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पाए हैं? क्या हम अपने विचारों को वे दिशाएँ दे पाए हैं जो हमें प्रकाश की ओर ले चले, हमें उन्नत मस्तिष्क की ओर ले जाएँ, हमें जीवन की ऊर्ध्व क्षमताओं से साक्षात्कार करवाएँ। सोचना एक बहुत बड़ी कला है, जैसे कोई कहे कि बोलना एक बहुत बड़ी कला है। मैं कहूँगा बोलना एक कला है, पर सोच को उन्नत बनाए रखना, उससे भी बड़ी कला है। जिसने अपनी सोच को सही बनाये रखने में सफलता पा ली है, उसके जैसा धार्मिक कोई और नहीं होगा । उस आदमी में ही देवों का निवास रहता होगा, उस आदमी से हटकर कोई मंदिर हो, शायद उस पर प्रश्नचिह्न ही लगेगा |
सोचना मनुष्य का काम है । सोच ही मनुष्य है । मनुष्य में से सोच को हटा दिया जाए, तो मनुष्य मनुष्य कहाँ रहेगा? सार्थक सोच में ही जीवन का शिव छुपा है, सार्थक सोच में ही सौन्दर्य की आत्मा बसी हुई है | सार्थक सोच का मायना है सत्यम् शिवम् सुन्दरम् । एक सोच को ठीक करना सम्पूर्ण जीवन को दुरुस्त कर लेना है ।
ध्यान रखें, सोचना बहुत बड़ी कला है । क्योंकि इसी सोच के चलते ही कभी हम उत्साह से भर जाते हैं और कभी हम निराश हो जाते हैं। इसी सोच के चलते कभी हमारे जीवन में सुबह हो जाती है तो कभी शाम हो जाया करती है। इसी सोच की वजह से हमारे जीवन में उत्साह और उत्सव भर जाता है और इसी सोच के कारण कोई कायलाना झील में आत्महत्या कर लिया करता है । लोग नियंत्रण रखना चाहते हैं, कोई अपने भतीजे पर कोई अपने बेटे पर कोई अपनी बीवी या नौकर पर जबकि इन्सान खुद का ही गुलाम बना हुआ है। आदमी की सोच तो उसके नियंत्रण में है ही नहीं और चले दुनिया को काबू करने ! क्या कहीं ऐसा नहीं है कि हम औरों को ज्ञान बखान रहे हैं जबकि यह ज्ञान हमारे अपने जीवन में नहीं है।
जीवन में ऐसे किसी भी सोच और विचार को अभिव्यक्त मत
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कैसे जिएँ मधुर जीवन
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