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जाए और तुमसे पूछे कि बोलो तुम्हें क्या चाहिए? अक्ल या भैंस' !
यही प्रश्न आपसे पूछे तो आप क्या कहेंगे? 'अक्ल' । सारी दुनिया यही कहने वाली है कि उसे बुद्धि चाहिए। आपकी तरह ही एक लड़का खड़ा हुआ और कहने लगा, 'सर, मुझे तो भैंस चाहिए'। मास्टर ने डंडा मारा और कहा, 'मुझे पहले से पता था कि तू भैंस ही माँगेगा। तेरी जगह मैं होता तो मैं तो बुद्धि ही माँगता।' ___छात्र ने कहा, 'सर, दरअसल जिसके पास जिस चीज की कमी होती है, वह वही माँगता है। मेरे पास भैंस की कमी है, इसलिए भैंस माँगता हूँ'। बहुत खूब!
कार्य कीजिए कर्त्ताभाव से मुक्त होकर और ज्ञान का उपयोग कीजिए विवेकपूर्वक। कोशिश कीजिए, ईश्वर को याद करने की भी कोशिश कीजिए। उसकी भी अन्तरलीनता रखिए। वक्त-बेवक़्त जब भी लगे, प्रभु का ध्यान करते रहें। जो व्यक्ति अपने श्वासोच्छ्वास में प्रभु का स्मरण करता रहता है, वह सब कुछ करते हुए भी भक्तियोग को अपने में जीता चलता है। यह मत सोचो कि प्रभु ने आपको क्या दिया है? यह सोचो कि आपने प्रभु को क्या दिया है? आपने प्रभु को .
क्या समर्पित किया है? ___आप मंदिर में जाकर शिकायत ही न करते रहें कि 'प्रभु, आपने मुझे यह नहीं दिया, वह नहीं दिया।' प्रभु ने अगर नहीं दिया तो वह उसकी व्यवस्था है। उसने तो सब कुछ दिया है पर लोग जाते हैं और दस पैसा गुल्लक में डालते हैं। ईश्वर की भी हमने क्या कीमत आँकी है! दस पैसे! अरे भई! ईश्वर को क्या चढ़ाना? ईश्वर को तो अपना जीवन चढ़ाओ। अपना अहंकार चढ़ाओ, अपने पाप चढ़ाओ। ईश्वर के सामने अपने पुण्य चढ़ाकर क्या करोगे? उसके समक्ष अपनी अज्ञान-अवस्था में किए गए अपने पाप चढ़ाओ ताकि वह अपनी करुणा और दया बरसाकर हमारे पापों को माफ़ कर सके। उनके पास
बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं
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