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________________ अपने घौंसले में लौट आया करती है, ठीक इसी कदर अपने आपको अपने आप में लौटा लाने का नाम प्रत्याहार है, प्रतिक्रमण है। जैसे सूरज दिनभर धरती को अपनी किरणे देता है और साँझ होने पर अपनी किरणों को अपने आगोश में समेट लेता है, वैसे ही जिन-जिन से आपने दिनभर में सम्बन्ध किया, दोस्ती की, दुश्मनी की, झूठ-साँच किया, जो कुछ किया, जहाँ-जहाँ हमारा चित्त सिमटा, बँटा, बिखरा, वहाँ-वहाँ से अपने आपको लौटा लाने का नाम ही है प्रत्याहार। और जब आत्मसंकल्पपूर्वक, मनोयोगपूर्वक अपने चित्त को स्थिर करने का जो प्रयास करता है कि मैं आत्मभावे अपने आप में रमण करूँगा; यह जो धारण किया जाने वाला संकल्प है इसका नाम है धारणा। जब व्यक्ति अपने चित्त में धारण किये हुए संकल्प के साथ, उस ध्येय के साथ, उस लक्ष्य के साथ एकलय, एकतान, एकरूप होता है तो उस एकतानता का नाम है ध्यान। अपने में लौटना पहला चरण, अपने को धारण करना दूसरा चरण और धारण किये हुए में एकलय होना ध्यान का तीसरा चरण है। __ ध्यान के दौरान जिसे हमने अपना लक्ष्य बनाया है, जब व्यक्ति उसकी परम, सर्वोच्च अवस्था को उपलब्ध कर लेता है तो उस अंतिम परिणति का नाम है 'समाधि' । यम-नियम से शुरू होने वाली योग की यात्रा ध्यान और समाधि पर जाकर पूर्ण होती है। यह योग का मार्ग है। हम योग की व्यावहारिक दृष्टि लें, जिसे कि आप अपने व्यावहारिक जीवन में सहजतया जी सकते हैं। जब तक गुर हाथ न लगे तब तक माटी से दीया बनाना कठिन है। हाथ में माला लेकर जाप करना कठिन है और जाप कर भी लोगे तो मन को स्थिर करना कठिन है। ऐसा कौन व्यक्ति है जो शांति से बैठे और मन में उसके भागमभाग शुरू न हो? आप लोग तो धार्मिक हैं, छोटे-बड़े व्रत भी करने वाले हैं, पर मन में स्थिरता नहीं है। अगर गुर हाथ लग जाए तो मैं कहूँगा कि योग का मार्ग सरल है। स्वास्थ्य, शांति और समाधि के लिए इतना सरल मार्ग है कि बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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