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बन जाते हैं। यह इंसान पर निर्भर करता है कि वह अपने विचारों को, अपनी सोच, अपने चिंतन को ऊँचा उठा ले तो उसके लिए अपने विचारों से बढ़कर और कोई पूँजी नहीं होती। और ये ही विचार अगर तनाव, चिंता, घुटन, अवसाद, ईर्ष्या से घिर जाएँ तो इन विचारों से बढ़कर और कोई बोझ नहीं होता। भला जो विचार आदमी के लिए वरदान बन सकते हैं, आदमी उन्हें अपने लिए अभिशाप क्यों बनाए?
कोई अगर पूछे कि आपके जीवन का पहला सौन्दर्य क्या है? लोग कहेंगे, आदमी का नाक सुन्दर होता है, आदमी की आँख सुन्दर होती है, आदमी का रंग सुन्दर या असुन्दर होता है। माना कि ये सब सुन्दर होते हैं, पर इससे भी सुन्दर आदमी का मन, आदमी के विचार होते हैं। कोई मुझसे पूछे कि मैंने अपने जीवन में किस चीज को सुन्दर बनाने का प्रयास और पुरुषार्थ किया है तो मेरा जवाब होगा, अपने हृदय को, अपने ज्ञान को, अपने नजरिये को, अपनी सोच, अपने चिन्तन को सुन्दर बनाने का प्रयत्न किया है।
मैंने जीवन में आने वाले हर विपरीत निमित्त के बावजूद हर विपरीत साधन, हर विपरीत व्यक्ति के बावजूद हमेशा-हमेशा यह सजगता बनाए रखी है कि कहीं उस निमित्त के कारण मेरा अन्तर्मन
और मेरी शांति तो प्रभावित नहीं हो रहे हैं। कहीं उसकी विपरीतता मेरी प्रसन्नता और मेरी मानसिकता को तो विपरीत नहीं कर रही है। वह हर निमित्त स्वीकार्य है जिससे गुजरने पर हमारे विचारों का सौन्दर्गीकरण होता हो। उस हर निमित्त से आदमी को निरपेक्ष रहना चाहिए जिसके कारण हमारे विचार और दृष्टिकोण प्रभावित और उद्वेलित होते हों। अगर कोई मित्र हमारे जीवन में तनाव का कारण बनता है तो वह मित्र भी त्याज्य है। अगर कोई शत्रु भी हमें सुकून दे रहा है तो वह शत्रु भी स्वीकार्य है।
मूल्य दूसरे का नहीं, स्वयं का है। मूल्य दूसरों के विचारों का नहीं
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कैसे जिएँ मधुर जीवन
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