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किस स्वभाव की है?
इन्सान अपने आप में समझें कि वह आदमी है या मूर्छा से घिरा हुआ कीड़ा है। आदमी को अपने ही स्वभाव को समझना होगा कि उसके भीतर कहीं कोई चंडकौशिक तो नहीं बैठा है। साधक साध ना इसलिए कर रहा है ताकि चंडकौशिक रूपान्तरित होकर भद्रकौशिक. हो जाए और उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन हो जाए। अगर आप मेरे पास सात दिन रह कर आठवें दिन अपने घर पहुंचे और वहाँ विपरीत वातावरण पाकर भी आपके हृदय में करुणा और कोमलता रखें है तो आपका मेरे पास रहना सफल और सार्थक हुआ। अगर किसी के द्वारा की गई गलती को आप अपने हृदय से माफ कर दें तो भी यहाँ रहना सफल हुआ। अगर अपने नौकर के द्वारा की गई गलती पर आपने आक्रोश न किया, तो साधना सार्थक हुई। अपने ही पड़ौसी द्वारा आपका स्कूटर बिना पूछे लिये जाने के बावजूद अगर आपने उसके साथ गाली-गलौच न किया तो आपकी शांति की साधना सार्थक हुई।
ध्यान इसलिए नहीं है कि आपको कोई देवी-देवता के दर्शन होंगे। ध्यान इसलिए है ताकि व्यक्ति अपने स्वभाव में रहने वाली पशुता को जीते ओर अपने भीतर रहने वाली दिव्यता से साक्षात्कार करे। इसलिए ध्यान की उपयोगिता है। पहले चरण में आदमी को यह स्वीकार करना होगा कि मेरे स्वभाव में अमुक कमी है और दूसरे चरण में उसे स्वभाव में रहने वाली कमी के जब निमित्त मिलते हैं तो उनके प्रति साक्षिभाव रहना जरूरी है। एक ओर से किया गया स्वीकार और दूसरी ओर से उनके प्रति आई गई तटस्थता व्यक्ति को अपने दुष्कृत, अपने विकृत, अपने आवेशित और उत्तेजित स्वभाव से मुक्त करने का राजमंत्र बन जाती है वरना कोई भी आदमी ऊपर से चाहे जितने भी त्याग और तप कर डाले उनसे उनके स्वभाव में मौलिक परिवर्तन नहीं होता।
स्वभाव सुधारें , सफलता पाएँ
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