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________________ करो जो तुम्हारे जीवन में नहीं हो। जिन क्षणों में कोई व्यक्ति तुम्हारे द्वारा कहे गये विचारों के साथ तुम्हारे जीवन का सन्तुलन बैठाना चाहेगा तो भले ही कल जो व्यक्ति तुम्हारे विचारों के प्रति श्रद्धा रखा करता था, तुम्हारे जीवन को देखकर वह व्यक्ति तुम्हारे प्रति नफरत और ग्लानि से भर उठेगा। जिस व्यक्ति के प्रति व्यक्ति की श्रद्धा रही हो, जब वही व्यक्ति नफरत के काबिल हो जाता है तो उससे ज्यादा नफरत और किसी को नहीं की जा सकती। यह जीवन का सच है। इसलिए हम थोड़ा अपने विचारों को, अपनी सोच को, मस्तिष्क के भीतर जिन बीजों का अंकुरण होता है, उन बीजों पर ध्यान दें, ताकि सोच और चिंतन को सार्थक दिशाएँ दी जा सकें। स्वाभाविक है कि व्यक्ति जिन बातों का चिंतन-मनन करेगा, आदमी के जीवन में वही सब-कुछ घटित होगा। अगर फूलों को ध्यान से देखो तो आँखों में फूल मंडराने लगेंगे और तारों को ध्यान से देखो तो तारे भी तुमसे बातें करने लगेंगे। पैसे के बारे में सोचोगे तो जीवन में पैसा लक्ष्य बनेगा, सत्य के बारे में सोचोगे तो सत्य ही जीवन का लक्ष्य बनेगा, और नामगिरी के बारे में सोचने से नाम कमाना जीवन का लक्ष्य होगा। शिव का मनन करेंगे तो अपना और औरों का कल्याण करने का मन करेगा। भोग के बारे में चिंतन करोगे तो किसी नारी या पुरुष को देखकर वासना की तरंग उठेगी। अन्तर-निर्मलता के बारे में चिंतन करोगे तो तुम नारी हो या पुरुष, दोनों के प्रति सम्मान से भर उठोगे, आत्मसम्मान से, जीवन-सम्मान से। जैसी सोच, वैसी अभिव्यक्ति। जैसी अभिव्यक्ति, वैसी प्रवृत्ति। जैसी प्रवृत्ति, वैसी ही आदत। जैसी आदत, वैसा ही चरित्र। अगर कोई व्यक्ति अपने चरित्र को, अपनी आदतों को, अपनी प्रवृत्ति और अभिव्यक्ति को, अपने चिंतन को सम्यक्, सार्थक और उन्नत बनाए रखना चाहता है तो व्यक्ति अपनी सोच और अपने विचार को, अपनी मानसिकता को सम्यक् रखे, सार्थक रखे, सुशील बनाए। सोच को बनाएँ सकारात्मक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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