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कमियाँ निकालते हैं, उसे यदि गुणग्राही दृष्टि से देखेंगे तो उसमें भी आपको अवश्य कुछ गुण मिल जाएँगे।
कमियों पर ध्यान देना अपने आप में कमीनायत है। अगर मात्र हम कमियों पर ही ध्यान देंगे, तो हम उस व्यक्ति का उपयोग नहीं कर पाएँगे। दुनिया में पता नहीं कब किस गधे की भी गरज करनी पड़े, तब क्यों नकारात्मक सोच रखकर उसे अपने से दूर रखते हैं? __ हर व्यक्ति के प्रति, हर घटना और परिस्थिति के प्रति सकारात्मक नजरिया रखें। यदि नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति को आधा गिलास दूध दिया जाए तो उसकी दृष्टि दूध से भरे आधे हिस्से में बाद में पड़ेगी, उसे खाली हिस्सा अधिक ध्यान में रहेगा। उसे लगेगा, उसे आधा हिस्सा खाली दिया गया है। वहीं एक सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति को आधा खाली गिलास दूध दिया जाए तो उसे लगेगा कि वाह! क्या आतिथ्य सत्कार है, गिलास भर कर दूध दिया जा रहा है। उसकी दृष्टि में गिलास का आधा खाली होना मूल्य नहीं रखता, बल्कि गिलास का आधा भरा होना महत्त्वपूर्ण है।
अगर तुम नकारात्मक सोच रखोगे तो तुम्हें हर बगिया में काँटें ही नजर आएँगे। यदि तुम सकारात्मक सोच के मालिक हो तो तुम्हें हर काँटे और कैक्टस के बीच भी किसी गुलाब की सम्भावना नजर आएगी। आप सदैव सकारात्मक सोच रखें। बड़े डाँट भी दें तो यह सोचें कि बड़े नहीं डाटेंगे तो कौन डाँटेगा? यदि छोटों से गलती हो जाए तो यह सोच कर उन्हें माफ कर दें कि गलती छोटे नहीं करेंगे तो कौन करेगा? बड़े हैं तो बड़प्पन रखना सीखिए। तुम अपनी ओर से इतना बड़प्पन अवश्य रखो कि अपने पिता या सास की डाँट बड़ी सहजता से, बड़े सकारात्मक सोच के साथ हजम कर सको।
विचार कैसे पॉजिटिव बनते हैं? देखिए, एक उदाहरण देता हूँ। एक शिष्य ने अपने सद्गुरु से कहा, 'भन्ते! मैं भगवान के प्रेम, अहिंसा
कैसे जिएँ मधुर जीवन
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