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________________ दुनिया में इससे ज्यादा सरल मार्ग और कोई नहीं है । प्राणायाम तक योग 'क्रिया' है। प्राणायाम से आगे योग ‘अन्तर्क्रिया' है। अन्तर्क्रिया के मार्ग में कुछ करना नहीं पड़ता क्योंकि यह तो होने का मार्ग है । अपने आपमें होने का मार्ग है। आप जहाँ बैठे हैं, जिस डगर पर हैं, जिस पहाड़ी पर हैं, हर जगह योग को अपने साथ जोड़ा जा सकता है । आप अगर मेहतनकश हैं तो मैं योग का वह दृष्टिकोण देना चाहूँगा जिसे अतीत में कभी कृष्ण ने कर्मयोग की संज्ञा दी थी। व्यक्ति का वह कार्य और कर्तव्य कर्मयोग बन जाता है जब व्यक्ति उसे कर्ताभाव से मुक्त होकर संपादित करता है । 'मैं' के इस भाव से मुक्त होकर किया जाने वाला कार्य भी योग है। कार्य तो वही होगा, पर कार्य के प्रति नजरिया बदल जाएगा । जीवन में मिलने वाली असफलताओं से निराश होकर बैठ जाने वालों के लिए कर्मयोग है। यानी कर्म करो, फल की आकांक्षा मत रखो। शायद अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोग सबसे कम खेती करते हैं। अहिंसा में विश्वास करने वाले लोग सबसे कम हरियाली उगाते हैं। मैं कहना चाहूँगा कि दुनिया में अगर सबसे ज्यादा खेती और हरियाली का विकास किसी को करना चाहिए तो अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोगों को करना चाहिए। जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास रखता है, वह अगर हल चलाएगा तो छोटी-से-छोटी चींटी और मकोड़े को भी बचाना चाहेगा। गेहूँ तो तुम्हें खाने होंगे, अनाज का तो तुम्हें उपभोग करना ही होगा, पर तुम केवल उपभोग पर ही ध्यान मत दो, उसके उत्पादन पर भी ध्यान दो । केवल उपभोग में ही यह विवेक नहीं होना चाहिए कि वह अहिंसामूलक हो वरन् उत्पादन में भी विवेक हो कि वह अहिंसामूलक हो। अगर आप उत्पादन के साथ अहिंसा को जोड़ लें तो यह सराहनीय कृत्य होगा। यदि आप उत्पादन पर ध्यान देंगे तो शायद चमड़े के जूते ९६ Jain Education International For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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