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________________ आए तो वापस वही सब कुछ करने लग जाती है। हज़ पवित्र कार्य है। हज़-यात्रा के लिए कदम बढ़ाने से पूर्व पंच यम, पंचशील, पंच व्रत अपनाने पड़ते हैं। योग भीतर की हज़यात्रा ही है। हम भीतर में ध्यान धरें पर बाहर भी शांति, समता और मर्यादा का भी विवेक रखें। लोग कोल्हू के बैल की तरह जीते हैं और वही रोजाना घोटते रहते हैं। उनकी तोता-रटंत जारी रहती है। उन्हें न जीवन में मुक्ति का अहसास है, न बोध; न सुधरने की कोई तैयारी, न कोई मानस-शुद्धि संकल्प, फिर तो वही हालत होगी जो हालत हाथी की हुआ करती है। ___हाथी उतरता है सरोवर में। वह जम कर स्नान करता है, पर जैसे ही वह बाहर आता है, अपनी सूंड से मिट्टी उठा-उठाकर फिर से अपने शरीर पर डाल देता है। अपन सब लोग इतने ही धार्मिक हैं। धर्म के नाम पर धर्म भी रोज करते हैं और पाप के नाम पर पाप भी रोजाना दोहराते रहते हैं। इसीलिए प्रतिक्रमण सार्थक नहीं होता, सामायिक सार्थक नहीं होती, साधुता सार्थकता नहीं दे पाती। घाणी का बैल चलता रहता है, पर अपने आप को कहाँ पाता है? अर्थात् वहीं जहाँ से उसने शुरुआत की थी। हम लोग भी इस बात से प्रेरणा लें। आप अपनी उमर की पड़ताल करें और सोचें कि दस साल पहले आप कैसे थे? उससे दस साल पहले आप कैसे थे? अगर बीस साल पहले जैसे थे, वैसे आज भी हैं अर्थात वही गुस्सा, वही चिड़चिड़ापन, वही खीझ, वही चिंता, तो इसका मतलब हमारा शरीर जरूर बूढ़ा हो रहा है, पर हम बुजुर्ग नहीं हो पा रहे हैं। हम बीस साल पीछे हैं। हम पिछड़े हुए लोग हैं। कुछ लोग तो और भी अधिक पिछड़े हुए हैं। जो जीवन से पाठ न सीख पाए, आगे न बढ़ पाए, वे पिछड़े ही कहलाएँगे। यम-नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि द्वारा पतंजलि ने एक सुव्यवस्थित जीवन-विज्ञान दिया है। एक सिस्टेमेटिक साइंस, जीवन का एक व्यावहारिक आध्यात्मिक विज्ञान। हम हिंसा, झूठ, चोरी और व्यभिचार आदि पर अंकुश लगाएँ और प्रभु ९२ कैसे जिएँ मधुर जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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