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________________ को, अपनी मानसिकता को उन्नत बना लें तो भले ही कोई आदमी हमें गधा कहने वाला मिल जाए, पर हम उस गधे में भी आदमी देख लेंगे। और मैं तो यह मानकर चलता हूँ कि दूसरा व्यक्ति जो सामने आ रहा है, वह सम्भव है वह हमें गधा कहने के लिए ही आ रहा है। और गधा कहेगा, आज नहीं तो कल कहेगा। यह हमें आज ही निर्णय ले लेना है कि यह जो हमें कल गधा कहेगा हमें आज उसके साथ कैसा सुलूक और व्यवहार करना है? उसके प्रति हमें कैसा नजरिया रखना है? हमारी मुस्कान, हमारी सहजता, हमारी शांति तब भी वही रहे जब कोई हमें गधा और नालायक कहने के लिए तत्पर हो। प्रकृति ने आपको बुद्धि दी है, सोचने की क्षमता दी है। आप इसका उपयोग क्यों नहीं करते? आँख मूंदे कब तक जीते रहेंगे! शरीर से तो हम कोई बहुत सशक्त नहीं हैं। हमसे तो ज्यादा सशक्त और कई प्राणी हैं जिनको हम ताकतवर कहते हैं। हमारी ताकत को तो कोई भी प्राणी चुनौती दे सकता है, पर हमारी मानसिक क्षमताओं को अन्य कोई प्राणी चुनौती नहीं दे सकता। प्रकृति ने मनुष्य को ऐसी उच्च मस्तिष्कीय क्षमताएँ दी हैं कि शायद उसी एक तोहफे के बदले अगर वह प्रकृति को सौ-सौ फूल चढ़ाए तो भी कम है। एक मच्छर भी काफी होता है आदमी को विचलित करने के लिए। आदमी शरीर से ज्यादा सशक्त नहीं है, लेकिन प्रकृति ने आदमी को एक बहुत बड़ी क्षमता दी है। एक ऐसी सशक्तता दी है कि इस एक सशक्तता के चलते इंसान अपनी निर्बलताओं पर विजय पर लेता है और वह है सोचने की क्षमता, विचारने की क्षमता, अपने विचार को उन्नत से विकासशील बनाने की क्षमता। सोचना आदमी का धर्म है। सोचना मस्तिष्क की प्रकृति है। सोच तो चलती रहती है, जब देखो तब कुछ-न-कुछ उमड़-घुमड़ चलती ही रहती है, लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि सोचना जो मनुष्य का प्रकृतिगत लक्षण है, क्या हम अपनी सोच को वे आयाम दे सोच को बनाएँ सकारात्मक ७३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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