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________________ ऐसे जिएँ मधुर जीवन मेरे प्रिय आत्मनू, प्रकृति के घर से हम सभी लोगों को एक अनमोल संपदा मिली है जिसे हम स्वयं अपना ही जीवन कहेंगे । हर किसी व्यक्ति के लिए स्वयं उसका जीवन बेशकीमती हुआ करता है । प्रकृति के घर से ही हममें से हर कोई एक व्यक्ति अधिसम्पन्न जीवन का स्वामी हुआ करता है 1 शरीर का कोई भी अंग ऐसा नहीं है जिसे हम निर्मूल्य साबित कर सकें। भले ही कहने को हम जीवन को नश्वर कह दें, माटी का खिलौना कह दें, लेकिन यदि जीवन है तो जीवन से जुड़े हुए सारे पहलुओं का मूल्य है । हाथ की हथेली में अगर जीवन ही नहीं है तो अन्य सारी सम्पदाओं के रहने और नहीं रहने का कोई अर्थ ही नहीं है। आदमी की एक हथेली में अगर जीवन है तो दूसरी हथेली में रखा हुआ कंकर भी शंकर की तरह मूल्यवान हो जाता है । अगर हथेली से जीवन चला जाए, तो दूसरी हथेली में चाहे हीरे ही क्यों न रह जाएँ, वे उस व्यक्ति के लिए अपना कोई मूल्य नहीं रख पाएँगे । ऐसे जिएँ मधुर जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only १ www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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