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________________ मलने के लिए तो तुम्हारे दिन की शुरूआत बेढंग से ही हो रही है। अपने घर के वातावरण को स्वर्गमय बनाने की कोशिश कीजिए। पत्नी है तो आँख खुलते ही पत्नी का भी अभिवादन कर लीजिए। झिझक मत रखिए कि मैं अपनी पत्नी का अभिवादन क्यों करूँ? नहीं, ऐसा कतई न सोचें। पत्नी है तो पति के प्रति, जिसकी भी आँख पहले खुल गई, आँख खुलते ही सुबह का पहला शब्द कौन-सा हो, हर नए दिन में पहला शब्द उच्चारित कौन-सा हो तो मैं कहूँगा, 'नमस्कार'। अगर ऐसा बोलेंगे, ‘कब तक सोए रहोगे, उठ जाओ ना' तो तुम्हारे दिन की शुरूआत ही कटु और उपेक्षित भाषा के साथ हुई। जबकि पहला शब्द ही इतना महत्वपूर्ण हो, इतना भावपूर्ण हो कि आपके कमरे का वातावरण उल्लासमय बन जाए। आपके मधुर शब्द आपके कमरे के वातावरण को निर्मल और मनोरम बना सकते हैं। आप जाएँ अपने माँ-बाप के पास। जाकर उन्हें बड़े सलीके से, प्रेम से धोक लगा दें। मैं पूछना चाहूँगा कि आखिर लोग संकोच क्यों करते हैं अपने माँ-बाप से आदाब अदा करने में। इसमें भला किस बात की शरम है? हमारे पूरे शरीर में ऐसा क्या है जिसे हमने पैदा किया हो। नीचे पाँव के अंगूठे से लेकर ऊपर सिर की चोटी तक क्या ऐसी कोई चीज है जिसे हमने पैदा किया हो? सब कुछ आखिर माता-पिता के द्वारा ही दिया गया है। यह हाथ किसने दिया है?, माँ-बाप ने। यह आँख किसने दी है?, माँ-बाप ने। यह पूरा शरीर किसने दिया है माँ-बाप ने। भला जिससे पूरा जीवन मिला है उसे प्रणाम करने में संकोच कैसा? हम उनकी अन्य तो कोई सेवा कर ही नहीं पाते हैं। कम-से-कम इतना तो कर लें। प्रणाम करके उनकी दुआएँ तो ले लें। आज आम आदमी की जीने की शैली ही ऐसी हो चुकी है कि जब वह अपने माँ-बाप के लिए किसी तरह की सेवाएँ दे ही नहीं पाता, तो कम-से-कम प्रणाम तो किया ही जा सकता है न्। कहते हैं, पुराने जमाने में लोग तो श्रवणकुमार की तरह होते थे और कांवड़ पर माँ-बाप को बैठाकर सारे संसार के तीर्थों की __कैसे जिएँ मधुर जीवन १४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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