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है जो सुर को भी वरदान देता है और असुर को भी। योग पापी को पुण्यात्मा बनाता है और पुण्यात्मा को परमात्ममयी दशा तक पहुँचाता है । योग अशुभ को शुभ की ओर तथा शुभ को शुद्धता की ओर ले जाने वाला रास्ता है। यह तो वह घाट है जिस पर पहुँच कर आदमी अपने जन्म-जन्म के मैलों को धो डालता है । शायद किसी मंदिर से किसी अपाहिज आदमी, किसी कोढ़ी या किसी छोटी जात के आदमी को दुत्कारा जा सकता है लेकिन योग वह पवित्र मार्ग है, जिसकी शरण में जो भी आता है, योग उसे उसका स्वास्थ्य देता है, उसे उसकी मानसिक शांति देता है। योग आपके मस्तिष्क की क्षमता को दुरुस्त करता है। योग हमारे मानसिक विकारों को काटने की छैनी और हथौड़ी है । वह जीवन की नकारात्मकताओं को हटाता है और सकारात्मकता को आत्मसात्
कराता 1
योग यानी अपने आपसे जुड़ना और वियोग यानी अपने आपसे टूटना। बड़े अच्छे शब्द हैं योग, संयोग और वियोग। वह अवस्था संयोग कहलाती है जहाँ हम किसी निमित्त को पाकर उससे जुड़ते हैं और जब उस निमित्त से हम बिछुड़ जाते है तो वह अवस्था वियोग कहलाती है। पर जहाँ बिना किसी निमित्त के, बिना किसी साधन के व्यक्ति अपने आप से जुड़ा हुआ रह सके, उसका नाम योग है ।
योग तो वह मार्ग है, वह मज़ार है, मंदिर का वह सोपान है जहाँ हर कोई शरण ले सकता है । यह माँ का आँचल है । माँ के आँचल से ज्यादा करीब की चीज इंसान के लिए और कोई नहीं हुआ करती हैं।
एक लड़की गलत सोहबत के कारण पापमय रास्तों को अख्तियार कर चुकी थी । पापों को जीने की उसे ऐसी आदत पड़ गई कि उसने अपनी विधवा माँ को भी छोड़ दिया और उन-उन गलत रास्तों पर जाती, बढ़ती चली गई जो कि आदमी को हमेशा पतन के गर्त में गिराते हैं । सदाचार के रास्तों से वह फिसल गई और दुराचार के रास्तों पर वह बढ़
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कैसे जिएँ मधुर जीवन
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