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होगा। सचमुच जीवन में संन्यास का उदय होना, सात-सात जन्मों तक कमाये गये पुण्यों का परिणाम है, लेकिन कोई संत से जाकर पूछे, किसी ईमानदार संत से तो वह बताएगा कि संन्यास लेना बहुत कठिन है। लेकिन जब अपने आपको मैंने जीया तो पहचाना कि संन्यास ले लेना कितना चुटकी भर का खेल है। पर अपने स्वभाव को जीतना, अपने स्वभाव को बदलना, अपने स्वभाव को सदाबहार प्रेम, शांति, करुणा और आनन्द से ओत-प्रोत करना कितना कठिन है।
क्या साधना हँसी का नाम है? काम छोड़ो, द्वेष छोड़ो, वैमनस्य छोड़ो, यह बात तो हर कोई कह देगा। कौन आदमी नहीं जानता कि क्रोध करना बुरा है? सलाह लेने वाला भी और सलाह देने वाला भी दोनों ही जानते हैं कि क्रोध करना कितना घातक है। वैमनस्य करना कितना जघन्य कृत्य है। चोरी करना अपने आप में कितना असुंदर कार्य है। ये सब कौन नहीं जानता? हर आदमी को भलाई की समझ है। आदमी बुराई से इसलिए उपरत नहीं हो पाता क्योंकि वह नहीं समझ पाया अपने आप को, अपने स्वभाव को। अपने भीतर जन्म-जन्म से हो रहे दमन को नहीं समझ पाया आदमी।
जो स्वभाव व्यक्ति का अवचेतन मन बन चुका है जो स्वभाव व्यक्ति की आदत बन चुका है वह उस स्वभाव को नहीं जीत पाया।
और बातों को छोडें भी, पर क्या आप जानते हैं तम्बाकू खाना हानिकारक हैं? बीड़ी, सिगरेट पीना कैंसर का आधार बनता है। क्या आप यह जानते हैं? क्या आप जानते है कि भाँग, जर्दा, अफीम खाने से आपके दिमाग के पुर्जे ढीले होते हैं? आदमी जानता है, आदमी को कई चीजों की जानकारी है, लेकिन जो चीज व्यक्ति का स्वभाव बन चुकी है, वह उससे उपरत कैसे हो? आदमी रोजाना पढ़ता है कि यह सब करना आत्मघातक है लेकिन फिर भी आदमी करता है। वह इसलिए कर रहा है क्योंकि आदमी अपने स्वयं के रूपांतरण के लिए सजग न हो पाया। स्वभाव सुधारें , सफलता पाएँ
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