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में रहने वाली समता का नाम योग है। __बुद्ध से पूछा गया, ‘भंते! योग क्या है?' बुद्ध ने कहा , 'कुशल प्रवृत्तिः योगः।' मनुष्य के द्वारा संपादित की जाने वाली सम्यक् प्रवृत्ति का नाम ही योग है। पतंजलि से जब यही सवाल किया गया कि 'प्रभु, योग क्या है?' तो जवाब मिला — योगश्चित-वृत्तिः निरोधः' अर्थात् चित्त की निरंकुश वृत्तियों पर अपना अंकुश और निरोध लगाना ही योग है।
आज का एक प्रचलित शब्द है 'निरोध' । निरोध का अर्थ है रोकना। हर कोई इस शब्द से परिचित है। अपने चित्त की चंचल वृत्तियों को रोकना
और उन पर निरोध लगा देना ही योग है। रात-दिन जो उठा-पटक, जो यातायात हमारे अन्तर्मन में चल रही है, उससे अपने आपको निरपेक्ष कर लेना ही योग है, निरोध है। शांत साक्षी-भाव ही चित्त पर अंकुश लगाने का मूल मंत्र है। अगर कोई व्यक्ति योग को जीना चाहे तो मैं कहूँगा कि उसे बाहरी तौर पर हाथी पर अंकुश लगाना होगा। बाहरी अंकुश लगाने के लिए हिंसा से बचें, झूठ से बचें, चोरी से बचें, अनावश्यक संग्रह पर अंकुश लगाएँ। इन बातों को चाहे आप महावीर का व्रत कह दें, चाहे बुद्ध के पंचशील कह दें या पतंजलि के पाँच यम कह दें। हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार और संग्रह पर अपना अंकुश लगाना योग का प्रवेश-द्वार है। योगी योग साधता रहे, पर जीवन में अगर पाप पलता ही चला जाए तो योग करने वाला, ध्यान धरने वाला, सामायिक, व्रत तथा पूजा-पाठ करने वाला व्यक्ति किसी कोने में जाए और एकांत में बैठकर सोचे कि मैं हर साँझ को प्रतिक्रमण करता हूँ और हर सुबह पापों को दोहराता हूँ। कहीं हमारी हालत ऐसी तो नहीं हो रही है कि लोग जाते हैं पुष्कर स्नान करने के लिए। और सोचते हैं कि हमारे पाप कटे पर जैसे ही बाहर वापस आये कि पाप शुरू हो गये।
हज़ करने मात्र से पापी हाज़ी नहीं हो जाता। कहावत है, 'बिल्ली सौ चूहे खाकर हज़ करने जाती है', पर इससे क्या? वापस आजमगढ़ में
बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं
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