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________________ यात्रा के लिए ले जाया करते थे। आप तो अपने घर में ही उन्हें सुख से रहने दें तो बहुत है। आप इतना तो कर ही सकते हैं कि सुबह उठकर, अपने माँ-बाप को प्रणाम करें, उनकी दुआएँ ले लें। मरने के बाद उनकी फोटो पर रोजाना मिठाई चढ़ाओगे, धोक लगाओगे, बरसी मनाओगे, ब्राह्मणों को जीमाओगे। इससे तो बेहतर यह होगा कि पहले तुम माँ-बाप की ही थोड़ी दुआएँ ले लो। मरने के बाद दुआएँ उन्हीं को मिला करती हैं, मरने के बाद माइतों की पुण्यवानी उन्हीं के काम आया करती है जो जीते-जी माइतों की दुआएँ ले लिया करते हैं। आप सुबह उठकर माँ-बाप को आदाब अदा किया करें, उनके पाँव की धूल को अपने माथे पर रखी जाए। आखिर माँ-बाप तो अपने घर में जीते-जागते मंदिर हुआ करते हैं। उनके चरणों में स्वर्ग रहा करता है। इसीलिए तो कहावत है कि खाना हमेशा माँ के हाथ से ही खाओ भले ही वह ज़हर ही क्यों न हो। रहना भाइयों में चाहे फिर बैर ही क्यों न हो। बैठो छाया में चाहे वह कैर ही क्यों न हो। खाना माँ के हाथ से, चाहे फिर वह ज़हर भी क्यों न हो। अगर ज़हर भी खाने को मिले तो माँ के हाथ से खाएँ। माँ कभी किसी को ज़हर नहीं दिया करती। माँ गुस्से में भी कभी अपने बेटे की मृत्यु नहीं चाहती। वह जब भी चाहती है बेटे के लिए सौ साल की, हजार साल की चिरायु ही चाहा करती है। तो क्यों न हम सुबह-सुबह उठकर अपने माता-पिता के चरण स्पर्श कर उनकी शुभाशीष ग्रहण करें? बेहतर होगा, हम उन्हें पंचांग नमन करें जिससे उनके हाथ हमारे शीश और पीठ पर आएँ, जिससे उनके हाथों की रेज़ हम पर आ सके। लोग कहते हैं कि हमारे नसीब नहीं बदलते। मैं कहूँगा कि जो व्यक्ति सुबह उठकर अपनी माँ के अंगूठे से अपने सिर का भाग/ललाट अपनी भाग्यरेखा को लगाता है तो उसकी नौ महीने में भाग्य-दशाएँ अनुकूल हो जाया करती हैं। आजमाकर देखें, अगर भाग्य ऐसे जिएँ मधुर जीवन १५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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