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________________ आक्रोश है, उस हर शख्स के प्रति अपने हृदय में शांति और स्नेह की फुहार को बरसाना होगा। देखना होगा कि हमारे भीतर किन लोगों के लिए द्वेष और वैमनस्य है? कौन-सा ऐसा आदमी है जिसका नाम लेते ही दिमाग में कुछ और तरह के विचार आ जाते हैं, हृदय और तरह की धड़कन करने लगता है। मनन करना होगा उन लोगों के बारे में। जिन-जिन के प्रति द्वेष है उस हर व्यक्ति के प्रति हमारे हृदय में प्रेम और समता की धार फूट जानी चाहिए। आप पूजा करते हैं, पर ईश्वर की पूजा तब तक कैसे सार्थक होगी जब तक इंसान, इंसान के प्रति ही प्रेम को पनपा न पाया? ईश्वर की पूजा तो बाद में होगी। पहले एक इंसान इंसान के प्रति तो प्रेम और सरलता की भावना लेकर आए। ठीक है, हम जीसस की तरह सलीब पर नहीं चढ़ सकते और सलीब पर चढ़वाए जाने पर माफ नहीं कर सकते, पर अपनों के बीच कहे जाने वाले छोटे-मोटे शब्दों को तो हम माफ कर ही सकते हैं न्। इतनी करुणा तो हम अपने जीवन में जी ही सकते हैं न्। नहीं ठुकवा पाये हम महावीर की तरह अपने कानों में कीलें और नहीं कर पाये प्रेम उस व्यक्ति से जिसने महावीर के कानों मे कीलें ठोकी। पर हम कम-से-कम उसको तो क्षमा कर ही सकते हैं जिसने कभी हमें सौ-दो सौ रुपये का नुकसान पहुँचाया है। जो व्यक्ति अपने दुश्मन में भी मित्रता का सूत्र तलाश कर लेता है, वही व्यक्ति अपने जीवन में प्रेम और समता को जी सकता है। राम के भीतर तो हर व्यक्ति राम को निहार लेगा, पर जो रावण के भीतर भी राम के दर्शन कर ले, वही व्यक्ति महान् गुणवान होगा। महान् संत फ्रांसिस अपने शिष्य लियो के साथ सेंट मेरिनो की तरफ जा रहे थे। रास्ता काफी लंबा था। आँधी-तूफान आये, तेज वर्षा आई, सारा रास्ता कीचड़ से भर गया और शायद दो-चार बार उन लोगों के पाँव फिसल ही पड़े होंगे, शरीर कीचड़ से लथपथ हो ही गया होगा। संत फ्रांसिस ने देखा कि अंधेरा बढ़ रहा है। साँझ ढल चुकी स्वभाव सुधारें , सफलता पाएँ ५७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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