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है। जो व्यक्ति सौन्दर्य से प्यार करता है, वह किसी पर बुरी दृष्टि नहीं डालेगा क्योंकि वह जानता है कि किसी पर बुरी दृष्टि डालना कुरूप काम है। जो व्यक्ति सौन्दर्य से प्रेम करता है, वह कभी चोरी नहीं करेगा क्योंकि वह जानता है कि चोरी करना अपने आप में बदसूरत कार्य है हम सौन्दर्य से प्रेम करें। केवल बाहर के सौन्दर्य पर आकर्षित न हों बल्कि अन्तर के सौन्दर्य को भी देखें और उसे उजागर करें ।
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कहते हैं, एक बार रवीन्द्रनाथ टैगोर अपने बाल सँवार रहे थे । महात्मा गाँधी आधे घण्टे से उनका इन्तजार कर रहे थे । आधा घण्टा बीतने पर भी जब टैगोर नहीं आए तो गाँधी बोले, 'अरे भाई ! बाल सँवारने में और कितना समय लगाओगे ? सत्तर के तो हो गए और अब भी नहाने-सँवारने में इतना समय लगाते हो ?' टैगोर बोले, 'बाल ऐसे सँवार कर देखे नहीं जमे, वैसे सँवार कर देखे नहीं जमे, अब तीसरे तरीके से सँवार कर देख रहा हूँ ।' वह आगे बोले, 'महात्मन्! मैं बाल इसलिए नहीं सँवारता कि मैं सुन्दर दीखूं, वरन् इसलिए अच्छे ढंग से सँवार रहा हूँ ताकि मुझे देखकर किसी को अपनी नाक-भौं न सिकोड़नी पड़े।'
शृंगार केवल बाहर का नहीं हो, विचारों का भी शृंगार हो । क्योंकि व्यक्ति जैसा विचार करता है, वैसा उसका वक्तव्य बन जाता है। वक्तव्य व्यक्ति के व्यवहार में आता है, व्यवहार से आदतें बनती हैं और आदतें ही व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करती हैं।
अगर आप सुन्दर और बेहतर विचार चाहते हैं, अगर आप सुन्दर और बेहतर व्यवहार और चरित्र चाहते हैं तो मैं कहूँगा कि आप अपने अन्तर्मन को सुन्दर बनाएँ । जब भी सोचें सकारात्मक सोचें, दूसरों की गलतियों को क्षमा करने की उदारता दिखाएँ और उनके गुणों पर ही ध्यान दें। दोषों पर ध्यान न दें। कोई व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता | दूध का धुला (नहाया ) कोई नहीं होता । आप जिसकी सदैव
व्यवस्थित करें स्वयं को
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