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________________ ग्यारह बजे लौट कर घर आओगे। तुम्हारा जीवन भी क्या कोई जीवन हुआ? वह तो 'गधाखाटणी' हो गई। गधा आखिर घर से घाट और घाट से घर के बीच ही तो जीता है। हमारी जिंदगी बहुत अधिक गिरवी रखी जा चुकी है। हम बहुत उधार कर चुके हैं। हमारे पास जीवन के नाम पर अब नगद नहीं बच पाई है। बेहतर होगा कि स्वस्थ मन से अपने हर दिन की शुरूआत की जाए और जैसे ही लगे कि अब आँख खुल गई, प्रसन्नता आ गई तो अपने बिस्तर से ठीक वैसे ही खड़े हो जाओ जैसे जूते पुराने हो जाने पर आप उन्हें निकाल कर फेंक दिया करते हैं। आप अपने बिस्तर को समेट कर किनारे रख दें। फिर बैठे न रहें बिस्तर पर। फिर अगर बिस्तर पर बैठे तो आलस्य आएगा, प्रमाद आएगा। जिस बिस्तर पर रात में सोते हो उस पर दिन में भूलकर भी न बैठे। वह आपकी वास्तु और ग्रह-गोचरों को उल्टा करेगा। उठे और उठते ही बिस्तर से किनारे हो जाएँ। उठकर कमरे से बाहर निकल आयें और अपने माँ-बाप को प्रणाम करें, अग्रज भाई-बंधु, दादा-दादी जो भी हैं सबको प्रणाम करें, सबके प्रति आदर-भाव समर्पित करें। आप पाएँगे कि मात्र दो-चार मिनट में ही आपके पूरे घर का वातावरण प्रफुल्लित हो गया है। आप उदास मुँह लेकर कमरे से बाहर आते हैं तो सास भी उदास हो जाती है। आप हँसमुख होकर आएँ ताकि दूसरे भी आपको देखकर हँसमुख हो जाएँ। मात्र दो मिनट में घर का वातावरण स्वर्ग बन जाता है। जैसे ही आप जगें, अपने माता-पिता के पास जाएँ और उनके चरण-स्पर्श करें। इस तरह सुबह की शुरूआत विनम्रतापूर्वक हुई। अल-सुबह का वातावरण आशीर्वादमूलक हुआ। आपने पहला शब्द कहा, 'प्रणाम माँ' और माँ ने कहा, 'जीते रहो बेटे, खुश रहो, फलो-फूलो' । शुरूआत कहाँ से हुई? एक शुभकामना के साथ, एक मंगलकामना के साथ आज के वातावरण की, आपके जीवन में शुरुआत हो रही है। अगर तुम उठे और उठते ही रसोईघर में चले गए, चाय बनाने या जूठे बरतन ऐसे जिएँ मधुर जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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