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________________ देवत्व से ज्यादा नहीं बढ़ सकता, पर जब आदमी का मन गिरता है तो पशु से ज्यादा गिर भी सकता है और जब उठता है तो देवता से भी ज्यादा ऊपर उठ सकता है । देव अपनी सीमा को लाँघ नहीं सकता और पशु भी अपनी सीमा का अतिक्रमण नहीं कर सकता, लेकिन मनुष्य के लिए प्रकृति ने कोई सीमा निर्धारित नहीं की है । समन्दर की तो कोई सीमा होती होगी, पर मनुष्य के मन की कोई सीमा नहीं है । वह गिरना चाहे तो गिरने की कोई सीमा नहीं है और उठना चाहे तो उठने की भी कोई सीमा नहीं है। चूंकि मनुष्य अपने अन्तर्मन और अपने विचारों में सीमाओं से बँधा हुआ नहीं है इसलिए मनुष्य अ-सीम है। 1 पशु और प्रभु दोनों ही मनुष्य के ही दो छोर हैं। एक ओर पशु है, दूसरी ओर प्रभु । मन से गिरे तो पशु, मन से उठे तो प्रभु । यानी आप उठना चाहें तो उठ सकते हैं, गिरे हुए तो हैं ही । देव बनना चाहें तो देव बन सकते हैं। बाकी दोपाये जानवर तो हैं ही । गिरने वाला भी आदमी होता है और उठने वाला भी आदमी । महावीर और मैक्समूलर कोई आसमान से टपक कर तो नहीं आते और गौतम और गौशालक कोई जमीन को फोड़कर पैदा नहीं होते । कंस किसी जमीन या पाताल की पेटी में से पैदा होकर नहीं आते और कृष्ण कोई मटकी फोड़कर नहीं निकलते। हम तो इतिहास को केवल मान सकते हैं कि कोई कंस हुआ, कोई कृष्ण हुआ। हमने तो इतिहास को अपनी आँखों से देखा नहीं है। हम तो केवल मान सकते हैं। पर जीवन में यह तो जान ही रहे हैं कि मनुष्य के भीतर ही कोई कंस है और मनुष्य के भीतर ही कोई कृष्ण है। राम भी मनुष्य की ही परिणति है और रावण भी मनुष्य की ही । सुर-असुर का भेद स्वभाव-भेद और विचार-भेद के चलते ही निर्मित होता है। गाँधी भी हममें से ही कोई पैदा होता है और गोड्से भी हममें से ही कोई प्रकट होता है। हाँ, हम ही होते हैं वह जो सम्राट् अशोक बन जाते हैं और हम ही होते हैं वे, जो स्टैलिन और हिटलर सोच को बनाएँ सकारात्मक ६९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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