SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रौपदी पुनः हँसने लगी, और एक कटुवचन कह बैठी, 'अंधे का बेटा आखिर अंधा ही होगा' । द्रौपदी का यह एक कटुवचन द्रौपदी के चीरहरण से लेकर महाभारत के युद्ध तक का कारण बन जाता है। मेरा अनुरोध यह है व्यक्ति को अगर बोलना आता है तो वह बोले, अन्यथा मौन रखे। हमें केवल यही नहीं आना चाहिए कि हम कब और क्या बोलें? हमें इस बात की भी समझ होनी चाहिए कि हमें कब और क्या नहीं बोलना चाहिए। दोनों ही की कला हमें आनी चाहिए, तब जाकर हम अपनी भाषा और शैली को व्यवस्थित कर पाएंगे। मछली इसलिए मुसीबत में फँसती है, क्योंकि वह अपना मुँह खोलती है। तुम अगर अपना मुँह बंद रखोगे, तो मुसीबत में नहीं फँसोगे। अगर आपको बोलने की कला आती है, तो बोलिए अन्यथा मौन रहिए। आप जब भी बोलें बड़ी मधुरता से, बड़ी शालीनता से, औरों को मान देकर बोलें। सम्मान को औरों को देकर ही सम्मान को सम्मानित रखा जा सकता है। ___ मान और सम्मान पाकर कोई भले ही अपना ईगो बढ़ाता चला जाए, पर मुझ सरीखा व्यक्ति तो यही कहेगा कि आप मान पाकर नहीं अपितु मान देकर खुश हों। जीमकर नहीं, जिमाकर खुश हों। खुद खाना तन का सुख है और दूसरों को खिलाना मन का सुख है। यह तो स्वयं व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपनी वाणी का उपयोग कैसे करता है? जैसे कि मान लीजिए कि पतिदेव नाश्ता करने के लिए बैठे हैं, वह दो पराठे खा चुके हैं। एक पराठे के लिए वह पुनः आवाज देते हैं। पत्नी कहती हैं, 'अरे! आज आपको क्या हो गया है? दो पराठे खा लिए फिर भी अब और माँग रहे हैं। दो से ज्यादा खाना था तो पहले बताना था।' आप क्या बोले, यह आप जानें, पर आपने अपने पति का खाना हराम कर दिया। आखिर वह सारी मेहनत आपके लिए ही तो कर ३४ कैसे जिएँ मधुर जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003896
Book TitleKaise Jiye Madhur Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2009
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy