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________________ है, स्वयं के विचारों का है। मूल्य दूसरे के उद्गारों का नहीं, स्वयं के उद्गारों का है। दूसरे की बोली और वाणी से कहीं ज्यादा मूल्य अपनी बोली और वाणी का है। दूसरे की वाणी कैसी है, मूल्य इसका नहीं है। तुम्हारी वाणी कैसी है, मूल्य इस बात का है। वह गलती कर रहा है, या गलत बोल रहा है, यह उसकी कमजोरी है। तुम अपने पर ध्यान दो। तुमसे चूक न हो। तुमसे छींका न टूट पड़े। किसी से गलती हुई, यह उसकी मजबूरी है, तुम फिर भी सलीके का व्यवहार कर रहे हो, यह तुम्हारी विशेषता हुई। दूसरा आदमी अगर तिर रहा है तो सौभाग्य की बात है, पर तुम अगर डूब रहे हो तो दूसरे को बचाने और न बचाने का अर्थ ही कहाँ होगा? ऐसा कौन होगा जिसे पता चल जाए कि दोनों की दाढ़ी में आग लगी है अपनी दाढ़ी में भी और दूसरे की दाढ़ी में भी। ऐसा कौन बेवकूफ होगा जो दूसरों की दाढ़ी में लगी हुई आग को पहले बुझाएगा। मैंने दुनिया पर जब नजर डाली और लोगों की दाढ़ी में आग जलती हुई देखी तो जैसे ही उनकी दाढ़ी की आग बुझाने के लिए प्रेरित हुआ कि सामने आईना आ गया और अपनी दाढ़ी में लगी आग नजर आई तो पहले हाथ अपनी दाढ़ी में चला गया। हाँ, मैं आप लोगों की दाढ़ी की आग जरूर बुझाऊँगा, पर पहले अपनी दाढ़ी में लगी आग को बुझाकर। हम अपने आपको पहचानें, अपने आपको सुन्दर बनाएँ। विचारों का सौन्दर्य जीवन की आध्यात्मिक सुषमा है। कर्म की सुन्दरता के लिए विचार और हृदय की सुन्दरता अनिवार्य पहलू है। भला जो विचार, जो चिंतन, जो सोच हमारे जीवन के लिए इतना मूल्य रखती है जबकि हम अपने विचार और चिंतन के प्रति इतने लापरवाह, इतने निरपेक्ष बने रहते हैं। गाली मन में आ गई, गाली ठोक दी, यह सोचे बगैर कि गाली से उसका भला या बुरा होगा कि नहीं किन्तु पहले अपना सोच को बनाएँ सकारात्मक ७१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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