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असंयम और गलत प्रयोग के कारण ही टूटता है। लोग समाज की मीटिंग भी करते हैं तो वहाँ ऐसा लगता है जैसे किसी कच्ची बस्ती के लोग आपस में लड़ रहे हों। सुनने वाला कोई होता नहीं है, पर हर आदमी इसलिए तेज आवाज में बोलता है ताकि उस पर ध्यान दिया जाए। पर हक़ीक़त में तेज आवाज में बोलने वाला भी बुद्धू और उस पर ध्यान देने वाला भी बुद्ध। अपनी वाणी का अपनी सीमा और मर्यादा में ही उपयोग कीजिए। ___ आप धैर्य से बोलें, प्रेम से बोलें, संयम से बोलें। कोई सलाह माँगे, तो प्रेम से दीजिए। चलते के बीच लंगड़ी मत मारिए। आप क्यों न वकील ही बन जाएँ। राम जेठमलानी की तरह। वकील छोटी-सी सलाह का भी पाँच हजार का भुगतान लेता होगा। एक आप हैं जो बिन माँगे सलाह बाँटते रहते हैं। आपकी समझ और आपके ज्ञान का मूल्य है। जरूरत हो, तो ही बोलें, अन्यथा शान्त-मौन-सौम्य! ___ कटु वाणी से बचिए। शान्त, विनम्र और मधुर वाणी का उपयोग कीजिए। आप पाएँगे कि आपकी एक मधुर वाणी ही आपकी सफलता
और लोकप्रियता में कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। 'ग' से 'गधा' भी होता है और 'ग' से 'गणेश' भी होता है। 'स' से 'सत्य' भी होता है और 'स' से 'सत्यानाश' भी। अक्षर तो एक ही है, पर यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसका उपयोग कैसे करते हैं?
आपको याद होगा, महाभारत का वह प्रसंग जब इन्द्रप्रस्थ निर्मित हुआ था। दुर्योधन को भी अन्य लोगों की तरह आमंत्रित किया गया। दुर्योधन ने इन्द्रप्रस्थ में बने राजमहल के अन्दर प्रवेश किया। उसे लगा आगे पानी है अतः उसने अपनी धोती ऊपर कर ली। पर वहाँ पानी तो था नहीं। द्रौपदी यह देखकर हँसी। दुर्योधन ने देखा और उसने अपनी धोती छोड़ दी और वह पुनः आगे बढ़ा जहाँ जमीन नजर आ रही थी। लेकिन असल में वहाँ पानी था। दुर्योधन पानी में गिर पड़ा। यह देखकर
व्यवस्थित करें स्वयं को
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