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________________ ऐसे ही फूल भी चढ़ाओ तो केवल यही मत सोचते रहना कि गुलाब का फूल चढ़ाऊँ या चम्पा का! फूल कोई भी चढ़ाना, पर इस विचार के साथ कि हमारा जीवन भी फूल की तरह ही कोमल, सुन्दर और सुवासित बने। यह जो दस-बीस पैसा जो हम चढ़ाते हैं, जरा सोचिए कि क्या भगवान की फैक्ट्री में कोई घाटा चल रहा है? उनका बैंक बैलेंस कोई कम थोड़े ही हुआ है जो हम पैसे चढ़ाते चले जा रहे हैं। यह तो इस भाव से हम चढ़ाते हैं कि 'प्रभु! तुम्हारे दरबार में आया हूँ, मैं स्वार्थी आदमी! आप मुझे बहुत देते हैं, मेरी किस्मत से ज्यादा देते हैं। मैं तो इस भाव से आया हूँ कि मैं अपने परिग्रह का थोड़ा विसर्जन कर सकूँ। मैं ज्यादा न भी कर पाऊँ पर पाँच रुपये के मोह का तो मैं त्याग कर ही सकता हूँ। इस भाव से ये पाँच रुपये आपको चढ़ाता हूँ। परिग्रह का विसर्जन करने के भाव से मैं यह समर्पित कर रहा हूँ। बाकी तो आप मुझे देते हैं। मैं आपकी दी हुई रोटी खाता हूँ, आपका दिया हुआ पानी पीता हूँ, आपकी दी गई जीवन की व्यवस्थाओं को संजोता हूँ। आप हैं तो मेरा कल का जीवन हैं। आप नहीं तो कल का किसका काल बनेगा, किसको इसकी खबर? ___ जितना हम उसके नाम पर लुटाएँगे, हमें उतना ही उपलब्ध होता चला जाएगा। भक्तियोग तब बनता है, जब व्यक्ति अपने अहं का विसर्जन करता है और सबमें ही उसी परमपिता परमेश्वर को, उसके अंश को, उसकी छबि को देखता है। व्यक्ति का बोलना और बतियाना भी उस परमपिता परमेश्वर से बतियाना और उसको देखना हो जाता है। अगर आप मेरी नज़र लेना चाहते हैं तो मैं कहूँगा अपने बच्चे में भी भगवान को देखो। अगर आप मुझसे मेरे जीवन का संदेश सुनना चाहते हैं, तो मैं कहूँगा कि मंदिर से जब बाहर निकलो तो बाहर बैठे हुए भिखारी में भी उसी परमात्मा को देखो। एक आदमी मंदिर से बाहर निकला और मंदिर के बाहर उसे एक भिखारी दिखाई दिया। भिखारी ने कहा, “भैया, मैं ठंड से बहुत ठिठुर बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं १०७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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