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________________ बिटिया ने पूछा, 'माँ, पर एक बात तुम मुझे बताओ कि आधी रात के करीब मकान का दरवाजा क्यों खुला है?' ___ माँ ने कहा, 'बेटी! जिस दिन से तुम यहाँ से गई थी उस दिन से चौबीस घंटे यह दरवाजा खुला रहा है। मुझे विश्वास था कि आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, एक-न-एक दिन तुम जरूर अपनी माँ के पास आओगी। यह दरवाजा इसलिए खुला रखा था ताकि तुम दिन में आओ या रात में, सुबह आओ या साँझ में, जब भी आओ तो तुम्हें यह अहसास रहे कि इस घर में तुम्हारा सदा स्वागत है।' ___ माँ का आँचल सदा स्वागत करने को तत्पर रहता है। योग का आँचल भी प्राणिमात्र के कल्याण के लिए सदा खुला हुआ रहता है। दुनिया में हर पुण्यात्मा के पीछे पाप की एक गठरी बँधी हुई रहती है। हर दानवीर के पीछे पाप की कहानी छुपी रहती है, हर धर्मात्मा के पीछे पाप की छाया छिपी हुई रहती है। दुनिया में कोई दूध का नहाया नहीं होता, कोई पूर्ण नहीं होता। किसी का पाप ज्यादा है तो किसी का पाप कम है। जिसको अपने पापों का अहसास हो चुका, वह हर व्यक्ति योग की शरण में आ जाएगा और अपने पापों से मुक्त होने का प्रयास शुरू कर देगा। जिस दिन भी मनुष्य को अपने पापों का अहसास होगा उस दिन हर पुण्यात्मा की आँखों से भी आँसू ढुलकेंगे। ___ हम सब लोगों में से जिन-जिन लोगों को अपने जीवन में अपने छिपे हुए पापों और विकारों का, अपने भीतर छिपे हुए कषायों का थोड़ा बहुत अहसास है, थोड़ा बहुत बोध है, उस हर व्यक्ति को आत्मबोध की ललक, आत्मबोध की किरण देने के लिए मैं योग का मार्ग अपनाने की बात कहना चाहूँगा। गीता ने कभी योग को अपनी भाषा में कहा था 'समत्वं योग उच्यते'। पूछा गया भगवान से कि योग क्या है? जवाब मिला, 'समत्व' को ही योग कहा जाता है। जीवन की विषमताओं के बीच, परिवार और समाज की विषमताओं के बीच चित्त कैसे जिएँ मधुर जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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