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नहीं बिकती। करुणा वह नहीं जो निमित्त को पाकर द्रवित हो जाए। करुणा वह है कि जहाँ भीतर में वह प्याली निरंतर छलछलाती रहे। माना कि लोग तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करेंगे। तुम कभी मत मानना कि
और लोग तुम्हें गाली न देंगे। तुम्हारी सास तुम्हें कटु शब्द कहेगी। तुम्हारी जेठानी तुम पर टिप्पणी करेगी, तुम्हारे पिता और बड़ा भाई तुम पर अंकुश लगाएँगे, मगर तुम बोधपूर्ण रहो। ____बोधपूर्ण वह नहीं है इसलिए तुम्हें कटु शब्द कह रहा है। तुम तो साधना-मार्ग से जुड़े हो। अगर तुमने भी कटु शब्द कह दिया तो दोनो एक ही कड़ाही के तो हो गए। फिर दोनों में फर्क ही क्या रहा? साँपराज और नागराज में क्या कोई फर्क होता है? शब्द बदल जाते हैं। साँपराज और नागराज दोनों एक ही होते हैं। अगर वह व्यक्ति साधक रहा और उसने उधर क्रूरता कर डाली तो कहा जाएगा वह साधक, साधक न रहा। वह विराधक हो गया। अगर तुम क्रूर हो बैठे तो तुम भी साधक, साधक न रहे। __ साधना यहाँ होगी, कसौटी वहाँ होगी। जब तक साधना कसौटी पर खरी न उतरे तब तक साधना केवल आसन तक सीमित रह जाएगी। इसलिए करुणाशील रहें। जगत के प्रति करुणाशील। इस जगत के पास जीते-जी देने के लिए शायद सलीब हैं, विष के प्याले हैं। जगत के पास जीते-जी देने के लिए अमृत के प्याले नहीं हैं। दुनिया में ऐसा कोई महापुरुष नहीं हुआ जिसे दुनिया ने जीते-जी दुत्कारा न हो। दुनिया इंसान की कीमत अधिकतर मरने के बाद आँकती है। इसीलिए यह दुनिया जीते जी किसी आदमी का उपयोग कम ही कर पाती है। यह दुनिया मरने के बाद धूप-दीप चढ़ाएगी, चंदन और पुष्प चढ़ाएगी। मगर जीते-जी तो वह सलीब और काँटे के ताज ही पहनाएगी। जीते-जी तो आदमी की चार कमियाँ भी दिखाई देती हैं, पर मरने के बाद कोई आदमी किसी की कमियों की तरफ ध्यान नहीं देता। चार कमियाँ भी रहीं तो लोग कहेंगे कि जब वह
कैसे जिएँ मधुर जीवन
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