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भी उतना ही सहयोगी है। जो काम योगासन नहीं कर पाता, वह कार्य प्राणायाम कर लेता है। आप कुछ हल्के-फुल्के सरल योगासन अपने जीवन के साथ जोड़ लें। डॉक्टर की पहली सलाह होती है कि आप टहलें, योगासन करें। हड्डियों के रोग तो एक्सरसाइज से ही दुरुस्त होते हैं। पहले किसी जानकार व्यक्ति से सीख लें, फिर खुद करें। योगासन के साथ प्राणायाम भी करना सीखें।
कुछ प्राणायाम साँस लेने से जुड़े हैं और कुछ साँस छोड़ने से जुड़े हैं। शरीर के रोगों को काटने के लिए दस मिनट तक लम्बी गहरी साँस छोड़ें, जबकि भीतर के चैतन्य केन्द्रों को सक्रिय करने के लिए दस मिनट तक केवल लम्बी गहरी साँस लें। दोनों के अपने-अपने फायदे हैं। रामदेव महाराज केवल प्राणायाम के बूते पर ही सैकड़ों तरह के रोग ठीक करने की गारंटी लेते हैं। वे तो बता सकते हैं, पर करना फिर भी आपको ही है। __ प्राणायाम के बाद है प्रत्याहार। अब हमारी प्रवृत्ति अन्तर्मुखी हुई। प्रत्याहार यानी अन्तर्मुखी होने की पहल। जब हम अपने भटकते हुए चित्त को एक स्थान पर वापस लाने की जो कोशिश करते हैं, उस स्थिति का नाम है प्रत्याहार। जिसे पतंजलि ने प्रत्याहार कहा है, महावीर ने उसी को प्रतिक्रमण कहा है। प्रतिक्रमण का अर्थ केवल इतना-सा न समझें कि यह किसी किताब में लिखा हुआ पाठ है, सूत्र है, जिसे पढ़ लिया और प्रतिक्रमण हो गया। प्रतिक्रमण, प्रत्याहार, पर्दूषण ये सभी पर्यायवाची शब्द हैं और इनका अर्थ होता है हमारा मन जिन-जिन राग-द्वेष-जनित स्थितियों में उलझ चुका है, वहाँ-वहाँ से अपने चित्त को वापस अपने आप में लौटा लाना प्रतिक्रमण है, पर्दूषण है। __इसे यों समझें कि जैसे कोई चिड़िया दिनभर आसमान में उड़ती है, दाना-पानी की व्यवस्था करती है, किन्तु साँझ ढलते ही वह चिड़िया
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कैसे जिएँ मधुर जीवन
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