करता सम्प्रदायातीत ग्रन्थ । आचार्य कुंदकुंद, योगीराज आनंदघन एवं श्री मद् राजचन्द्र के सूत्रों एवं पदों पर प्रवचन। पृष्ठ : 176, मूल्य 30/कैसे करें आध्यात्मिक विकास और तनाव से बचाव : श्री चन्द्रप्रभ शरीर और मन के रोगों से छुटकारा दिलाते हुए स्वास्थ्य, शांति और मुक्ति का आनंद प्रदान करने वाला बेहतरीन मार्गदर्शन। पृष्ठ 120, मूल्य 15/ योगमय जीवन जिएँ पागजातन कारताना ANTAR -आध्यात्मिका विकास ProG से 14 For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CERIT isici Jondhamorousewana घरको कैसे धर्म में प्रवेश: श्री चन्द्रप्रभ नित्य नये पंथों और उपासना-पद्धतियों के बीच धर्म के स्वच्छ मौलिक स्वरूप का निर्देशन। नई पीढ़ी के लोग अवश्य पढ़ें । पृष्ठ : 96, मूल्य 15/जागे सो महावीर : श्री चन्द्रप्रभ भगवान महावीर के विशिष्ट सूत्रों पर अमृत प्रवचन । अन्तर्मन में अध्यात्म की रोशनी पहुँचाता प्रकाश-स्तम्भ। ज्ञानवर्धन एवं मार्गदर्शन के लिए महावीर पर नई दृष्टि। पृष्ठ 252,मूल्य 30/जीवन, जगत और अध्यात्म : श्री ललितप्रभ सागर महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर जी के विशिष्ट प्रवचनों का संग्रह । जीवन, जगत, अध्यात्म और मोक्ष पर पावन मार्गदशन प्रदान करने वाली पुस्तक। पृष्ठ 168,मूल्य 30/घर को कैसे स्वर्ग बनाएँ : श्री ललितप्रभ, श्री चन्द्रप्रभ इस पुस्तक में है पूज्य श्री चन्द्रप्रभ का लोकप्रिय प्रवचन 'माँ की ममता हमें पुकारे' और पूज्य श्री ललितप्रभ का चर्चित प्रवचन परिवार की खुशहाली का राज़' ।घर-घर में पठनीय। पृष्ठ 168,मूल्य 30/सहज मिले अविनाशी : श्री चन्द्रप्रभ योग के कुछ महत्वपूर्ण सूत्रों के प्रसंग में दिए गए बेहतरीन एवं अनमोल प्रवचन। पृष्ठ : 100, मूल्य 20/आपकी सफलता आपके हाथ : श्री चन्द्रप्रभ सफलता हर किसी को चाहिए, पर उसे पाएँ कैसे, पढ़िये इस प्यारी पुस्तक को। पृष्ठ 110, मूल्य 20/शांति, सिद्धि और मुक्ति पाने का सरल रास्ता : श्री चन्द्रप्रभ अध्यात्म की सहज-सर्वोच्च स्थिति तक पहुँचाने वाला एक अभिनव ग्रन्थ । पृष्ठ : 200, मूल्य 30/ध्यानयोग : विधि और वचन : ललितप्रभ सागर ध्यान योग की वास्तविक समझ पाने के लिए विशेष उपयोगी। साथ ही ध्यान-योग की विस्तृत विधि। पुस्तक महल दिल्ली से भी प्रकाशित। पृष्ठ : 148, मूल्य 30/ NROENER आपकीसा आकser शांति, सिद्धिार मुक्ति पान ध्यानयोग विधि और वचन For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईट जीवन विज्ञान राम मवावक नई दिशा, नई दृष्टि : श्री चन्द्रप्रभ शांति और बोधपूर्वक जीवन जीने की कला : भगवान बुद्ध के विशिष्ट सूत्रों पर अमृत प्रवचन। पृष्ठ 216, मूल्य 35/जीवन-शुद्धि का विज्ञान : श्री चन्द्रप्रभ शरीर, विचार और भावों की उपयोगिता और विशुद्धि का मार्ग दर्शाता अभिनव प्रकाशन। पृष्ठ 102, मूल्य 20/अहसास : श्री चन्द्रप्रभ श्री चन्द्रप्रभ की चर्चित श्रेष्ठ कहानियों का पुनर्प्रकाशन। नई पीढ़ी के लिए विशेष पठनीय। पृष्ठ 100, मूल्य 20/महागुहा की चेतना : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर संबोधि का प्रकाश आत्मसात करने के लिए मुमुक्षुओं को दिया गया अमृत मार्गदर्शन। पृष्ठ 112, मूल्य 20/ध्यान का विज्ञान : श्री चन्द्रप्रभ ध्यान की सम्पूर्ण गहराइयों को प्रस्तुत करता एक समग्र ग्रन्थ।अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित। राजस्थान पत्रिका से भी प्रकाशित। पृष्ठ 124,मूल्य 30/न जन्म, न मृत्यु : श्री चन्द्रप्रभ आत्मा से आत्मा की सार्थक वार्ता ; अष्टावक्र-गीता पर दिए गए अद्भुत प्रवचन । अध्यात्म-प्रेमियों के लिए विशेष उपयोगी। पृष्ठ 160, मूल्य 30/अब भारत को जगना होगा : श्री चन्द्रप्रभ भारत की मूल भावना और दृष्टि को समझाने वाली एक बेहतरीन पुस्तक। पृष्ठ 150, मूल्य 30/शांति पाने का सरल रास्ता : श्री चन्द्रप्रभ सच्ची शांति, सौन्दर्य और आनंद प्रदान करने वाली चर्चित पुस्तक। पृष्ठ 100, मूल्य 20/ ध्यान का विज्ञान अब भारतको होगा जगना For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योग अपनाए Estacialkadang आँध लाश योग अपनाएँ, ज़िंदगी बनाएँ : श्री चन्द्रप्रभ ध्यान-योग में प्रवेश पाने के लिए पंजी के रूप सफल मार्गदर्शन । एक चर्चित पुस्तक। पृष्ठ 100, मूल्य 15/प्रेम की झील में ध्यान के फूल : श्री चन्द्रप्रभ प्रेम, विश्वास और ध्यान की आभा प्रदान करने वाली प्यारी पुस्तक। पृष्ठ 96, मूल्य 15/पर्युषण-प्रवचन : श्री चन्द्रप्रभ पर्यषण-पर्व के प्रवचनों को घर-घर पहँचाने वाला एक प्यारा प्रकाशन । पढें, कल्पसूत्र को अपनी भाषा में। पृष्ठ 112,मूल्य 15/ आंगन में प्रकाश : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर तीस प्रवचनों का अनूठा आध्यात्मिक संकलन, जो आम आदमी को प्रबुद्ध करता है। और जोड़ता है उसे अस्तित्व की सत्यता से। पृष्ठ 200, मूल्य 30/स्वयं से साक्षात्कार : श्री चन्द्रप्रभ आत्म-ज्ञान और आत्म-विकास के लिए पढिए इस चर्चित पुस्तक को। पृष्ठ 136, मूल्य 20/जीने के उसूल : श्री चन्द्रप्रभ सफल और सार्थक जीवन जीने का अनमोल खजाना। जीने की दृष्टि, शक्ति और प्रेरणा देने वाली चर्चित पुस्तक। पृष्ठ 144,मूल्य 15/धर्म, आखिर क्या है : श्री ललितप्रभ सागर अमृत प्रवचन, जो हमें वर्तमान सन्दर्भो में जीवन जीने की कला प्रदान करते हैं। पुस्तक महल दिल्ली से भी प्रकाशित पृष्ठ 160,मूल्य 30/ज्योति कलश छलके : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर जीवन-मूल्यों को ऊपर उठाने वाली एक प्यारी पुस्तक । भगवान महावीर के सूत्रों पर प्रवचन । पृष्ठ 160, मूल्य 30/ स्वयस साक्षात्कार चम्म जीन सेल अरिया है? ज्योति कलशछलके For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સો परस महास्स N Main सत्य की ओर पेरणा सो परम महारस चाखै : श्री चन्द्रप्रभ आनन्दघन के अध्यात्म-रसिक पदों पर बेहतरीन प्रवचन। पढ़िये, अंधेरे से प्रकाश में ले जाती इस पुस्तक को। पृष्ठ 134, मूल्य 25/श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियाँ : श्री ललितप्रभ श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियों का प्यारा संकलन ।पुस्तक जो संपूर्ण देश में पढ़ी जा रही है। पृष्ठ 102, मूल्य 20/सत्य की ओर : श्री ललितप्रभ सागर. सर्वधर्म के अमृत संदेशों को उजागर करते हुए नैतिक मूल्यों से रू-ब-रू करवाती श्रेष्ठ पुस्तक। सबके लिए प्रेरक और पठनीय पृष्ठ 100, मूल्य 15/प्रेरणा : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर, आध्यात्मिक संतों के जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंग। सहज में पाइए धर्म-अध्यात्म की दृष्टि। पृष्ठ 100, मूल्य 15/समय की चेतना : श्री चन्द्रप्रभ समय का हर दृष्टि से मूल्यांकन करते हुए समयबद्ध जीवन जीने की प्रेरणा देने वाली पुस्तक। पृष्ठ : 110, मूल्य 15/ऐसी हो जीने की शैली : श्री चन्द्रप्रभ जीवन और धर्म-पथ को परिभाषित करते हए जीने की साफ-स्वच्छ राह दिखाती अनूठी पुस्तक । पृष्ठ 160, मूल्य 30/मैं कौन हूँ : श्री चन्द्रप्रभ वे प्रवचन जो हमें दिखाते हैं अध्यात्म और आत्म-रूपांतरण का रास्ता। पृष्ठ 100, मूल्य 15/कैसे पाएँ मन की शांति : श्री चन्द्रप्रभ चिंता, तनाव और क्रोध के अंधेरे से बाहर लाकर जीवन में शांति, विश्वास और आनंद का प्रकाश देने वाली बेहतरीन जीवन-दृष्टि। पृष्ठ 116, मूल्य 15/ DIIO यात जीने की शैली कैसे पाएँ मन की ATSA0 For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3." कामयाबी महान जैन स्तोत्र कैसे जिए मधुर जीवन क्या करें कामयाबी के लिए : श्री चन्द्रप्रभ कामयाबी के लिए हर रोज नई प्रेरणा देने वाली एक सुप्रसिद्ध पुस्तक । पृष्ठ 100, मूल्य 15/ सकारात्मक सोचिए, सफलता पाइये : श्री चन्द्रप्रभ स्वस्थ सोच और सफल जीवन का द्वार खोलती लोकप्रिय पुस्तक । पृष्ठ 120, मूल्य 15/ फिर महावीर चाहिए : श्री चन्द्रप्रभ महावीर अतीत की नहीं वर्तमान की आवश्यकता है। फिर से समझिए महावीर को । पृष्ठ 96, मूल्य 15/ महान जैन स्तोत्र : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर महान चमत्कारी धार्मिक स्तोत्रों का अनुपम ख़ज़ाना । पृष्ठ 125, मूल्य 20/ कैसे जिएँ मधुर जीवन : श्री चन्द्रप्रभ सुमधुर और सुव्यवस्थित जीवन जीने की कला सिखाने वाली बेहतरीन पुस्तक । पृष्ठ 120, मूल्य 15/ विशेष - अपने घर में अपना पुस्तकालय बनाने के लिए फाउंडेशन ने एक अभिनव योजना बनाई है। इसके अंतर्गत आपको सिर्फ एक बार ही फाउंडेशन को पन्द्रह सौ रुपए देने होंगे, जिसके बदले में फाउंडेशन अपने यहाँ से प्रकाशित होने वाले प्रत्येक साहित्य को आपके पास आपके घर तक पहुंचाएगा और वह भी आजीवन । इस योजना के सदस्य बनते ही आपको फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित संपूर्ण 'उपलब्ध साहित्य' निःशुल्क प्राप्त होगा । ध्यान रहे, साहित्य वही भेजा जा सकेगा जो उस समय स्टॉक में उपलब्ध होगा । रजिस्ट्री चार्ज एक पुस्तक पर 20 रुपये, न्यूनतम दो सौ रुपये का साहित्य मंगाने पर डाक व्यय संस्था द्वारा देय । धनराशि Sri Jityasha Shree Foundation के नाम ड्राफ्ट बनाकर जयपुर के पते पर भेजें । वी.पी.पी. से साहित्य भेजना शक्य नहीं होगा। आज ही अपना ऑर्डर निम्न पते पर भेजें श्री जितयशा श्री फाउंडेशन बी-7, अनुकम्पा द्वितीय, एम.आई. रोड़, जयपुर-302001 फोन : 2364737 For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैसे जिएँ मधुर जीवन सफल और सौम्य जीवन के लिए मूल्यवान बात यह है कि हम छोटों को देखकर जिएँ, बड़ों को देखकर बढ़ें और अच्छे के लिए प्रयास करें। तुम्हारे पास कार है तो स्कूटर पर अपनी नजर रखों, ताकि जो तुम्हें मिला है, उससे तुम असंतुष्ट न रह सको। तुम्हें लगे कि ईश्वर ने तुम्हें औरों से ज्यादा दिया है / अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारे पहनने को जूते नहीं हैं, तो वेद न करें, क्योंकि दुनिया में हजारों लोग ऐसे हैं जिनके पाँव तक नहीं है। बड़ों को देखकर उनसे आगे बढ़ने की प्रेरणा लें। आरिवर बड़े लोग किसी कहानी-किस्से के ही हिस्से तो नहीं हैं। वे पूजा के नहीं, प्रेरणा के पात्र हैं। इसी तरह हम अच्छा होने के लिए प्रयत्न करते रहें। बुराई सबमें है, मुझमें भी, आपमें भी, पर हमें अपना प्रयास अच्छा होने के लिए करते रहना चाहिए। जीवन में कोई ऐसा नहीं है कि सोमवार को जन्मे, मंगल को बड़े हुए, बुध को विवाह हुआ और गुरु को बच्चे हुए। शुक्रवार को बीमार पड़ गए, और शनिवार को अस्पताल गए और रविवार को चल बसे / जीवन तो स्वयं एक तीर्थयात्रा है। इसे रचनात्मक बनाइये, जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया अपनाइये। - श्री चन्द्रप्रभ Jain Edition international For Personal Private Use Only www.jainelibrary on