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आप क्या-क्या करना चाहते हैं, उसे एक कागज पर उतार लें और फिर अपने दिनभर के कार्यों का एक सेड्यूल, एक टाइम-टेबल तैयार कर लें। उसके मुताबिक चलने की मानसिकता तथा आप संकल्प-शक्ति मजबूत करें। आप पाएँगे कि आप पहले से अधिक सचेतन/एक्टिव हुए हैं। पहले से अधिक सफल होने लगे हैं। समय-प्रबन्धन के साथ भाषा-प्रबन्धन भी स्वयं को व्यवस्थित करने का दूसरा पहलू है।
जो आप बोल रहे हैं, जो आपकी भाषा है, उसे भी व्यवस्थित करने की कोशिश करें। आप देखें कि दिनभर में क्या-क्या बोलते हैं? आपके द्वारा बोले गए हर शब्द का अर्थ हो, आपके द्वारा बोले गए हर शब्द का कोई औचित्य हो। यह जबान कोई दर्जी की कैंची नहीं है, जो बस चलती ही रहे। जबान तो वह है, जिसमें अमृत भी रहता है और जहर भी। कृपा करके ऐसी मज़ाक, ऐसी टिप्पणी, ऐसी निंदा या ऐसा उपहास मत कीजिए, जिससे आपके प्रति लोगों का नजरिया खराब हो।
मज़ाक में भी किसी का दिल दुखाना अहिंसा का अतिक्रमण है। अगर ईश्वर ने आपको वाणी दी है तो उसका उपयोग ऐसे कीजिए जैसे कि आप किसी के जन्मदिन पर फूलों का गुलदस्ता उपहार में दिया करते हैं।
वाणी तो ऐसी बोलिए कि आपसे बिछड़ जाने के बावजूद, व्यक्ति आपको याद रखे कि 'वाह! क्या मधुर वाणी थी उस व्यक्ति की। कितनी मिठास थी उसकी जुबान पर! ऐसा लगता है कि सुनते ही रहें उस व्यक्ति को।' आप वाणी ऐसी बोलिए जो औरों को शीतलता का अहसास दे। आपको शीतलता अपने आप मिल जाएगी। लोग चापलूसी की चासनी लगाते हैं। मैं कहूँगा कि चापलूसी से बचें, सहज मिठास
और माधुर्य को अपनाएँ। मिठास होनी चाहिए जबान पर। कटु वाणी परिवारों को तोड़ती है। परिवार जब भी टूटता है तो वह वाणी के
___कैसे जिएँ मधुर जीवन
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