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मनुष्य के हाथ में लिखी भाग्यरेखाएँ आदमी की उन्नत या पतित विचार-धारा के आधार पर ही उन्नत या पतित होती हैं। इसलिए विचारों से बढ़कर व्यक्ति का कोई आंतरिक मित्र नहीं होता और विचारों से बढ़कर व्यक्ति का कोई शत्रु भी नहीं होता है। विचार ही कभी वैतरणी बन जाया करते हैं, तो विचार ही कभी जीवन का नंदनवन बन जाते हैं।
किसी को देखकर यह भविष्यवाणी करना बहुत कठिन होता है कि यह जैसा सुबह दिखाई दिया था, वैसा ही शाम को भी रहेगा। वैसा ही अर्द्धरात्रि में या वैसा ही कल भी होगा। घड़ी भर में जो देवरूप में दिखाई देने लगता है, वही दूसरी घड़ी में ऐसा लगता है जैसे वह किसी प्रेत-योनि से आया हो। प्रेम के क्षण देवत्व के होते हैं तो क्रोध के क्षण प्रेतात्मा के। यह आदमी का अन्तर्मन है जिसकी दहलीज पर कभी तो व्यक्ति देवलोक का पथिक हो जाता है, तो कभी नरक की खाइयों में लुढ़क जाता है।
मुझे नहीं मालूम कि संसार में कहाँ स्वर्ग है और कहाँ नरक? धर्म की किताबों में तो यह बताया गया है कि पाताल के नीचे नरक है और आसमान के ऊपरी छोरों में स्वर्ग है। मनुष्य के अन्तर्मन को देखता हूँ तो लगता है कि आदमी के भीतर ही कोई धर्मराज आसीन है और आदमी के भीतर ही कोई यमराज बैठा हुआ है। किसी काले भैंसे पर चढ़कर पाताल से कोई यमराज नहीं आता होगा। आदमी का मन जब भी गिरने लगता है, तब-तब आदमी पाताल से भी नीचे, नरक की सैर कर आता है। जब भी हमारे भाव और विचार उन्नत होने लगते हैं तब-तब हम आसमान से भी ऊपर देवलोक स्पर्श कर आते हैं।
मैंने मनुष्य देखे हैं और प्रेत भी देखे हैं। मैंने देवताओं के भी दर्शन किए हैं और मैं प्रेतात्माओं से भी मिला हूँ। मैंने ऐसे इंसान भी देखे हैं जिनके भीतर क्रोध, क्रूरता और कामुकता का प्रेत निवास करता
सोच को बनाएँ सकारात्मक
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